पीड़ित को गंभीर और जघन्य प्रकृति के गैर-शमनीय अपराध के मामले छोड़ने का कोई अधिकार नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

Sharafat

28 Sept 2022 6:45 PM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि समाज को बुरी तरह प्रभावित करने वाले गंभीर और जघन्य प्रकृति के गैर-शमनीय अपराध (Non-Compoundable Offence) के मामले को छोड़ने का पीड़ित को कानूनन कोई अधिकार नहीं है।

    जस्टिस समीर जैन ने कहा कि ऐसे मामले राज्य और आरोपी के बीच के मामले बन जाते हैं और कानून व्यवस्था सुनिश्चित करना और ऐसे मामलों में अपराधी पर मुकदमा चलाना राज्य का कर्तव्य है।

    संक्षेप में मामला

    न्यायालय अभियुक्तों/आवेदकों द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 307, 504, 506 के तहत दर्ज एक आपराधिक मामले की पूरी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।

    आवेदकों (संख्या में 14 ) पर दो व्यक्तियों पर उनकी हत्या करने के इरादे से हमला करने का आरोप लगाया गया था। उन्होंने कथित तौर पर देसी पिस्टल से गोलियां चलाईं। घटना में दोनों घायलों को गंभीर चोट आईं।

    आरोप पत्र 26.8.2022 को प्रस्तुत करने के बाद संज्ञान लिया गया और आवेदकों को नोटिस जारी किए गए, हालांकि मामले के लंबित रहने के दौरान, आवेदक, विरोधी पक्ष नंबर 2 शिकायतकर्ता और घायल व्यक्ति इनाम और दानिश ने मामले में समझौता कर लिया।

    उस समझौता विलेख के आधार पर आवेदकों ने निचली अदालत के समक्ष लंबित कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया।

    न्यायालय के समक्ष प्राथमिक प्रश्न था - क्या पक्षकारों के बीच हुए समझौते के आधार पर ऐसे मामलों की कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है?

    न्यायालय ने पाया कि हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 320 की सीमाओं से परे सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित अपनी शक्ति का प्रयोग पक्षकारों के बीच किए गए समझौते के आधार पर गैर-शमनीय अपराधों से संबंधित कार्यवाही रद्द करने के लिए कर सकता है।

    हालांकि कोर्ट ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में आगाह किया है कि गंभीर और जघन्य अपराधों की कार्यवाही जो बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित करती है, उन्हें पार्टियों के बीच किए गए समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जाना चाहिए।

    न्यायालय ने दक्षाबेन बनाम गुजरात राज्य | 2022 लाइव लॉ (एससी) 642 सहित सुप्रीम के अन्य फैसलों का ज़िक्र करते हुए कहा,

    "... कानून जैसा कि यह स्थापित है कि यद्यपि यह न्यायालय गैर-शमनीय अपराध में भी सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर सकता है और मामलों में भी पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर कार्यवाही रद्द कर सकता है, लेकिन अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते समय इस न्यायालय को इस तथ्य पर विचार करना चाहिए कि क्या कार्यवाही किसी गंभीर और जघन्य अपराधों से संबंधित है और क्या विचाराधीन अपराध का समाज पर प्रभाव पड़ता है। गंभीर प्रकृति के मामलों में जो बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित करते हैं, इस न्यायालय को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत पक्षों के बीच किए गए समझौते के आधार पर कार्यवाही को रद्द करने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए।"

    इसके अलावा अदालत ने कहा कि वर्तमान मामला आईपीसी की धारा 307 के अपराध से संबंधित है जिसमें 14 आरोपी शामिल थे और हथियारों का इस्तेमाल किया गया।

    अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसे अपराधों का समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और इसलिए, जनहित में सुनवाई जारी रहनी चाहिए और ऐसे गंभीर और जघन्य अपराधों के आरोपी व्यक्तियों को दूसरों को समान अपराध करने से रोकने के लिए दंडित किया जाना चाहिए।

    इसलिए इस बात पर जोर देते हुए कि आवेदकों द्वारा कथित रूप से किए गए अपराध समाज के खिलाफ अपराध हैं और यह नहीं कहा जा सकता है कि वर्तमान विवाद प्रकृति में निजी है और बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित नहीं करता।

    नतीजतन, अदालत ने आवेदन की अनुमति देने से इनकार कर दिया और इसे खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटल : बुंडू और 13 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य

    साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एबी) 449

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