"पीड़िता शिक्षित होने के कारण धोखाधड़ी से सुरक्षित नहीं है": दिल्ली हाईकोर्ट ने शादी के बहाने महिला से बलात्कार के आरोपी नौसेना अधिकारी को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

18 Aug 2021 12:59 PM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    यह देखते हुए कि शिक्षित होने के नाते पीड़िता धोखाधड़ी से सुरक्षित नहीं है, दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय नौसेना के एक अधिकारी को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है। आरोपी पर महिला को शादी का झांसा देकर बलात्कार करने का आरोप है।

    जस्टिस योगेश खन्ना ने कहा, " इसमें कोई संदेह नहीं है कि पीड़िता एक शिक्षित महिला है, लेकिन क्या एक शिक्षित व्यक्ति धोखाधड़ी से सुरक्ष‌ित है। उत्तर "नहीं" होगा। तथ्य यह दिखाते हैं कि याचिकाकर्ता और अभियोक्ता के बीच ऐसे संबंध थे, जो अभियोक्ता में एक आशा जगाते थे कि याचिकाकर्ता उससे हर कीमत पर शादी करेगा। ऐसा सोचना उसके लिए अतार्किक नहीं था।"

    "इसमें कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता भारतीय नौसेना में एक वरिष्ठ अधिकारी है, इसलिए उसे अभियोक्ता की तुलना में अधिक जिम्मेदार व्यवहार दिखाने की आवश्यकता थी। क्या उसे सिर्फ मनोरंजन के लिए उसके साथ रहने के बहाने उसकी गरिमा के साथ खेलने की अनुमति दी जा सकती है और बाद में दावा किया जा सकता है कि वह उससे पैसे की उगाही कर रही है। इस तरह के आरोप अगर सबूत के साथ समर्थित नहीं हैं तो अपमानजनक हैं।"

    अदालत अधिकारी द्वारा उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 376, 328 और 506 के तहत दर्ज मामले में दायर एक अग्रिम जमानत याचिका पर विचार कर रही थी।

    अभियोक्ता के अनुसार, आरोपी ने दिसंबर, 2019 में दिल्ली में उसे रात के खाने के लिए बाहर ले जाकर उसके साथ यौन संबंध बनाए। यह आरोप लगाया गया था कि उसने उसके पेय में नशीला पदार्थ मिला दिया, जिसके बाद वह उसे अपने कमरे में ले गया जहां उसके साथ कथित रूप से बलात्कार किया गया था।

    उसने आरोप लगाया कि दिसंबर 2019 से जनवरी 2020 तक उसने शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए गए। जब उसने आरोपी को शिकायत दर्ज कराने की धमकी दी, तो उसने कथित तौर पर उससे कहा कि उसके पास उसकी नग्न तस्वीरें और वीडियो रिकॉर्डिंग हैं और वह उसे इंटरनेट पर अपलोड कर देगा, जिससे उसका करियर बर्बाद हो जाएगा।

    उसके साथ किसी भी तरह के शारीरिक संबंध से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता का यह मामला था कि पीड़िता ने उसे फोन करना शुरू कर दिया और उससे शादी करने के लिए जोर दिया, लेकिन उसने उसकी बात नहीं मानी।

    उसका यह भी मामला था कि उसने बार-बार अपने बैंक खाते में पैसे ट्रांसफर करने की मांग की, लेकिन उसने ऐसा करने में अपनी असमर्थता दिखाई।

    याचिकाकर्ता ने यह भी प्रस्तुत किया कि वे दोनों सशक्त व्यक्ति थे, अभियोक्ता एक उच्च शिक्षित महिला होने के कारण, दोनों पहली कथित घटना के डेढ़ साल पहले से बात कर रहे थे। ऐसा प्रस्तुत करते हुए, यह तर्क दिया गया कि उसने दिसंबर 2019 से जनवरी 2020 के बीच कभी कोई एफआईआर दर्ज नहीं की, इस प्रकार काफी देरी हुई।

    कोर्ट ने कहा, " यह तर्क कि, कथित संभोग, अन्यथा भी, दिसंबर 2019 या जनवरी 2020 में था और इसलिए डेढ़ साल तक उसने कभी कोई शिकायत दर्ज नहीं की....स्वीकार्य नहीं है क्योंकि याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर मार्च, 2021 में कन्नूर, केरल में अभियोक्ता को कोई संकेत दिए बिना कि वह दूसरी लड़की से शादी कर रहा है, कृत्य को दोहराया था। बल्कि, आरोप के अनुसार, 15.06.2021 को अभियोक्ता उसकी शादी के बारे में सुनकर चौंक गई और उसने 19.06.2021 को शिकायत दर्ज की, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है एफआईआर दर्ज करने में काफी देरी हुई।"

    अदालत ने यह भी दोहराया कि एफआईआर दर्ज करने में देरी को अभियोजन मामले पर संदेह करने और उसे खारिज करने के लिए "अनुष्ठानात्मक सूत्र" के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

    अदालत ने कहा , "यह आरोप कि वह पैसे के लिए यह सब कर रही है, उसकी चोट को और अधिक दर्द पहुंचाती है। अब तक की जांच से पता चलता है कि वह अपने अधीनस्थों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है और उसने अपने खिलाफ सबूत नष्ट‌ किए /हटा दिए हैं ।"

    याचिकाकर्ता को जमानत देने से इनकार करने वाले सत्र न्यायालय के आदेश पर विचार करते हुए अदालत ने कहा कि इससे पता चलता है कि उसने चैट, टेक्स्ट मैसेज और उनके बीच आदान-प्रदान किए गए फेसबुक संदेशों/ चैट के रूप में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को हटा दिया।

    अदालत ने कहा , "याचिकाकर्ता का यह कृत्य, प्रासंगिक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड/ डेटा को मिटाकर अपनी गलतियों को कवर करने के इरादे को दर्शाता है, जो अन्यथा तथ्यों की सही तस्वीर देता।"

    मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, याचिका को खारिज कर दिया गया था।

    शीर्षक: CDR कलेश मोहनन बनाम राज्य

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