यूएस रेजिडेंट को पावर ऑफ अटॉर्नी होल्डर के जरिए तलाक की याचिका दायर करने की इजाजत नहीं देने पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट की खिंचाई की

Brij Nandan

14 Nov 2022 5:04 AM GMT

  • यूएस रेजिडेंट को पावर ऑफ अटॉर्नी होल्डर के जरिए तलाक की याचिका दायर करने की इजाजत नहीं देने पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट की खिंचाई की

    Uttarakhand High Court

    उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने हाल ही में फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया कि वह अपने पिता की ओर से पेश किए गए पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 B के तहत आपसी सहमति से तलाक की मांग वाली एक व्यक्ति की याचिका पर विचार करे।

    चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस आर.सी. खुल्बे ने फैमिली कोर्ट के रुख पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि अधीनस्थ अदालत से उम्मीद की जाती है कि वह उच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार किए बिना उसके सामने आने वाले मुद्दों से निपटेगी।

    बेंच ने कहा,

    "फैमिली कोर्ट के सामने न केवल कई उच्च न्यायालयों, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के भी पर्याप्त उदाहरण दिए गए थे, जो हिंदू विवाह अधिनियम के तहत कार्यवाही में पक्षकार के प्रतिनिधित्व के अधिकार को उसके पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से मान्यता देते हैं। हम फैमिली कोर्ट का दृष्टिकोण पूरी तरह से विकृत और अप्रत्याशित पाते हैं।"

    यह आदेश केंटकी निवासी की तरफ से दायर एक याचिका पर पारित किया गया था जिसकी याचिका जुलाई में फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दी थी। उन्होंने, अपने पिता और उनकी पत्नी के माध्यम से संयुक्त रूप से हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर की थी।

    हल्द्वानी की फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि पति को व्यक्तिगत रूप से याचिका को प्राथमिकता देनी चाहिए और अदालत में मौजूद रहना चाहिए।

    जस्टिस सांघी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा,

    "फैमिली कोर्ट द्वारा अपीलकर्ता के पिता के माध्यम से याचिका पर उसकी पावर ऑफ अटॉर्नी के रूप में सुनवाई नहीं करने का एकमात्र कारण यह था कि उक्त पहलू पर इस न्यायालय द्वारा कोई मिसाल नहीं थी।"

    कोर्ट ने कहा कि पार्टियों ने अन्य उच्च न्यायालय की अदालतों के कई फैसलों पर भरोसा किया है जिसमें यह स्पष्ट रूप से माना गया है कि आपसी सहमति से तलाक लेने की याचिका पार्टियों के अटॉर्नी की शक्ति द्वारा स्थानांतरित की जा सकती है। अमर दीप बनाम हरवीन कौर, 2017 की सिविल अपील संख्या 11158 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी पक्षकारों ने हवाला दिया था।

    आक्षेपित आदेश को रद्द करते हुए अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता की उपस्थिति वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की जाएगी, क्योंकि वह यूएसए में रह रहा है और भारत आने की स्थिति में नहीं है।

    केस टाइटल: डॉ सुरजीत बनाम डॉ नमिता

    साइटेशन: ए.ओ. नंबर 376 ऑफ 2022

    कोरम: चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस आर.सी. खुल्बे

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