उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अश्लील वीडियो के जरिए महिला को ब्लैकमेल कर आत्महत्या के लिए उकसाने वाले आरोपी को जमानत देने से इनकार किया

Shahadat

10 Sep 2022 6:40 AM GMT

  • उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अश्लील वीडियो के जरिए महिला को ब्लैकमेल कर आत्महत्या के लिए उकसाने वाले आरोपी को जमानत देने से इनकार किया

    उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttrakhand High Court) ने हाल ही में विवाहित महिला को व्हाट्सएप के माध्यम से उसके अश्लील वीडियो साझा करके ब्लैकमेल करने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत दंडनीय आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया।

    जस्टिस रवींद्र मैथानी की पीठ ने पाया कि पीड़िता आवेदक-आरोपी से उसे छोड़ने, संबंध खत्म करने, अश्लील वीडियो हटाने के लिए भीख मांगती रही, लेकिन आवेदक ऐसा करने को तैयार नहीं हुआ।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह निश्चित रूप से किसी के अस्तित्व को बेकार बनाने की स्थिति है ... मृतक ने जो कदम उठाया है उससे पता चलता है कि उसे ऐसा करने के लिए उकसाया गया। वास्तव में यह मृतक के दिमाग को पढ़ने का तरीका है, जैसा कि उसके दिमाग में हुआ था, जब उसने अपना जीवन समाप्त कर लिया। इससे भी अधिक यह मृतक के दिमाग को पढ़ने का तरीका है, जिसने उसे आत्महत्या करने के लिए प्रभावित किया।"

    पीड़ित महिला विवाहित थी और जांच के दौरान यह पता चला कि आवेदक उसके संपर्क में था। उनकी चैट के माध्यम से यह पता चला कि वह उसे उसकी अश्लील तस्वीरों से धमका रहा था। आईओ ने इससे निष्कर्ष निकाला कि इन कृत्यों की प्रकृति उत्पीड़न है, जो उसकी आत्महत्या का कारण बना।

    आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर में उसका नाम नहीं है; मृतक के भाइयों, जिनसे सुनवाई के दौरान पूछताछ की गई, उन्होंने उसके खिलाफ कुछ भी नहीं कहा। उन्होंने मृतक के पति के खिलाफ आरोप लगाए, जिसने मृतक को छोड़ दिया और उसकी उपेक्षा की। वह मृतक को पीटता था। यह तर्क दिया गया कि आवेदक के खिलाफ कोई सबूत नहीं है और आवेदक पिछले एक साल से हिरासत में है।

    स्टेट काउंसल ने प्रस्तुत किया कि व्हाट्सएप चैट दिनांक 08.06.2020 की है, जिसे पूरक जवाबी हलफनामे के साथ दायर किया गया है।

    अदालत ने राज्य द्वारा प्रस्तुत चैट का अवलोकन किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यह प्रथम दृष्टया साबित होता है कि वास्तव में आवेदक के कार्यों ने मृतक को निराश किया और उसे ऐसी स्थिति में डाल दिया जहां उसके लिए जीवित रहना मुश्किल हो गया।

    उपरोक्त परिस्थितियों के मद्देनजर अदालत का विचार था कि वर्तमान मामला जमानत के लिए उपयुक्त नहीं है। तदनुसार इसे खारिज कर दिया।

    केस शीर्षक: राजेश सिंह भंडारी बनाम उत्तराखंड राज्य

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