उत्तराखंड हाईकोर्ट ने लाउडस्पीकरों के लिए अधिकतम शोर स्तर निर्धारित करने वाले अपने पूर्व के आदेश में किया संशोधन

LiveLaw News Network

24 July 2020 11:24 AM GMT

  • उत्तराखंड हाईकोर्ट ने लाउडस्पीकरों के लिए अधिकतम शोर स्तर निर्धारित करने वाले अपने पूर्व के आदेश में किया संशोधन

    Uttarakhand High Court

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपने 2018 के फैसले में जारी उस निर्देश को संशोधित कर दिया है,जिसमें लाउडस्पीकर के लिए अधिकतम शोर की सीमा (स्तर) निर्धारित किया गया था।

    उक्त निर्णय में, राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया गया था कि लाउडस्पीकर या सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली का उपयोग किसी भी व्यक्ति (जिसमें धार्मिक संस्था मंदिर,मस्जिद और गुरूद्वारें भी शामिल हैं)द्वारा दिन के समय भी प्राधिकरण की लिखित अनुमति के बिना न किया जाए। वहीं अनुमति लेते समय यह अंडरटेकिंग भी देनी होगी कि शोर का स्तर 5डीबी(ए) परिधीय शोर स्तर से अधिक नहीं होगा। इस निर्देश को अब संशोधित कर दिया गया है,जिसे इस प्रकार पढ़ा जाएगा (बोल्ड अक्षरों में संशोधित भाग)-

    राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया गया था कि लाउडस्पीकर या सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली का उपयोग किसी भी व्यक्ति (जिसमें धार्मिक संस्था मंदिर,मस्जिद और गुरूद्वारें भी शामिल हैं)द्वारा दिन के समय भी प्राधिकरण की लिखित अनुमति के बिना न किया जाए। वहीं अनुमति लेते समय यह अंडरटेकिंग भी देनी होगी कि शोर का स्तर ''उस क्षेत्र के लिए निर्दिष्ट परिवेश शोर मानकों से 5डीबी(ए) परिधीय शोर स्तर से अधिक नहीं होगा,जहां पर यह किसी निजी स्थान की सीमाओं में उपयोग किया जाएगा।''

    न्यायालय ने यह संशोधन भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के साथ ही सीपीसी की धारा 151 और 152 के तहत दायर एक आवेदन पर विचार करने के बाद किया है। यह आवेदन पूरे उत्तराखंड राज्य के सभी मस्जिदों की वक्फ के मुतवल्ली की तरफ से एक प्रतिनिधि ने दायर किया था।

    शोर प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 और निर्णय के प्रासंगिक प्रावधानों का उल्लेख करते हुए मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति लोक पाल सिंह की पीठ ने कहा कि-

    ''डिवीजन बेंच का इरादा यह नहीं था कि किसी सार्वजनिक स्थान पर शोर का स्तर 5डीबी(ए) से अधिक नहीं होना चाहिए, क्योंकि रूल्स 2000 और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में निर्धारित किए गए नियमों के अनुसार ,पर्यावरण व ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए, किसी क्षेत्र के परिवेश शोर मानकों से परिधीय शोर स्तर 10डीबी (ए)/ 5डीबी(ए) से अधिक नहीं होना चाहिए (अनुसूची में निर्धारित स्तर)।

    डिवीजन बेंच के आदेश के पैरा 'i' में निर्देश दिया गया है कि शोर का स्तर 5डीबी (ए) से अधिक नहीं होना चाहिए। परंतु डिवीजन बेंच के उक्त आदेश में पहले के किसी भी भाग में यह निर्देश नहीं पाया गया है या सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश में,जिसको संदर्भित किया गया था या उन रूल्स 2000 में,जिन पर डिविजन बेंच ने भरोसा किया था। इसलिए, यह स्पष्ट है कि पैरा 'i' में प्रयोग किए गए अंतिम शब्द ''कि शोर का स्तर 5डीबी (ए) परिधीय शोर स्तर से अधिक नहीं होना चाहिए'' डिवीजन बेंच द्वारा की गई एक आकस्मिक त्रुटि है और बेंच का ऐसा कोई इरादा नहीं था।''

    न्यायालय ने यह भी पाया कि डिवीजन बेंच के पहले के आदेश के अनुपालन में, राज्य सरकार द्वारा एक आदेश जारी किया गया था। परंतु यह तथ्य भी न्यायालय को डिविजन बेंच के आदेश में की गई एक आकस्मिक त्रुटि या चूक को ठीक करने के लिए सीपीसी की धारा 152 के तहत निहित अपनी शक्तियों का प्रयोग करने से अक्षम नहीं करेगा। निश्चित रूप से, वह संतुष्ट है कि आदेश में एक आकस्मिक भूल या गलती हुई है,जिसे सुधारे जाने की आवश्यकता है।

    इस फैसले में उन सिद्धांतों पर भी चर्चा की गई है ,जो सीपीसी की धारा 152 के तहत दायर आवेदन पर विचार करते समय लागू होते हैं।

    पीठ ने कहा कि-

    दो महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं जिनके आधार पर सीपीसी की धारा 152 अधिनियमित या एनैक्टड की गई है। सबसे पहला, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, अधिकतम यह है कि न्यायालय का एक कार्य किसी व्यक्ति से पक्षपात नहीं करेगा। दूसरा यह है कि न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि उसके रिकार्ड सही हो और वे मामलों की सही स्थिति का प्रतिनिधित्व करते हों। ऐसा इसलिए है ,क्योंकि इन्हें न्यायालयों के सर्वोच्च कर्तव्यों में शामिल माना जाता है। सीपीसी की धारा 152 में यह भी प्रदान किया गया है, अगर किसी पक्षकार की तरफ से ऐसी गलती के सुधार के लिए कोई कदम न भी उठाया जाए तो भी न्यायालय अपने स्वत विवेक अनुसार उसमें सुधार कर सकता है।

    हालांंकि, पीठ ने उन मुद्दों पर जवाब देने से इनकार कर दिया कि क्या आवेदक मस्जिदों में इस्तेमाल होने वाले लाउडस्पीकरों के लिए एक मौलिक अधिकार का दावा कर सकता है ? क्या इलाहाबाद हाईकोर्ट का हालिया आदेश सरकार के उस आदेश के क्षेत्र और वैधता को कवर करता है, जो सरकार ने डिवीजन बेंच के पूर्व के आदेश के अनुसार जारी किया था। पीठ ने माना कि यह सभी मामले सीपीसी की धारा 152 के तहत की जाने वाली कार्यवाही के लिए असंगत या असंबद्ध हैं।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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