उत्तर प्रदेश गोहत्या निरोधक कानून का दुरुपयोग हो रहा है, किसी भी मांस को गोमांस बता दिया जाता है : इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

26 Oct 2020 10:16 AM GMT

  • उत्तर प्रदेश गोहत्या निरोधक कानून का दुरुपयोग हो रहा है, किसी भी मांस को गोमांस बता दिया जाता है : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार को निर्दोष व्यक्तियों को फंसाने के लिए उत्तर प्रदेश गोहत्या निरोधक कानून, 1955 के प्रावधानों के लगातार दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की।

    उक्त अधिनियम की धारा 3, 5 और 8 के तहत गोहत्या और गोमांस की बिक्री के आरोपी एक रहमुद्दीन की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकल पीठ ने कहा,

    "कानून का निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ दुरुपयोग किया जा रहा है। जब भी कोई मांस बरामद किया जाता है, तो इसे सामान्य रूप से गाय के मांस (गोमांस) के रूप में दिखाया जाता है, बिना इसकी जांच या फॉरेंसिक प्रयोगशाला द्वारा विश्लेषण किए बगैर। अधिकांश मामलों में, मांस को विश्लेषण के लिए नहीं भेजा जाता है। व्यक्तियों को ऐसे अपराध के लिए जेल में रखा गया है जो शायद किए नहीं गए थे और जो कि 7 साल तक की अधिकतम सजा होने के चलते प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा ट्रायल किए जाते हैं। "

    ये टिप्पणी तब आईं जब पीठ को सूचित किया गया कि आरोपी-आवेदक एक महीने से अधिक समय से जेल में था, कथित तौर पर एफआईआर में उसके खिलाफ कोई आरोप नहीं है। यह भी आरोप लगाया गया कि आवेदक को मौके से गिरफ्तार नहीं किया गया था।

    इस प्रकार, सामग्री को रिकॉर्ड पर विचार करते हुए, अदालत ने आवेदक को संबंधित अदालत की संतुष्टि के लिए दो समान राशि, एक व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करने और अन्य जमानत शर्तों के अधीन जमानत निर्धारित करने की अनुमति दी।

    उच्च न्यायालय ने पाया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के बड़े जनादेश के संदर्भ में और दाताराम सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2018) 3 एससीसी 22 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार ये जमानत के लिए एक मामला है।

    इससे पहले, उच्च न्यायालय ने राज्य में परित्यक्त मवेशियों और आवारा गायों के खतरे के संबंध में भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की।

    यह कहा,

    "जब भी गायों को बरामद दिखाया जाता है, कोई उचित जब्ती मेमो तैयार नहीं किया जाता है और किसी को नहीं पता होता है कि गाय पुनर्प्राप्ति के बाद कहां जाती हैं। गोशालाएं दूध ना देने वाली गायों या बूढ़ी गायों को स्वीकार नहीं करती हैं और उन्हें सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसी तरह दूध देने के बाद गायों का मालिक, गायों को सड़कों पर घूमने के लिए, नाली / सीवर का पानी पीने के लिए और कचरा, पॉलिथीन आदि खाने के लिए छोड़ देता है। इसके अलावा, सड़क पर गायों और मवेशियों से लिए खतरा होता है और उनके कारण मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी की रिपोर्ट भी आती है। ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालक जो अपने पशुओं को खिलाने में असमर्थ हैं, उन्हें छोड़ देते हैं।उन्हें स्थानीय लोगों और पुलिस के डर से राज्य के बाहर नहीं ले जाया जा सकता है। अब कोई चारागाह नहीं है। इस प्रकार, ये जानवर यहां-वहां भटकते हैं और फसलें नष्ट करते हैं।"

    यह भी कहा गया कि,

    "पहले, किसान 'नीलगाय' ( मृग की प्रजाति) से डरते थे, अब उन्हें अपनी फसलों को आवारा गायों से बचाना होगा। चाहे गाय सड़कों पर हों या खेतों पर, उनके परित्याग का समाज पर बड़े पैमाने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अगर उत्तर प्रदेश गोहत्या निरोधक कानून को उसकी भावना के तहत लागू किया जाना है तो उन्हें गाय आश्रय में या मालिकों के साथ रखने के लिए कार्यवाही की जानी चाहिए।"

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