आर्बिट्रेशन कार्यवाही में AI से समय की बचत संभव, गोपनीयता चिंताओं के कारण नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता: जस्टिस विक्रम नाथ

Praveen Mishra

20 Sept 2025 4:15 PM IST

  • आर्बिट्रेशन कार्यवाही में AI से समय की बचत संभव, गोपनीयता चिंताओं के कारण नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता: जस्टिस विक्रम नाथ

    दिल्ली आर्बिट्रेशन वीकेंड 2025 (DAW) के तहत आयोजित सत्र 'Arbitration 2.0: आर्बिट्रेशन की दक्षता बढ़ाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अन्य तकनीकों का समावेश' में बोलते हुए, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि कानून, भले ही वैज्ञानिक क्षेत्र न हो, लेकिन यह कानूनी समुदाय को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) अपनाने से हतोत्साहित नहीं करता।

    इस पैनल में मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एन. आनंद वेंकटेश, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, मार्क डेम्पसी (SC) और टिम लॉर्ड (KC), ब्रिक कोर्ट चेम्बर भी शामिल थे।

    जस्टिस नाथ ने कहा कि आर्बिट्रेशन को अदालत की सामान्य कार्यवाही के विकल्प के रूप में अपनाया गया क्योंकि यह तेज़ और प्रभावी है। लेकिन आर्बिट्रेशन स्थिर नहीं रह सकता, इसे लगातार विकसित होना होगा। आज आर्बिट्रेशन को तेज़ विवाद समाधान के लिए अपनाया जा रहा है और AI समय की परिभाषा ही बदल सकता है।

    उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (SIAC) ने एक नया गेटवे प्लेटफॉर्म शुरू किया है, जो आर्बिट्रेशन केस मैनेजमेंट को डिजिटाइज और सरल बनाता है। लेकिन, AI विवादों का निपटारा करने के लिए आर्बिट्रेशन का विकल्प नहीं हो सकता।

    जस्टिस नाथ ने कहा कि AI मानव निर्णय का विकल्प नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली शोध सहायक है। यह भाषा की बाधाओं को तोड़ने वाला अनुवादक है, और ऐसा विश्लेषक है जो हमें वे पैटर्न दिखा सकता है जिन्हें हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

    जस्टिस एन. आनंद वेंकटेश ने कहा कि AI अब यह समझने लगा है कि हम कौन हैं और हमें क्या चाहिए। इसे मौखिक साक्ष्यों की कमियों को पहचानने और दलीलों की परीक्षा के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन असली चुनौती तब आएगी जब भविष्य में AI एक उपकरण से आगे बढ़कर स्वयं आर्बिट्रेटर बनकर विवादों का निपटारा करेगा।

    तुषार मेहता ने कहा कि अभी यह तय करने का समय नहीं आया है कि AI को निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाए। जहां भी AI का उपयोग हुआ है, वह बुरी तरह विफल रहा है। यह AI hallucination (यानी नकली निर्णय बनाना, दस्तावेज़ों का ट्रैक खोना आदि) का शिकार हुआ है। लेकिन असली खतरा है एल्गोरिदमिक बायस (पक्षपात)।

    हाल ही में अमेरिका में ट्रैफिक उल्लंघनों पर विवादों का निपटारा करने में AI का इस्तेमाल हुआ, जिसमें यह पाया गया कि वह रंगभेदी महिलाओं के खिलाफ पक्षपाती था। जब तक हम AI की विश्वसनीयता को लेकर आश्वस्त नहीं होते, उस पर भरोसा करना खतरनाक है।

    मार्क डेम्पसी (SC) ने कहा कि AI का इस्तेमाल संक्षेप तैयार करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि, इस सारांश की जिम्मेदारी AI पर नहीं बल्कि संबंधित पक्ष या आर्बिट्रेटर पर होगी।

    टिम लॉर्ड (KC) ने कहा कि मानव ढांचे में भी कार्यों का विभाजन होता है। उदाहरण के लिए, किंग्स काउंसिल अपने जूनियर पर पहला ड्राफ्ट तैयार करने के लिए निर्भर करता है। इसी तरह आर्बिट्रेशन पैनल भी AI पर काम सौंप सकता है, लेकिन अंतिम निर्णय AI का नहीं, बल्कि आर्बिट्रेशन पैनल का ही होगा।

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