उत्तर प्रदेश 'धर्मांतरण विरोधी' कानून | बाइबल बांटना, भंडारा आयोजित करना धार्मिक परिवर्तन के लिए 'प्रलोभन' नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

7 Sep 2023 5:34 AM GMT

  • उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी कानून | बाइबल बांटना, भंडारा आयोजित करना धार्मिक परिवर्तन के लिए प्रलोभन नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अच्छी शिक्षा देना, पवित्र बाइबिल की किताबें बांटना और भंडारा करना उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021 (The Uttar Pradesh Prohibition of Unlawful Conversion of Religion Act 2021) के तहत धर्म परिवर्तन के लिए 'प्रलोभन' नहीं है।

    जस्टिस शमीम अहमद की पीठ ने यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 की धारा 4 के दायरे की भी व्याख्या की [एफआईआर दर्ज करने में सक्षम व्यक्ति]। अदालत ने अपनी इस व्याख्या में यह बताया कि अधिनियम की धारा 3 के तहत जबरदस्ती धर्मांतरण अपराध के संबंध में कौन व्यक्ति एफआईआर दर्ज करा सकता है।

    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उक्त प्रावधान के आदेश के अनुसार, धर्मांतरित हो चुके व्यक्ति के माता-पिता, भाई, बहन या रक्त संबंध, विवाह या गोद लेने जैसे संबंध में उससे जुड़े व्यक्ति ही इस तरह के धर्मांतरण के आरोप से संबंधित प्रथम सूचना रिपोर्ट के लिए आवेदन कर सकता है। लोगों के अलावा, और कोई व्यक्ति धर्मांतरण के संबंध में एफआईआर दर्ज नहीं कर सकता है।

    न्यायालय ने दो ईसाई व्यक्तियों (जोस पापाचेन और शीजा) को जमानत देते हुए ये टिप्पणियां कीं। उन पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के समुदायों के बीच विभिन्न प्रलोभनों द्वारा धर्म परिवर्तन (हिंदू धर्म से ईसाई धर्म में) में सहायक होने का आरोप लगाया गया है।

    उन पर यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम की धारा 3 और 5 (1) और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3 (1) (डीएचए) के तहत मामला दर्ज किया गया। इस साल की शुरुआत में इन दो व्यक्तियों को अम्बेडकरनगर जिले में भाजपा पदाधिकारी की शिकायत के आधार पर गिरफ्तार किया गया था।

    इससे पहले इस साल मार्च में विशेष न्यायाधीश एस.सी./एस.टी. एक्ट, अम्बेडकर नगर ने उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया था।

    आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आरोपों और दोनों पक्षकारों द्वारा दी गई दलीलों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने पाया कि यह दिखाने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि अपीलकर्ताओं ने सामूहिक धर्मांतरण के लिए उक्त ग्रामीणों पर कोई अनुचित प्रभाव या प्रलोभन का इस्तेमाल किया है।

    न्यायालय ने कहा कि इसके बजाय अपीलकर्ता बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने और ग्रामीणों के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने में शामिल है। इसलिए ऐसी कोई सामग्री मौजूद नहीं है, जो जबरदस्ती धर्मांतरण की ओर इशारा करे।

    अदालत ने कहा,

    "...शिकायतकर्ता के पास वर्तमान एफआईआर दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं है, जैसा कि अधिनियम, 2021 की धारा 4 के तहत प्रावधान किया गया है। फिर अपीलकर्ताओं के लिए वकील के तर्क में भी बल दिखाई देता है कि अच्छी शिक्षाएं देना, पवित्र बाइबिल की किताबें बांटना, बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना, ग्रामीणों की सभा आयोजित करना, भंडारा करना और ग्रामीणों को विवाद न करने और शराब न पीने की हिदायत देना प्रलोभन नहीं है।''

    इसके साथ ही अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में अधिनियम, 2021 की धारा 4 के तहत शिकायतकर्ता के पास दर्ज FIR को वास्तव में दर्ज कराने का कोई आधार नहीं था।

    तदनुसार, अपील की अनुमति दी गई और आरोपियों को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया।

    अपीयरेंस: अपीलकर्ता के वकील: विश्व नाथ प्रताप सिंह और प्रतिवादी के वकील: जी.ए.

    केस टाइटल- जोस पापाचेन और अन्य बनाम यूपी राज्य, के माध्यम से. प्रिं. सचिव. होम, लखनऊ. और अन्य [आपराधिक अपील नंबर- 877/2023]

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