बेईमान वादियों ने याचिका रद्द होने से बचने के लिए अग्रिम जमानत याचिका वापस ली, और कुछ समय बाद फिर दायर की; न्यायिक समय बर्बाद किया: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
Avanish Pathak
15 Jun 2022 11:17 AM IST
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में बिना किसी पर्याप्त आधार/परिस्थितियों में बदलाव के, लगातार जमानत आवेदन दाखिल करने की प्रैक्टिस का विरोध किया।
कोर्ट ने "बेईमान वादियों" द्वारा अपनाई जा रही दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति पर भी चिंता व्यक्त की, जिसमें अग्रिम जमानत का तर्क दिया जाता है और जब अदालत याचिका को खारिज करने वाली होती है तो विस्तृत प्रतिकूल आदेश से बचने के लिए, वकील याचिका वापस लेने का प्रयास करता है और उसके कुछ दिन बाद बिना किसी औचित्य के दूसरी अग्रिम जमानत याचिका दायर करता है।
जस्टिस विकास बहल ने कहा,
"इससे अदालत का समय बर्बाद होता है और अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग भी होता है और उक्त प्रथा पर सख्ती से अंकुश लगाने की जरूरत है।"
झूठी एफआईआर दर्ज कर शिकायतकर्ता को झूठा फंसाने के लिए जाली दस्तावेज बनाने के मामले में याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देने के लिए दूसरी याचिका पर विचार करते हुए यह कोर्ट ने यह टिप्पणी की। यह देखा गया कि दूसरी अग्रिम जमानत याचिका न केवल सुनवाई योग्य नहीं है बल्कि गलत भी है और इस प्रकार, 50,000 रुपये के जुर्माने के साथ खारिज करने योग्य है।
पीठ ने आगे कहा कि गुण-दोष के आधार पर भी अग्रिम जमानत की मौजूदा दूसरी याचिका खारिज किए जाने योग्य है।
अदालत ने देखा कि जब पहली अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई के लिए आई, तो याचिकाकर्ता के वकील ने यह आश्वासन देते हुए वापस लेने की अनुमति मांगी कि याचिकाकर्ता 10 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण कर देगा, लेकिन उसका पालन करने के बजाय, याचिकाकर्ता ने उक्त 10 दिनों की अवधि समाप्त होने के बाद मौजूदा दूसरी अग्रिम जमानत याचिका दायर करने का विकल्प चुना।
उपरोक्त अवलोकन को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने माना कि पहली अग्रिम जमानत याचिका को वापस लेना स्पष्ट रूप से एक विस्तृत प्रतिकूल आदेश से बचने के लिए था और वर्तमान दूसरी अग्रिम जमानत याचिका दायर करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
अदालत ने आगे कहा कि सजा के निलंबन के लिए बाद में/क्रमिक नियमित जमानत आवेदन दाखिल करने और बाद में/क्रमिक अग्रिम जमानत आवेदन दाखिल करने के बीच एक बड़ा अंतर है।
नियमित जमानत आवेदनों के मामले में, जहां एक व्यक्ति पहले से ही हिरासत में है, किसी भी अनुवर्ती नियमित जमानत आवेदन पर, भले ही पहले को वापस ले लिया गया हो, सामान्य रूप से विचार किया जाएगा, क्योंकि "आगे की हिरासत" का तथ्य सामान्य रूप से बदली हुइ्र परिस्थिति में होगा। सजा के निलंबन के मामले में भी यही स्थिति होगी। हालांकि, अग्रिम जमानत के मामले को उसी आधार पर नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने कहा, इस न्यायालय ने भी गुण-दोष के आधार पर मामले पर विचार किया है और यह स्पष्ट हो जाता है कि याचिकाकर्ता मुख्य आरोपी होने के नाते, जिसने फर्जी हलफनामा तैयार करने के बाद शिकायतकर्ता पर दबाव डाला और परेशान किया, वह अग्रिम जमानत की रियायत के लायक नहीं है। कोर्ट ने आगे कहा कि कथित अपराधों को अंजाम देने वाली घटनाओं की श्रृंखला को पूरा करने के लिए उसकी हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।
तदनुसार, दूसरी याचिका को जुर्माने के साथ खारिज कर दिया गया था।
केस टाइटल: भुनेश बनाम हरियाणा राज्य