कर्मचारी के इंटर कैडर ट्रांसफर के अनुरोध से राज्य का अनुचित इनकार उसके पारिवारिक जीवन के लिए सम्मान की मांग के अधिकार को प्रभावित करता है: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

17 Nov 2021 11:20 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि इंटर कैडर ट्रांसफर की मांग कर रहे कर्मचारी के अनुरोध को राज्य द्वारा अनुचित रूप से अस्वीकार करना, ऐसे व्यक्ति के अपने या अपने पारिवारिक जीवन के लिए सम्मान की मांग करने के अधिकार को प्रभावित करता है।

    जस्टिस राजीव शकधर और ज‌स्टिस तलवंत सिंह की पीठ ने कहा,

    "हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि सार्थक पारिवारिक जीवन का अधिकार, जो एक व्यक्ति को एक पूर्ण जीवन जीने की अनुमति देता है और उसकी शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक एकता को बनाए रखने में मदद करता है, उसे संविधान के अनुच्छेद 21 में जगह मिलेगी। इसलिए, जब राज्य अनुचित रूप से एक कर्मचारी के इंटर कैडर ट्रांसफर के अनुरोध को अस्वीकार करता है (इस मामले में याचिकाकर्ता) तो यह ऐसे व्यक्ति के अपने पारिवारिक जीवन के लिए सम्मान की मांग करने के अधिकार को प्रभाव‌ित करता है।"

    न्यायालय आईएएस अधिकारी लक्ष्मी भव्य तन्नेरू द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा दो फरवरी 2021 को पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी। उन्होंने एक आईएएस ऑफ‌िसर से विवाह के बाद प्राधिकरण से इंटर-कैडर ट्रांसफर के ल‌िए अनुरोध किया था, जिसे खारिज़ कर दिया गया था।

    याचिकाकर्ता को एक सितंबर 2015 को पश्चिम बंगाल कैडर आवंटित किया गया था। उसने 25 मार्च 2016 को राजा गोपाल सुनकारा से विवाह किया था, जो तमिलनाडु कैडर से संबंधित एक आईएएस अधिकारी थे।

    याचिकाकर्ता का मामला यह था कि ट्रिब्यूनल ने आदेश को रद्द करने के बाद मामले को रिमांड पर ले लिया था, जबकि मांगी गई राहत यह थी कि उन्हें पश्चिम बंगाल राज्य को भारत सरकार कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग को इंटर-कैडर ट्रांसफर के संबंध में अपनी अनापत्ति संप्रेषित करने के लिए एक निर्देश जारी करना था।

    जब कार्यवाही चल रही थी, पश्चिम बंगाल राज्य ने दिनांक दो अगस्‍त 2021 को एक नया आदेश पारित किया था, जिसमें उसने एक बार फिर याचिकाकर्ता को अनापत्ति देने के अनुरोध को खारिज कर दिया था।

    इस प्रकार याचिकाकर्ता की ओर से यह प्रस्तुत किया गया था कि उसके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया गया और अधिकारियों की कमी के आधार पर 25 नवंबर 2016 को इंटर कैडर ट्रांसफर के उसके अनुरोध को खारिज कर दिया गया, जबकि समान आधार पर कई अन्य अधिकारियों के अनुरोध स्वीकार कर लिए गए।

    याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि पश्चिम बंगाल राज्य की ओर से उसके इंटर-कैडर ट्रांसफर को प्रभावी करने के लिए अनापत्ति जारी करने में विफलता ने उसके कल्याण और पारिवारिक संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित किया।

    यह भी तर्क दिया गया था कि पश्चिम बंगाल राज्य की उक्त कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ था। दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल राज्य ने प्रस्तुत किया कि इंटर-कैडर ट्रांसफर केवल राज्य की सहमति से ही किया जा सकता है, जो 1954 संवर्ग नियमों के नियम 5 (2) के अनुसार था।

    यह भी तर्क दिया गया कि राज्य में COVID-19 महामारी के कारण, प्रशासन को अधिकारियों की सेवाओं की सख्त जरूरत थी, जिन्हें महामारी से निपटने का काम सौंपा गया था।

    कोर्ट ने कहा,

    "पश्चिम बंगाल का अपने फैसले का बचाव करने का प्रयास, महामारी की घटना का हवाला देकर इंटर-कैडर ट्रासफर के लिए याचिकाकर्ता के अनुरोध को अस्वीकार करने का प्रयास हमें प्रभावित नहीं करता है..। याचिकाकर्ता ने महामारी के दौरान विवाह के आधार पर अन्य राज्य सरकारों द्वारा स्थानांतरित किए गए अधिकारियों का विवरण रिकॉर्ड पर रखा है...।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि विवाह के आधार पर किसी अधिकारी द्वारा इंटर-कैडर ट्रांसफर के लिए किए गए अनुरोध से इनकार तभी किया जा सकता है जब यह ठोस कारणों से समर्थित हो, क्योंकि ऐसा निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है।

    इसलिए न्यायालय ने दो आदेशों को रद्द कर दिया और पश्चिम बंगाल राज्य को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर इंटर-कैडर ट्रांसफर के उसके अनुरोध को प्रभावी बनाने के लिए अनापत्ति निर्देश जारी करे।

    शीर्षक: लक्ष्मी भव्य तन्नेरु बनाम यून‌ियन ऑफ इंडिया और अन्‍य।

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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