अगर पीड़िता और गवाहों के साक्ष्य विश्वसनीय हैं तो जांच अधिकारी की लापरवाही अभियोजन मामले को खारिज करने का वारंट नहीं: पटना हाईकोर्ट

Shahadat

5 Oct 2023 5:40 AM GMT

  • अगर पीड़िता और गवाहों के साक्ष्य विश्वसनीय हैं तो जांच अधिकारी की लापरवाही अभियोजन मामले को खारिज करने का वारंट नहीं: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 364 और 365 के तहत अपहरण के लिए पांच व्यक्तियों की सजा बरकरार रखते हुए कहा कि जांच में कुछ खामियों के बावजूद, अगर पीड़ित की गवाही भरोसेमंद है तो अभियोजन के मामले को खारिज नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस आलोक कुमार पांडे और जस्टिस आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने कहा,

    एपीपी का तर्क इस तथ्य के आलोक में काफी तर्कसंगत है कि पूरे मुकदमे के दौरान पीड़िता का बयान बरकरार रहा। दूसरी ओर, मकसद के बिंदु पर अपीलकर्ताओं का तर्क और आई.ओ. की ओर से चूक हुई। प्रत्यक्षदर्शी के कथन के आलोक में मान्य नहीं हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जांच दोषपूर्ण तरीके से की गई है। लेकिन केवल आई.ओ. की अव्यवसायिकता के कारण अभियोजन के मामले को खारिज नहीं किया जा सकता।

    कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पीड़ित का बयान काफी ठोस और विश्वसनीय है और जिरह के दौरान उसका बयान बरकरार रहा, जिसकी जांच आईओ ने पुष्टि की है।

    अभियोजन का मामला 2012 में चेतन शंकर राजहंस के लापता होने के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे कथित तौर पर अपीलकर्ता डबलू मंडल, बब्लू मंडल, दीपक मंडल और गिरिजा यादव द्वारा जबरन वाहन में ले जाया गया। सूचक ने आगे आरोप लगाया कि इन अपीलकर्ताओं ने पहले सूचक के रिश्तेदार की हत्या की थी।

    पीठ के समक्ष सवाल यह था कि क्या अपीलकर्ताओं को आईपीसी की धारा 364, 365 के सपठित धारा 34 के तहत दोषी ठहराया गया? क्या यह उचित है या नहीं? इसमें कहा गया कि सेशन ट्रायल के दौरान, बिनोद कुमार झा (आई.ओ.) के बजाय राम किशोर शर्मा (आई.ओ.) की जांच की गई।

    साक्ष्यों और गवाहों की गवाही की सावधानीपूर्वक जांच करने के बाद अदालत ने पीड़िता के बयान को सुसंगत और विश्वसनीय पाया, पूरे मुकदमे के दौरान अपरिवर्तित रहा। अदालत ने आई.ओ. की गवाही के आधार पर पीड़ित के बयान की पुष्टि की और सभी अपीलकर्ताओं की पहचान की। हालांकि फिरौती की कोई मांग नहीं की गई और पीड़ित के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया गया। इसलिए अदालत ने आईपीसी की धारा 364 और 365 सपठित धारा 34 के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा।

    हालांकि, अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता अरबिंद यादव प्रारंभिक अपहरण के दौरान मौजूद नहीं है, लेकिन जब पीड़िता ने पुलिस स्टेशन में उसकी पहचान की तो वह घटना से जुड़ा था। इसलिए उसे आईपीसी की धारा 364 के तहत दोषी ठहराया गया। हालांकि, उसको ख़ारिज कर दिया गया, जबकि आईपीसी की धारा 365/34 के तहत उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखी गई।

    अदालत ने अपने फैसले में दीपक मंडल, डबलू मंडल, बब्लू मंडल और गिरिजा यादव की सजा कम कर दी गयी अवधि तक कर दी। अदालत ने उन्हें तत्काल जेल से रिहा करने का निर्देश दिया, बशर्ते कि किसी अन्य मामले में उनकी आवश्यकता न हो, बशर्ते कि उन पर लगाए गए जुर्माने का भुगतान और वसूली की जाए।

    अपीलकर्ता के लिए वकील: रंजन कुमार झा, राणा प्रताप सिंह, विकास कुमार और राज्य के लिए वकील: डी.के.सिन्हा, सूचनादाता के लिए एपीपी दिवाकर उपाध्याय।

    केस टाइटल: दीपक मंडल बनाम बिहार राज्य

    केस नंबर: आपराधिक अपील (डीबी) नंबर 384, 2015

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