कोई भी टीकाकरण, जब तक स्व-प्रशासित ना हो, किसी भी शैक्षणिक संस्थान की वाणिज्यिक मानसिकता के वायरस को ठीक नहीं कर सकताः गुजरात हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

23 April 2021 3:08 PM GMT

  • कोई भी टीकाकरण, जब तक स्व-प्रशासित ना हो, किसी भी शैक्षणिक संस्थान की वाणिज्यिक मानसिकता के वायरस को ठीक नहीं कर सकताः गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने एक मामले को, जिसमें पेनाल्टी और लेट पेमेंट के चार्ज न देने पर एक मे‌ड‌िकल संस्‍थान ने एक छात्र की मार्कशीट और अन्य दस्तावेजों को रोक ‌लिया था, निस्तारित करते हुए कहा, "कोई टीकाकरण, जब तक स्व-प्रशासित ना हो, किसी भी शैक्षणिक संस्थान द्वारा, एक या दूसरे मद में, या एक या किसी अन्य बहाने से, छात्रों पर अत्यधिक मात्रा में चार्ज लगाने की वाणिज्यिक मानसिकता के वायरस की बुराई को, जिससे शिक्षा की अवधारणा की पवित्रता कमतर होती है, को रोक नहीं सकता है।"

    जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ एक छात्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अपने संस्थान को यह निर्देश देने की मांग की थी कि पेनाल्टी नहीं चुकाने और लेट पेमेंट के चार्ज का भुगतान नहीं करने के कारण उसकी मार्कशीट, डिग्री सर्टिफिकेट, अटेम्‍प्ट सर्टिफिकेट और इंटर्नश‌िप के लिए परिणामी हक का ना रोका जाए।

    मामला

    आवेदक-याचिकाकर्ता ने एमबीबीएस की पढ़ाई सूरत नगर निगम चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान संस्थान, सूरत से पूरी की थी। यह सूरत नगर निगम द्वारा संचालित एक स्व-वित्तपोषित महाविद्यालय है।

    06 फरवरी, 2021 के एक पत्र में, संस्थान ने छात्र को कक्षाओं और इस परीक्षा में इस आधार पर रोक दिया कि उसने ट्यूशन फीस, लेट फीस और अन्य शुल्क का भुगतान नहीं किया है।

    कुल 11,87,875 / - की वसूली की मांग की गई और संस्थान की ओर से आरोप लगाया गया कि फीस के लिए याचिकाकर्ता-छात्र की ओर से जमा किया गया चेक बाउंस हो गया था।

    इसके अलावा 02,43,095 रुपए और 02,31,326 रुपए की मांग चेक रिटर्न चार्ज के रूप में की गई। इस आधार पर ही छात्र को रोक दिया गया था।

    इसलिए, याचिका दायर करते हुए, छात्र ने उसे 9 वें सेमेस्टर की परीक्षा देने की अनुमति देने की प्रार्थना की।

    कोर्ट का 10 फरवरी का आदेश

    इस तथ्य के मद्देनजर कि याचिकाकर्ता का परिवार महामारी के परिणामस्वरूप वित्तीय संकट से गुजरा रहा हो सकता है, अदालत ने उन्हें किस्तों में शुल्क जमा करने की अनुमति दी थी, (10 फरवरी 2021 का आदेश)।

    कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि, "इस तरह की अंडरटेकिंग को दर्ज करने में और/या इस तरह के अंडरटेकिंग की शर्तों के पालन करने में ‌विफलता (यह बताते हुए कि बकाया दिय जा चुका है) ऑटोमैटिकली परीक्षाओं के लाभ के याचिकाकर्ता को वंच‌ित करेगा।"

    कोर्ट ने यह भी देखा कि यदि उक्त भुगतान और उस संबंध में दायर किए जाने वाली अंडटेकिंग को सम्मानित नहीं किया गया था, तो संस्थान को याचिकाकर्ता-छात्र की मार्कशीट और अन्य प्रशंसापत्रों को वापस लेने का अधिकारी होगा।

    नतीजतन, अदालत के आदेश में बताई गई राशि का भुगतान याचिकाकर्ता-छात्र द्वारा किया गया और इस संबंध में अंडरटेकिंग भी दायर की गई।

    डीन का 25 मार्च आदेश

    हालांकि, 25 मार्च, 2021 के आदेश के अनुसार, संस्थान के डीन ने बताया कि रैपिड एंटीजन टेस्ट और COVID-19 टीकाकरण के लिए दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र (एथवा जोन) में याचिकाकर्ता छात्र को दी गई ड्यूटी को वापस ले लिया जाएगा क्योंकि याचिकाकर्ता ने फीस का भुगतान नहीं किया था।

    डीन के आदेश में आगे कहा गया था कि याचिकाकर्ता को इंटर्नशिप के लिए योग्य नहीं माना जाएगा और COVID​​-19 के ‌लिए दी गई ड्यूटी और उसकी इंटर्नशिप को निलंबित करने का आदेश दिया गया था।

    25 मार्च के आदेश को सही ठहराते हुए, संस्थान ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता ने उन राशि का भुगतान नहीं किया था, जिनमें पेनाल्टी और चेक बाउंस शुल्क शामिल थे।

    इस तरह के दावे के समर्थन में, सूरत नगर निगम के संकल्प संख्या 167/ 2019 पर भरोसा किया गया था, जिसमें कहा गया था कि स्थायी समिति के प्रस्ताव के अनुसार, उन चेक के लिए 18% ब्याज की वसूली की जाएगी....।

    24 जून, 2009 के एक अन्य प्रस्ताव पर भी भरोसा किया गया था, जिस पर छात्र से लेट फीस वसूलने पर विचार किया गया था।

    कोर्ट ने डीन के 25 मार्च के आदेश को रद्द किया

    शुरुआत में, अदालत ने उल्लेख किया कि उसने अपने 10 फरवरी के आदेश में चेक बाउंस के आरोपों को लागू करने और लेट फी के सवालों में जाने से इनकार कर दिया था, और कोर्ट ने कहा,

    "अदालत ने इस तरह प्रतिवादी नंबर एक यानी संस्थान के आधार को खारिज कर दिया और उक्त आधार पर छात्र के खिलाफ की गई कार्रवाई को अस्वीकार कर दिया।"

    यह माना गया कि संस्थान द्वारा याचिकाकर्ता-छात्र की मार्कशीट, अन्य प्रमाणपत्र पर रोक, इंटर्नश‌िप की पात्रता वापस लेने और COVID-19 के लिए सौंपी गई ड्यूटी से रोकने का फैसला स्वीकार्य नहीं है।

    मेडिकल कॉलेज के डीन के 25 मार्च 2021 के आदेश को रद्द करते हुए सिविल एप्‍लिकेशन को अनुमति दी गई। यह घोषणा कि गई कि यह न केवल मनमाना था, बल्कि 10 फरवरी को एक आदेश में इस न्यायालय द्वारा जारी किए गए निर्देशों के खिलाफ था।

    केस टा‌इट‌िल - ज्वाला सूरज छासिया बनाम डीन, सूरत नगर चिकित्सा शिक्षा संस्थान और अनुसंधान [SPECIAL CIVIL APPLICATION NO. 2861 of 2021]

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