किसी ट्रैवल ब्लॉगर का पासपोर्ट अनुचित रूप से जब्त करना, उसके आजीविका के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है : एमपी हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

12 Dec 2021 2:20 PM GMT

  • किसी ट्रैवल ब्लॉगर का पासपोर्ट अनुचित रूप से जब्त करना, उसके आजीविका के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है : एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (इंदौर बेंच) ने हाल ही में कहा है कि अनुचित कारणों के आधार पर एक ट्रैवल ब्लॉगर का पासपोर्ट जब्त करना, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले उसके आजीविका के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है।

    न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल की खंडपीठ ने आगे कहा कि पासपोर्ट को केवल इसलिए जब्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि धारा 498-ए आदि के तहत अपराध का मामला लंबित है या किसी व्यक्ति के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया था।

    अदालत ने आगे फैसला सुनाते हुए कहा कि

    ''यदि जांच अधिकारी इस बात पर अपना संतोष दिखाता है कि आरोपी फरार हो सकता है,जो नियमित कानूनी कार्यवाही को बाधित कर सकता है, तो उसे जब्त किया जा सकता है। इसके बिना, नियमित रूप से, पासपोर्ट को जब्त नहीं किया जा सकता है।''

    संक्षेप में मामला

    इस मामले में एक ट्रैवल ब्लॉगर हार्दिक शाह ने क्षेत्रीय पासपोर्ट प्राधिकरण, भोपाल की कार्रवाई के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया था। उसने आरोप लगाया कि प्राधिकरण ने उसे दस साल की अवधि के लिए नियमित पासपोर्ट जारी करने की बजाय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए उसके पासपोर्ट को जब्त कर लिया है।

    याचिकाकर्ता का अपनी पत्नी के साथ वैवाहिक विवाद चल रहा है, जिसने कथित तौर पर सितंबर 2016 में वैवाहिक घर छोड़ दिया था और अपने साथ याचिकाकर्ता का पासपोर्ट भी ले गई। इसके बाद उसकी पत्नी ने दहेज की मांग का आरोप लगाते हुए उसके और परिवार के सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज करवाई।

    याचिकाकर्ता को इस एफआईआर के मामले में जमानत मिल गई है और उस पर जमानत की कोई शर्त नहीं लगाई गई थी। उसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक के लिए एक याचिका भी दायर की, जो अभी भी विचाराधीन है। चूंकि उसके पासपोर्ट को उसकी पत्नी अपने साथ ले गई थी,इसलिए उसने जुलाई 2017 में उसका पासपोर्ट फिर से जारी करने के लिए आवेदन दायर किया।

    याचिकाकर्ता को जून 2019 में अधिनियम की धारा 10 (3) (एच) के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था क्योंकि उसकी पत्नी ने आरोप लगाया था कि वह आपराधिक कार्यवाही में भाग नहीं ले रहा है। उससे पूछा गया था कि क्यों न उसका पासपोर्ट इम्पाउंड या जब्त कर लिया जाए?

    प्राधिकरण ने याचिकाकर्ता के अनुरोध के बावजूद भी उसे शिकायत और सहायक दस्तावेजों की एक प्रति उपलब्ध नहीं करवाई। इतना ही नहीं इस संबंध में हाईकोर्ट द्वारा वर्ष 2019 में दिए गए एक आदेश के बावजूद प्राधिकरण ने उसे उसका पक्ष रखने का कोई अवसर नहीं दिया।

    बाद में पासपोर्ट प्राधिकरण ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह अपना पासपोर्ट सरेंडर कर दे और ऐसा न करने पर उसका पासपोर्ट रद्द कर दिया जाएगा। उसके बाद, उसके पासपोर्ट को उसे सुनवाई या उसका पक्ष रखने का मौका दिए बिना ही वास्तव में जब्त कर लिया गया।

    उसके पासपोर्ट को जब्त करने के बाद, याचिकाकर्ता को उसकी पत्नी की तरफ से दायर शिकायत और सहायक दस्तावेजों की आपूर्ति कर दी गई और उसे बताया गया कि संबंधित न्यायालय की अनुमति दायर करने के बाद ही उसे पासपोर्ट की सुविधा दी जा सकती है।

    पासपोर्ट प्राधिकरण की कार्रवाई को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया था।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    हाईकोर्ट के 2019 के आदेश का पालन करते हुए, न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादियों को निश्चित रूप से याचिकाकर्ता की पत्नी की शिकायत और आवश्यक दस्तावेज याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराने की आवश्यकता थी क्योंकि ऐसे दस्तावेज और शिकायत याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराए जाने के बाद ही एक प्रभावी और अर्थपूर्ण सुनवाई की जा सकती है।

    महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता को उसका पासपोर्ट जब्त करने से पहले या बाद में कोई भी सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया था, इसलिए, आक्षेपित कार्रवाई और आदेश न्यायिक जांच को कायम नहीं रख सकते हैं।

    न्यायालय ने कहा कि,

    ''केवल वैवाहिक मामलों का लंबित रहना,पासपोर्ट के नवीनीकरण को अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकता है। उक्त राजपत्र अधिसूचना दस साल की अवधि के लिए पासपोर्ट को नवीनीकृत नहीं करने या इसे जब्त करने या इसे केवल एक वर्ष की अवधि के लिए प्रतिबंधित करने का आधार नहीं हो सकती है। इसलिए जांच अधिकारी की किसी विपरीत रिपोर्ट के अभाव में और किसी अन्य कानूनी बाधा के अभाव में, प्रतिवादियों का पासपोर्ट जब्त करना उचित नहीं था।''

    परिणामस्वरूप, प्रतिवादियों द्वारा पासपोर्ट जब्त/रद्द करने की आक्षेपित कार्रवाई को रद्द कर दिया गया है। प्रतिवादियों को निर्देश दिया गया है कि वह याचिकाकर्ता को 10 साल की अवधि के लिए नियमित पासपोर्ट जारी करें(यदि कोई अन्य कानूनी बाधा नहीं है तो)। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि उक्त आपराधिक/ वैवाहिक मामलों का लंबित रहना पासपोर्ट से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता है।

    केस का शीर्षक - हार्दिक शाह बनाम भारत संघ व अन्य

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story