दंगा, यूएपीए, पीएमएलए आदि मामले के आरोपों वाले विचाराधीन कैदी एचपीसी के दिशानिर्देशों के तहत अंतरिम जमानत के हकदार नहीं : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
12 July 2021 9:53 AM IST
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि वैसे विचाराधीन कैदी, जो विशेष एजेंसियों द्वारा जांच किये जा रहे अपराधों, जैसे- दंगों, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों, गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक कानून (यूएपीए) आदि से संबंधित मामलों में ट्रायल का सामना कर रहे हैं, वे उच्चाधिकार समिति (एचपीसी) के दिशानिर्देशों के तहत रिहाई के हकदार नहीं हैं।
दिशानिर्देशों के प्रासंगिक हिस्सों पर भरोसा जताते हुए न्यायमूर्ति नरेन्द्र कुमार व्यास ने इस प्रकार कहा :
"वैसे विचाराधीन कैदी, जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम / धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत मुकदमों का सामना कर रहे हैं और जिनके खिलाफ सीबीआई / ईडी / एनआईए / विशेष प्रकोष्ठ, अपराध शाखा, एसएफआईओ तथा राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के अंतर्गत आतंकवाद और दंगा मामलों की जांच की जा रही है, वे रिहा किये जाने के हकदार नहीं हैं।"
हाईकोर्ट 22 मई 2021 के निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कोविड 19 वायरस के संक्रमण से संबंधित स्वत: संज्ञान मामले [(C) No. 01/2020] में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार अंतरिम जमानत संबंधी याचिका खारिज कर दी गयी थी।
अधिकारियों द्वारा प्राप्त खुफिया जानकारी के अनुसार याचिकाकर्ताओं पर सोने और चांदी के आभूषणों के व्यापार में शामिल होने का आरोप लगाया गया था। बाद में यह पता चला कि उन्होंने हवाला के जरिये पैसे भेजे थे।
सरकार के अनुसार, यह दलील दी गयी थी कि याचिकाकर्ताओं ने धारा 437 और 439 के तहत नियमित जमानत याचिकाएं नहीं दायर की थी, इसलिए वे अंतरिम जमानत के हकदार नहीं थे। यह भी कहा गया कि कस्टम्स एक्ट से इतर उनलोगों के खिलाफ अन्य प्रावधानों के तहत आगे की जांच शुरू की गयी थी।
कोर्ट का प्रथम दृष्टया मानना था कि सोने की तस्करी की कथित घटना में याचिकाकर्ता भी शामिल थे।
कोर्ट ने कहा,
"प्रथम दृष्टया यह बात स्थापित होती है कि याचिकाकर्ता आदतन अपराधी हैं। गवाहों के दर्ज बयान प्रथम दृष्टया यह संकेत देते हैं कि याचिकाकर्ता सोने और चांदी की तस्करी में पूरी तरह संलग्न् हैं, जो राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिए खतरनाक है। केस डायरी में आगे यह प्रतिबिम्बित होता है कि जांच अभी प्रारम्भिक चरण में है।"
यह देखते हुए कि संभव है याचिकाकर्ता न्याय की प्रक्रिया में नुकसान पहुंचाना या देरी करना या साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करना चाहते हैं, कोर्ट ने कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश और उच्चाधिकार समिति के दिशानिर्देशों का लाभ हासिल करने के हकदार नहीं हैं।
इस संदर्भ में यह कहा गया कि शीर्ष अदालत ने खुद ही व्यवस्था दी है कि,
"इस संबंध में यह नोट किया गया कि शीर्ष न्यायालय ने स्वयं यह माना है कि "इस न्यायालय के आदेशों को ऐसे किसी भी निर्देश या अवलोकन के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, जिसमें हत्या के आरोपी विचाराधीन कैदियों की रिहाई की आवश्यकता होती है, और वह भी जांच पूरा होने और उसके बाद चार्जशीट दाखिल किये जाने से पहले ही।"
तदनुसार याचिका खारिज कर दी गई।
शीर्षक: विजय वैद्य और अन्य बनाम सहायक निदेशक, राजस्व खुफिया निदेशालय, भारत सरकार, रायपुर
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