गुवाहाटी हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए दो व्यक्तियों को बरी किया, कहा-पीड़िता के अपुष्ट साक्ष्य पर्याप्त, पर पिता ने एफआईआर में किसी भी यौन हमले का आरोप नहीं लगाया
Avanish Pathak
5 Sept 2023 2:24 PM IST
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दोषी ठहराए गए दो व्यक्तियों को बरी कर दिया। उन्हें एक नाबालिग पर पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट का दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने उन्हें इस आधार पर बरी कर दिया कि भले ही पीड़िता के पिता ने एफआईआर दर्ज कराई थी, लेकिन उन्होंने किसी भी यौन अपराध का आरोप नहीं लगाया था।
जस्टिस सुष्मिता फुकन खौंड की सिंगल जज बेंच ने कहा,
“पीड़िता के पिता ने उसका साथ क्यों नहीं दिया। उन्होंने यह नहीं बताया कि आरोपी ने उनकी बेटी का यौन उत्पीड़न किया है। हालांकि पीड़िता के अपुष्ट साक्ष्य अपराधियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं, फिर भी जब पीड़िता के पिता ने यौन उत्पीड़न के बारे में कुछ भी खुलासा नहीं करने का फैसला किया है तो पीड़िता के सबूतों की विश्वसनीयता के बारे में संदेह पैदा होता है।"
मामला
अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि 28 जनवरी, 2016 को दोपहर लगभग 12 बजे, 14 वर्षीय पीड़िता 'एक्स' लापता पाई गई और फिर उसके पिता 'वाई' ने आईपीसी की धारा 342 (गलत तरीके से रोकने या कन्फाइनमेंट के लिए सजा), धारा 366ए (नाबालिग लड़की की खरीद-फरोख्त), धारा 368 (अपहरण या अपहृत व्यक्ति को गलत तरीके से छिपाना या कैद में रखना) और धारा 34 (सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य) के तहत एफआईआर दर्ज कराई।
जांच पूरी होने के बाद आरोपी व्यक्तियों (अपीलकर्ताओं) के खिलाफ आईपीसी की धारा 366ए, 376(2)(आई), 34 के साथ पॉक्सो अधिनियम की धारा 4 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया।
ट्रायल कोर्ट ने 22 मई, 2019 के फैसले और आदेश के तहत आरोपी व्यक्तियों को पॉक्सो अधिनियम की धारा 4 के तहत दोषी ठहराया । कोर्ट ने उन्हें 10 साल के कठोर कारावास और 10,000 रुपये जुर्माना भरने की सजा सुनाई। अपीलकर्ताओं ने मौजूदा अपील के जरिए ट्रायल कोर्ट के निर्णय और आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
फैसला
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पीड़िता ने कहा कि उसे को अस्पताल में होश आया था, हालांकि पीड़िता की जांच करने वाले डॉक्टर ने यह नहीं बताया कि पीड़िता बेहोशी की हालत में पाई गई थी। अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 164 के पीड़िता के बयान और उसकी ओर से दिए गए साक्ष्यों के बीच विरोधाभास है।
अदालत ने आगे कहा कि एफआईआर दर्ज करने में दो दिन की देरी के बारे में भी कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। एफआईआर भी पीड़िता और आरोपी व्यक्तियों को पकड़ने और उन्हें पुलिस को सौंपने के बाद दर्ज की गई है।
न्यायालय ने इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि जांच एजेंसी ने अन्य दो कब्जेदारों की पहचान पीडब्लू-3 (पीड़िता) से करवाने के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं किया।
अदालत ने आगे कहा कि आरोपी व्यक्तियों को पीड़िता की उम्र का पता लगाए बिना दोषी ठहराया गया। इस प्रकार, न्यायालय ने अपीलकर्ताओं को बरी कर दिया और ट्रायल कोर्ट के फैसले और आदेश को रद्द कर दिया।
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (Gau) 85