आधुनिक लोकतांत्रिक समाज में अस्वीकार्य: केरल उच्च न्यायालय ने पुलिस बल को नागरिकों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करने का निर्देश दिया, अपमानजनक भाषा के प्रयोग के खिलाफ चेतावनी दी

LiveLaw News Network

10 Sep 2021 7:04 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पुलिस नागरिकों का अपमान कर रही है, ऐसे आरोपों के उदाहरण उसकी चौखट पर रोज़ आ रहे हैं, इसलिए अदालत ने अपने फैसले में कुछ सामान्य निर्देश जारी किए।

    कोर्ट ने यह आदेश दिया कि नागरिकों को संबोधित करने के लिए अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है या अनुमति नहीं दी जा सकती है और राज्य के पुलिस प्रमुख को इसे सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों के साथ एक रिपोर्ट दायर करने का निर्देश दिया है।

    जस्टिस देवन रामचंद्रन ने जेएस अनिल की ओर से दायर एक याचिका का निपटारा करते हुए आदेश जारी किया। याचिका में पुलिस द्वारा उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था। आरोप था कि पुलिस ने उनकी नाबालिग बेटी से मौखिक दुर्व्यवहार किया था।

    आदेश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा इस प्रकार है- "जब मैं यह कहता हूं कि उपरोक्त शब्द यदि पुलिस अधिकारियों द्वारा नागरिकों को संबोधित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं तो मुझे विस्तार से कहने की आवश्यकता नहीं है, यह एक सभ्य और सुसंस्कृत बल के लिए अभिशाप है और औपनिवेशिक अधीनता की रणनीति के अवशेष हैं। निश्चित रूप से, 21वीं सदी की जरूरतों और आवश्यकताओं के साथ चलने वाले एक स्वतंत्र देश में उनका कोई स्थान नहीं है। किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा नागरिकों को संबोधित करने के लिए इन और ऐसे अन्य शब्दों का उपयोग पूरी तरह से अस्वीकार्य है और इसलिए, अब इस न्यायालय के लिए यह घोषित करना अनिवार्य है कि बल के किसी भी सदस्य द्वारा इस तरह के शब्दों का उपयोग हमारे देश की संवैधानिक नैतिकता और विवेक के विपरीत है और एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लोकाचार के लिए खिलाफ है।"

    तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

    याचिका में पुलिस उप निरीक्षक पर याचिकाकर्ता को लगातार परेशान करने का आरोप लगाया गया था और यहां तक ​​कि उसके खिलाफ विभिन्न शिकायतों को दर्ज करने का भी प्रयास किया गया था।

    मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट अनु सारा मैथ्यू पेश हुईं। हालांकि, प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व करने वाले सरकारी वकील ईसी बिनीश ने इस सबमिशन पर आपत्ति जताई और आपत्तियों का समर्थन करने के लिए एक कार्रवाई रिपोर्ट तैयार की।

    यह तर्क दिया गया कि एक बार जब सब इंस्पेक्टर COVID प्रवर्तन ड्यूटी पर थे, तो याचिकाकर्ता की बेटी और अन्य लोगों को सुपरमार्केट में COVID-19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए देखा गया था। इसलिए उन्होंने उन्हें नोटिस जारी कर उक्त प्रोटोकॉल का पालन करने की जरूरत बताई।

    यह आगे प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता को बाद में उसी स्थान पर बिना मास्क के या सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन नहीं करते हुए पाया गया था। इधर प्रतिवादी एसआई ने केरल महामारी रोग अध्यादेश, 2020 के प्रावधानों के तहत याचिकाकर्ता पर 500/- रुपये का जुर्माना लगाया।

    यह भी आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने बिना किसी भय के COVID-19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन करना जारी रखा। नतीजतन, सेक्टोरल मजिस्ट्रेट ने उन्हें 24 मई 2021 को नोटिस जारी किया और 2,000/- रुपये का जुर्माना लगाया।

    याचिकाकर्ता के आपराधिक इतिहास का भी अदालत के समक्ष खुलासा किया गया, याचिका को खारिज करने की प्रार्थना की गई।

    न्यायालय के निष्कर्ष

    यह पता चलने पर कि कार्रवाई रिपोर्ट में किए गए कथनों की पुष्टि नहीं हुई थी, न्यायालय ने एक अतिरिक्त रिपोर्ट को पेश करने के लिए कहा था। इस नई रिपोर्ट में प्रस्तुत किया गया था कि एसआई ने याचिकाकर्ता की बेटी के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं किया था और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान भी दर्ज किए गए थे।

    आज प्रकाशित किए गए आदेश में कोर्ट ने हालांकि अतिरिक्त रिपोर्ट पर असंतोष व्यक्त किया और पाया कि इसमें कई ढीले बिंदु थे।

    "... दोनों कार्रवाई रिपोर्ट ने याचिकाकर्ता पर आरोप लगाने का प्रयास किया है, उसे एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश करने का प्रयास किया है जो आदतन अपराधी है। याचिकाकर्ता का आचरण इस मामले के लिए प्रासंगिक नहीं है क्योंकि भले ही यह मान लिया जाए कि वह ऐसा है, कोई भी पुलिस अधिकारी शालीनता की परिधि का उल्लंघन नहीं कर सकता है।"

    इस पर आगे कोई टिप्पणी नहीं करते हुए न्यायालय ने इस बड़े मुद्दे को संबोधित किया। खंडपीठ ने घोषणा की कि हालांकि पुलिस अधिकारियों को COVID प्रोटोकॉल को लागू करने के लिए बाध्य किया जाता है उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे मानवतावाद के साथ और सभ्य व्यवहार के पूर्ण अनुपालन में ऐसा करें।

    "एक पहलू जो इस अदालत के दिमाग को परेशान करता है, वह याचिकाकर्ता का आरोप है कि सब इंस्पेक्टर ने उसकी नाबालिग बेटी के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल इस आरोप में किया कि उसने COVID-19 प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया था।"

    तथ्य यह है कि नागरिक अभी भी पुलिस अधिकारियों द्वारा मौखिक रूप से दुर्व्यवहार या अपमान से पीड़ित होकर अदालत में आते हैं, यह याद दिलाता है कि इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। अदालत ने उन्हें दो सप्ताह के भीतर इस संबंध में उठाए गए कदमों की व्याख्या करते हुए एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।

    अदालत ने उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री से अनुपालन को सत्यापित करने के लिए उचित रूप से बेंच के समक्ष रिपोर्ट सूचीबद्ध करने और इस पहलू पर कोई और आदेश आवश्यक होने पर विचार करने के लिए कहा। "अब इस अदालत के लिए यह घोषित करना अनिवार्य है कि पुलिस बल के किसी भी सदस्य द्वारा इस तरह का उपयोग हमारे देश की संवैधानिक नैतिकता और विवेक के विपरीत है और एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लोकाचार के खिलाफ है।"

    जिसके बाद यह फैसला सुनाया गया कि नागरिकों को संबोधित करने के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल बर्दाश्त नहीं किया जा सकता या अनुमति नहीं दी जा सकता है। इसलिए राज्य पुलिस प्रमुख को निर्देश दिया गया था कि वे अपने आदेश के तहत पुलिस बल के सभी सदस्यों को एक परिपत्र या अन्यथा के माध्यम से आवश्यक निर्देश जारी करें कि वे स्वीकार्य शब्दों का उपयोग करके नागरिकों को संबोधित करेंगे।

    केस शीर्षक: अनिल जेएस बनाम केरल राज्य और अन्य

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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