एक ही व्यक्ति के दो आधार कार्ड, जन्म-तिथियां अलग-अलग: गुजरात हाईकोर्ट ने यूआईडीएआई को प्रामाणिकता सत्यापित करने का निर्देश दिया
LiveLaw News Network
1 Sept 2020 7:58 PM IST

गुजरात हाईकोर्ट की जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस एन वंजारिया की खंडपीठ ने गुरुवार को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को एक ही महिला के दो आधार कार्ड की वैधता की जांच करने और यह रिपोर्ट करने कि दोनों कार्डों में से कौन सा प्रामाणिक है, का निर्देश दिया।
जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस एन वंजारिया की खंडपीठ ने महिला के मामा द्वारा दायर याचिका पर विचार किया। याचिकाकर्ता / महिला के मामा ने ने भारतीय दंड संहिता की धारा 363 और 366 के तहत दंडनीय अपराधों, यानी किडनैपिंग, अपहरण या महिला को शादी के लिए मजबूर करने के लिए 2019 में एक प्राथमिकी दर्ज करवाई थी।
इस मामले में, अगस्त 2019 में, महिला के मामा ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की, जिसमें आरोप लगाया गया कि महिला एक नाबालिग है और जून 2019 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के एक व्यक्ति द्वारा उसकी वैध हिरासत से उसका अपहरण कर लिया गया था।
एक साल पहले उसकी पहचान की गई और उसे अहमदाबाद ले जाया गया, और पिछले हफ्ते अदालत के सामने पेश किया गया। उसने अपने मामा से मिलने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया।
हालांकि, महिला द्वारा पेश की गई गवाही के अनुसार, याचिकाकर्ता ने "अपने विचार से उसकी शादी कराने का प्रयास किया था" जिसका उसने विरोध किया और इसलिए, वह घर छोड़ कर चली गई और अब वह पहले से ही प्रतिवादी नंबर 5- आनंदकुमार श्रीनारायणसिंह राजपूत निवासी मुजफ्फरनगर, से शादी कर चुकी है।
उसने कहा कि उसका आधार कार्ड वर्ष 1999 का है, जिसमें उसकी जन्मतिथि दर्ज है, जबकि, मामा की ओर से पेश आधार कार्ड में उसकी जन्मतिथि 06.05.2002 दर्ज है। हालांकि, दोनों से ही अब वह बालिग हो चुकी है, और वह अब अपने मामा के साथ रहने की इच्छुक नहीं हैं, बल्कि प्रतिवादी नंबर 5 के साथ रहने की इच्छुक हैं।
इस तथ्य पर ध्यान देते हुए कि एक प्राथमिकी दर्ज की गई है, खंडपीठ ने कहा कि दस्तावेजों की सत्यता के संबंध में दोनों आधार कार्ड की जांच और सत्यापन मौजूदा मामले में बहुत महत्वपूर्ण होगा।
न्यायालय ने कहा कि यदि उसका जन्म वर्ष 1999 में हुआ होगा, जैसा कि वह दावा करती है तो पूरी एफआईआर समाप्त हो जाएगी। कोर्ट ने कहा कि महिला के आधार कार्ड की वास्तविकता को जानना कोर्ट के लिए आवश्यक है और यह कि महिला द्वारा मामा के खिलाफ लगाए गए आरोपों के मद्देनजर और भी महत्वपूर्ण है।
पिछली सुनवाई में, खंडपीठ ने कहा कि न्यायालय इस तथ्य से भी अनजान नहीं हो सकती कि बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका उसके पिता ने दायर नहीं की है, जो कि बिहार निवासी हैं, जहां कि वह महिला के अन्य भाई-बहनों के साथ रहते हैं।
न्यायालय के पिछले आदेश के अनुसार, एपीपी ने प्रस्तुत किया कि यूआईडीएआई को सत्यापित करने और रिपोर्ट करने के लिए विशिष्ट तीन स्पष्ट दिनों और विशिष्ट दिशा निर्देशों की आवश्यकता होगी।
कोर्ट ने यूआईडीएआई को इन दोनों आधार कार्डों को सत्यापित करने का निर्देश दिया है, जिसे एफआईआर के संबंध में एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल, अहमदाबाद ग्रामीण द्वारा अग्रेषित किया जाएगा।
घटनाओं के प्रकाश में, अदालत ने आगे निर्देश दिया कि महिला को नारी सुरक्षा गृह में रखा जाए। हाईकोर्ट ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए दो सितंबर को पोस्ट किया है।
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