बॉम्बे हाईकोर्ट ने हत्या के दोषी की सजा को 'शेष जीवन' से बदलकर 'आजीवन कारावास' किया

Shahadat

2 Nov 2023 9:22 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने हत्या के दोषी की सजा को शेष जीवन से बदलकर आजीवन कारावास किया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 में अपनाए गए शब्दों का पालन करने के महत्व का हवाला देते हुए अपनी पत्नी की हत्या के दोषी व्यक्ति की सजा को "शेष जीवन के लिए आजीवन कारावास" से "आजीवन कारावास" में बदल दिया।

    जस्टिस वीवी कंकनवाड़ी और जस्टिस अभय एस वाघवासे की खंडपीठ ने पाया कि ट्रायल जज ने दोषी को उसके शेष जीवन के लिए आजीवन कारावास की सजा देने में अति कर दी।

    अदालत ने कहा,

    “अपीलकर्ता के वकील द्वारा यह सही कहा गया कि ट्रायल जज ने प्राकृतिक मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा देकर अति कर दी है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र सिंह @ मुकेश @ भूरा बनाम राजस्थान राज्य 2022 लाइव लॉ (एससी) 247 के मामले में माना कि सेशन कोर्ट को कारावास की अवधि को क़ानून में दिए गए प्रावधान से आगे बढ़ाने का अधिकार नहीं है। आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए निर्धारित सजा में संशोधन या वृद्धि नहीं की गई है। क़ानून में प्रयुक्त शब्दों को अपनाया जाना आवश्यक है।"

    अदालत ने आईपीसी की धारा 302 के तहत अपीलकर्ता की सजा को बरकरार रखा।

    आईपीसी की धारा 302 में लिखा है,

    “आईपीसी की धारा 302 हत्या के लिए सज़ा का प्रवाधान करती है, जो कोई भी हत्या करेगा उसे मौत या आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी और जुर्माना भी देना होगा।''

    अपीलकर्ता बापू बजरंग पाटिल का विवाह मृतक रत्नाबाई से हुआ था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, शराब का आदी अपीलकर्ता अक्सर अपनी पत्नी की निष्ठा पर संदेह करता था। 16 मई, 2015 और 17 मई, 2015 के बीच की रात को अपीलकर्ता कथित तौर पर नशे की हालत में घर लौटा, उसने रत्नाबाई पर मिट्टी का तेल डाला और उसे आग लगा दी। इसके परिणामस्वरूप वह 87 प्रतिशत जल गई। उसके इलाज के दौरान दो मृत्युपूर्व बयान दर्ज किए गए, जो मुकदमे में महत्वपूर्ण सबूत बने। मामला शुरू में आईपीसी की धारा 307 के तहत दर्ज किया गया, जिसे बाद में रत्नाबाई के निधन के बाद धारा 302 में बदल दिया गया।

    अभियोजन पक्ष ने आठ गवाहों के साक्ष्य प्रस्तुत किए, जिनमें मामले के रजिस्ट्रेशन में शामिल व्यक्ति, मेडिकल पेशेवर और जांच अधिकारी शामिल थे। अपीलकर्ता को दोषी ठहराया गया। इस प्रकार, उसने वर्तमान अपील दायर की।

    अपीलकर्ता की ओर से एडवोकेट हर्षिता मंगलानी ने मृत्यु पूर्व दिए गए बयानों की विश्वसनीयता पर संदेह जताया और मृतक की बेटी की गवाही में विसंगतियों की ओर इशारा किया। उन्होंने मृत्यु से पहले दिए बयान दर्ज करने में देरी और मृतक की विश्वसनीय बयान देने की क्षमता पर सवाल उठाया। उन्होंने आगे दलील दी कि अपीलकर्ता को झूठा फंसाया गया। उन्होंने सज़ा का भी विरोध किया और कहा कि ट्रायल जज ने अपीलकर्ता के प्राकृतिक जीवन तक आजीवन कारावास की सज़ा देने में बहुत ज़्यादा कदम उठाया।

    अभियोजन पक्ष के वकील एसडी घायल ने बेटी की गवाही, जो बाल गवाह है। उसकी गवाही के साथ-साथ मृत्युपूर्व बयानों की स्थिरता और विश्वसनीयता पर जोर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि प्रस्तुत साक्ष्यों पर ट्रायल जज द्वारा उचित रूप से विचार किया गया और जो निष्कर्ष निकले है, वे सही हैं।

    सबूतों की दोबारा जांच करने पर अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि मृत्यु से पहले दिए गए दोनों बयान स्वैच्छिक, सच्चे और भौतिक आधार पर सुसंगत है। अदालत ने बाल गवाह की गवाही की भी जांच की और पाया कि उसने घटनाओं का अलग संस्करण दिया है। अदालत ने कहा कि पुलिस ने 20 मई, 2015 से पहले उसका बयान दर्ज नहीं किया और राय दी कि ऐसी संभावना है कि उसने खुद गवाही नहीं दी है।

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि मृत्यु से पहले दिया बयान विश्वसनीय है और अपीलकर्ता के अपराध को स्थापित करने के लिए पर्याप्त है, भले ही बेटी की गवाही खारिज कर दी गई हो।

    अदालत ने कहा,

    “मृत्यु से पहले दिए गए दोनों बयानों में अपीलकर्ता की भूमिका स्पष्ट रूप से रिकॉर्ड में आ गई। इसलिए भले ही हम बच्चे की गवाही के साक्ष्य को खारिज कर दें, फिर भी मरने से पहले दिए गए बयान मौजूद हैं, जो न केवल सुसंगत हैं, बल्कि स्वैच्छिक, सच्चे और प्रेरणादायक विश्वास भी दर्शाते हैं। इसलिए अपीलकर्ता का अपराध दर्ज करने के लिए मृत्यु पूर्व दिए गए बयानों को स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं है।”

    हालांकि, अदालत ने ट्रायल जज द्वारा दी गई सजा संशोधित करते हुए इस बात पर जोर दिया कि न्यायपालिका कारावास की अवधि को क़ानून में निर्धारित अवधि से अधिक नहीं बढ़ा सकती है।

    अदालत ने कहा,

    "अपीलकर्ता बापू बजरंग पाटिल को उसके पूरे शेष जीवन के लिए आजीवन कारावास भुगतने की सजा" को संशोधित किया गया और अब अपीलकर्ता को उक्त अपराध के लिए "आजीवन कारावास" भुगतने की सजा सुनाई गई।

    अदालत ने अपीलकर्ता की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए अपील आंशिक रूप से स्वीकार कर ली, लेकिन सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित बाकी आदेश को बरकरार रखा गया।

    केस नंबर- आपराधिक अपील नंबर 168/2017

    केस टाइटल- बापू बजरंग पाटिल बनाम महाराष्ट्र राज्य

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