बलात्कार के मामलों को छोड़कर ट्रायल कोर्ट मौत तक या बिना छूट आजीवन कारावास की सजा नहीं दे सकतेः कलकत्ता हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

9 April 2022 8:54 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट एक महत्वपूर्ण फैसले में ने बुधवार को पश्चिम बंगाल की निचली अदालतों को एक निर्देश जारी किया, जिसमें कहा गया है कि मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा, बिना किसी छूट की गुंजाइश के, केवल बलात्कार के मामलों में ही दी जा सकती है।

    जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस बिवास पटनायक की खंडपीठ ने कहा कि किसी की मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा केवल उच्च न्यायपालिका ही लगाई सकती है, जो कि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट है।

    यूनियन ऑफ इंडिया बनाम वी श्रीहरन उर्फ ​​मुरुगन और अन्य और गौरी शंकर बनाम पंजाब राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने राज्य के सभी ट्रायल कोर्ट के जजों को निम्नलिखित निर्देश जारी किए, "उन मामलों को छोड़कर जहां कानून आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान करता है, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास (जैसे, धारा 376A, 376AB, 376D, 376DA, 376DB और 376E IPC), ट्रायल कोर्ट आईपीसी की धारा 53 के तहत आजीवन कारावास की सजा लगाते हुए उक्त सजा के संबंध में यह निर्देश नहीं दे सकता कि सजा दोषी की मृत्यु तक या कानून में निर्धारित छूट के बिना जारी रहेगी।"

    कोर्ट ने कहा कि उसने कई मामलों में ट्रायल कोर्ट के जजों में मौत तक उम्र कैद की सजा देने की प्रवृत्ति देखी है। न्यायालय ने कहा कि उसे राज्य के सभी न्यायिक अधिकारियों को एक निर्देश जारी करने की आवश्यकता महस हो रही कि ऐसे ही मामलों में वे गलती न करें और बिना छूट के आजीवन कारावास की सजा दें।

    हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार-जनरल को राज्य के सभी न्यायिक अधिकारियों के लिए उक्त निर्देश को प्रसारित करने का निर्देश दिया, ताकि ऐसे मामलों में वे त्रुटि में न पड़ें।

    अदालत हत्या और शस्त्र अधिनियम के तहत अपराध के लिए दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर फैसला सुना रही थी, जहां एक अपीलकर्ता को मौत तक आजीवन कारावास की सजा दी गई थी।

    सजा को बरकरार रखते हुए कोर्ट ने हालांकि इस बात को रेखांकित किया कि इस तरह की सजा एक ट्रायल कोर्ट नहीं दे सकता है, बल्कि केवल सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलकर ऐसी सजा दे सकता है।

    कोर्ट ने कहा, "फिर भी, न्यायालय का विवेक संविधान के अनुच्छेद 72/161 के तहत क्रमशः भारत के राष्ट्रपति या राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों का अतिक्रमण नहीं करता है।"

    बेंच ने आगे कहा कि इस तरह की सजा, यानी सीआरपीसी की धारा 433 ए के तहत बिना छूट के आजीवन कारावास। आईपीसी की धारा 302/34 के तहत दंडनीय अपराध के लिए ट्रायल कोर्ट नहीं दे सकता सकता है।

    अदालत ने आगे कहा कि जांच और मुकदमे के दौरान अपीलकर्ताओं को हिरासत में लेने की अवधि को सजा से अलग किया जाएगा।

    केस शीर्षक: मोनिरुल मोल्ला बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

    केस सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Cal) 112

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