चुनाव अधिकारियों के साथ COVID-19 योद्धाओं की तरह व्यवहार करें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान मामले में दाखिल एक हस्तक्षेप आवेदन पर कहा

LiveLaw News Network

21 May 2021 9:24 AM GMT

  • चुनाव अधिकारियों के साथ COVID-19 योद्धाओं की तरह व्यवहार करें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान मामले में दाखिल एक हस्तक्षेप आवेदन पर कहा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने COVID-19 के संबंध एक स्वतः संज्ञान मामले में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन पर सुनवाई की। इस आवेदन में यूपी पंचायत चुनाव ड्यूटी के दौरान मारे गए मतदान अधिकारियों के लिए मुआवजे की मांग की गई है।

    यह हस्तक्षेप आवेदन शिक्षक राहुल गंगेले द्वारा किया गया है। आवेदन में राहुल ने आरोप लगाया है कि यूपी सरकार ने अपने विवेक पर महामारी से उत्पन्न खतरे की परवाह किए बिना सरकारी कर्मचारियों / शिक्षकों के जीवन और भलाई की अनदेखी कर चुनाव कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए मजबूर किया।

    याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता विभु राय, अभिनव गौर, कार्तिकेय यादव और नमन इस्सरानी द्वारा किया गया।

    यह प्रस्तुत किया जाता है कि चुनाव में बुलाए जाने के बाद भी ऐसे कर्मचारियों के मेडिकल ट्रीटमेंट पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। उन्हें भी दूसरों की तरह "तड़पने, ऑक्सीजन और चिकित्सा देखभाल के लिए संघर्ष" करने के लिए छोड़ दिया गया।

    नतीजतन, चुनाव ड्यूटी का निर्वहन करते हुए सरकारी कर्मचारियों और शिक्षकों की असामयिक मृत्यु ने उनके परिवारों को अस्त-व्यस्त कर दिया है और कई परिवारों ने अपनी एकमात्र रोटी कमाने वाले को खो दिया है, जिससे परिवार के जीवित सदस्य बेसहारा हो गए हैं।

    इस प्रकार, यह आग्रह किया जाता है कि उनके परिवारों को पर्याप्त और निष्पक्ष रूप से मुआवजा दिया जाना चाहिए।

    गौरतलब है कि यूपी सरकार ने मुआवजे की घोषणा की है। मृत चुनावी अधिकारियों के परिवारों के लिए 30 लाख रूपये। हालांकि, यह याचिकाकर्ता का मामला है कि यह राशि COVID-19 योद्धाओं को दिए जा रहे मुआवजे (50 लाख रुपये) के बराबर नहीं है। इस प्रकार यह तर्क दिया जाता है कि वर्तमान में काम कर रहे अन्य सरकारी अधिकारियों के मुकाबले चुनाव अधिकारियों के साथ भेदभाव किया जा रहा है।

    याचिकाकर्ता ने कहा,

    "पंचायत चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश राज्य के जिन सरकारी कर्मचारी और शिक्षकों ने अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अपनी जान गंवा दी, वे भी कोरोना योद्धाओं के दर्जे के हकदार हैं और उन्हें तदनुसार मुआवजा दिया जाए।"

    यह तर्क दिया जाता है कि सरकारी शिक्षकों और चिकित्सा कर्मियों के आश्रितों को मुआवजा देने में भेदभाव, जिन्होंने केवल COVID-19 के दौरान राज्य द्वारा उन्हें दिए गए कर्तव्य को निभाने के लिए अपना जीवन लगा दिया। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

    याचिका में आगे कहा गया है,

    "सरकारी शिक्षकों को दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में चुनावी कर्तव्यों को पूरा करने के लिए प्रतिनियुक्त किया गया। इस दौरान उन्हें भीड़ भरी बस में यात्रा करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। बसों में कोई सोशल डिस्टेंसिंग नहीं देखी गई थी।

    सरकारी शिक्षकों को उनके निवास स्थान से दूर राज्य में दूर-दराज के कोनों और दूर के स्थानों पर प्रतिनियुक्त किया गया था और इन क्षेत्रों में चिकित्सा की सुविधा भी नहीं थी, न ही उचित स्वच्छता। जिन ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की गई थी, वहां पर्याप्त सोशल डिस्टेंसिंग और बुनियादी सेनिटाइजेशन की तो उचित चिकित्सा सुविधा ही नहीं थी।

    सरकारी शिक्षकों को अपने घर से बाहर जाने के लिए कहा गया था, जहां वे कम से कम वायरस से संपर्क करने में सक्षम थे। चुनाव कर्तव्यों की आड़ में वायरस के संपर्क में थे, जब राज्य द्वारा वायरस का प्रसार को रोकने के लिए कोई उचित सुविधा प्रदान नहीं की गई थी।"

    अब इस COVID-19 स्वतः संज्ञान मामले को शनिवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

    पिछले महीने हाईकोर्ट ने 135 व्यक्तियों की मौत के बारे में रिपोर्टों का न्यायिक नोटिस लिया था, जिनकी चुनाव ड्यूटी के दौरान COVID-19 से संक्रमित होने के बाद मृत्यु हो गई थी।

    अदालत ने तब देखा था,

    "ऐसा प्रतीत होता है कि न तो पुलिस और न ही चुनाव आयोग ने चुनाव ड्यूटी पर लोगों को इस घातक वायरस से संक्रमित होने से बचाने के लिए कुछ किया।"

    12 मई को कोर्ट ने कहा कि 30 लाख रुपये का मुआवजा 'बहुत कम' है और राज्य को कम से कम रुपये का अनुदान देना चाहिए। COVID-19 से जान गंवाने वाले चुनावी अधिकारियों के परिवारों को अनुग्रह राशि के रूप में 1 करोड़ रूपये की मांग की गई थी।

    अप्रैल के पहले सप्ताह में हाईकोर्ट ने COVID-19 की दूसरी लहर के बीच यूपी पंचायत चुनावों को स्थगित करने की मांग वाली एक याचिका को खारिज कर दिया था। इसमें कहा गया था कि राज्य ने पर्याप्त सुरक्षा प्रोटोकॉल नहीं बनाए हैं।

    आवेदन डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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