रिक्ति के अभाव में स्थानांतरण आदेश पारित नहीं किए जा सकते, नई पोस्टिंग का स्थान दिखाना होगा: कर्नाटक हाईकोर्ट

Avanish Pathak

29 Aug 2022 3:23 PM GMT

  • रिक्ति के अभाव में स्थानांतरण आदेश पारित नहीं किए जा सकते, नई पोस्टिंग का स्थान दिखाना होगा: कर्नाटक हाईकोर्ट

    Karnataka High Court

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि यदि ट्रांसफर सामान्य ट्रांसफर अवधि के बाद किया जाता है, तब, ट्रांसफर के किसी भी अनुरोध पर तब तक विचार नहीं किया जाना चाहिए या आदेश नहीं दिया जाना चाहिए जब तक कि कोई स्थान खाली न हो।

    जस्टिस एस सुनील दत्त यादव की एकल पीठ ने मूर्ति नामक एक व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका को स्वीकार कर लिया और उन्हें जारी किए गए 23.12.2021 को जारी किए गए ट्रांसफर आदेश को रद्द कर दिया। इसने याचिकाकर्ता को ट्रांसफर के आक्षेपित आदेश से पहले की स्थिति में वापस रखा।

    आगे पीठ ने कहा,

    "केवल यह उम्मीद की जाती है कि राज्य 27.03.2017 के अपने स्वयं के परिपत्र के साथ-साथ एम अरुण प्रसाद के मामले (सुप्रा) में पारित डिवीजन बेंच के निर्देशों और महिबूब सब के मामले (सुप्रा) में टिप्पणियों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करेगा।"

    एम अरुण, डब्ल्यू.पी.नंबर.58931/2016 (एस-केएटी) तारीख 02.03.2017 के मामले में अपने आदेश में पीठ ने एक अधिकारी को पद से हटाने की प्रैक्टिस को हटा दिया था लेकिन उसकी अगली पोस्टिंग के बारे में स्पष्ट नहीं किया था।

    कोर्ट ने कहा था,

    "उसे उचित पदस्थापन के लिए संबंधित विभाग के पास जाँने के उम्‍मीद है और एक अन्य अधिकारी पहले से ही तैनात है। यह प्रैक्टिस अधिकारी को अधर में रखेगा।"

    27.03.2017 के सरकारी परिपत्र में कहा गया है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को पोस्टिंग नहीं दिखाने के कारणों को लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए और ठोस प्रशासनिक कारण जैसे एबॉलिशमेंट/ अपग्रेडेशन/ डाउन-ग्रेडेशन, निलंबन के बदले में शिफ्टिंग, सरकारी कर्मचारी द्वारा किसी पद पर अर्जेंट गोपनीय कार्य करने की आवश्यकता,मौजूदा रिक्ति में काम करने के लिए अनुपयुक्तता या अक्षमता.. आद‌ि, जो केवल उदाहरण हैं हालांकि यह संपूर्ण नहीं हैं।"

    विभाग के प्रमुख द्वारा स्थानांतरण के आदेशों की समीक्षा करने के लिए प्रक्रिया भी दिखाई जाती है जहां विस्थापित व्यक्ति को लिखित में कारण दर्ज करते हुए नहीं दिखाया जाता है।

    आक्षेपित आदेश द्वारा याचिकाकर्ता को नियुक्ति आदेश प्राप्त करने के लिए सक्षम प्राधिकारी को रिपोर्ट करने के लिए कहा गया था। छह माह बाद ही यानी 20.07.2022 को वर्तमान कार्यवाही के लंबित रहने के आदेश के बाद याचिकाकर्ता को नगर पालिका परिषद, उल्लाल (रिक्त पद के लिए) में पदस्थापन का आदेश दिया गया था।

    जिस पर पीठ ने कहा,

    "मौजूदा मामले में, किसी भी प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है। एम अरुण प्रसाद के मामले (सुप्रा) में इस न्यायालय की डिवीजन बेंच द्वारा टिप्पणियों और ऊपर संदर्भित सरकारी परिपत्रों के बावजूद, पोस्टिंग के लिए स्थान दिखाए बिना स्थानांतरण के आदेश बार-बार पारित किए जा रहे हैं।"

    कोर्ट ने अंत में कहा,

    "तदनुसार, दो आधारों पर यानी छह महीने से अधिक की अवधि के लिए पोस्टिंग का आदेश नहीं दिखाना और इस आधार पर कि सामान्य ट्रांसफर की अवधि के बाद रिक्त पद को छोड़कर कोई स्थानांतरण नहीं किया जाना चाहिए, जबकि यह देखते हुए कि स्थानांतरण दिसंबर 2021 में किया गया है जैसा कि स्थानांतरण की कार्यवाही में देखा गया है, याचिका की अनुमति है। एनेक्‍स्चर- ए में 23.12.2021 के आक्षेपित आदेश को रद्द किया जाता है। पक्षों को आक्षेपित आदेश से पहले स्थिति में रखने का निर्देश दिया जाता है।"

    केस टाइटल: मूर्ति बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: WRIT PETITION NO. 14860 OF 2022

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 241



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