जूनियर वकीलों का न्यायालय के समक्ष व्यवहार कैसा हो, इस संबंध में उन्हें प्रशिक्षित करें: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बार एसोसिएशन्स से कहा

LiveLaw News Network

19 Aug 2021 3:43 PM IST

  • जूनियर वकीलों का न्यायालय के समक्ष व्यवहार कैसा हो, इस संबंध में उन्हें प्रशिक्षित करें: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बार एसोसिएशन्स से कहा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक वकील के रवैये पर 'नाराजगी' जाहिर की। वकील ने यह देखने के बाद कोर्ट उसके मामले की योग्यता पर आश्वस्त नहीं है, अन्य बेंच के समक्ष बहस करने की अनुमति मांगी थी।

    जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने उसके आचरण को तिरस्कारपूर्ण माना, हालांकि उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। कोर्ट ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि वकील की प्रैक्टिस अभी चार साल पुरानी ही है।

    बेंच ने उसके रवैये पर कहा, "मैं 'नाराजगी' शब्द के कठोरातम अर्थों में वकीलों द्वारा अपनाई जा रही इस प्रकार की प्रैक्टिस पर 'नाराजगी' व्यक्त करता हूं। ऐसे वकीलों के पास या तो वरिष्ठों के एक उपयुक्त चैंबर में कानूनी प्रशिक्षण की कमी है या जो अहंकार से भरे हुए हैं कि इस तरह की अनुमति मांग रहे है कि उन्हें किसी अन्य पीठ के समक्ष केस पर बहस करने दिया जाए, तब, जबकि कोई विशेष अदालत उनके आवेदन पर विचार नहीं करने के बारे में अपनी राय व्यक्त करती है।"

    इसके बाद, इस प्रैक्टिस को समाप्त करने पर जोर देते हुए, कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के बार एसोसिएशनों को जू‌नियर वकील को अनिवार्य रूप से प्रशिक्षित करने के लिए कहा, कि उन्हें किस तरह की दलीलें देनी चाहिए और अदालत में उनका व्यवहार क्या होना चाहिए। .

    इसके साथ ही, भविष्य में ऐसी गलतियों को न दोहराने का वचन देने के बाद कोर्ट ने वकील द्वारा दी गई माफी को स्वीकार कर लिया।

    संबं‌धित समाचार में, इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष जमानत की सुनवाई में यह पता चला कि आरोपी और शिकायतकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता मिलीभगत में काम कर रहे थे, जिसमें शिकायतकर्ता के वकील ने आरोपी के वकील के निर्देश पर जाली वकालतनामा दायर किया था।

    आरोपी के वकील ने जाली वकालतनामा की 'व्यवस्था' की थी और जमानत के लिए अनापत्ति दर्ज कराने के लिए आरोपी का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक वकील को नियुक्त किया था।

    जस्टिस संजय कुमार सिंह ने कहा कि अनुभवी वकीलों की उक्त कार्रवाई बेहद निंदनीय है, जो पेशे और संस्था की पवित्रता पर हमला करती है।

    एक उपचारात्मक उपाय के रूप में, कोर्ट ने कहा कि वकालतनामा के साथ किसी भी पहचान प्रमाण (अधिमानतः आधार कार्ड) की एक स्व-सत्यापित प्रति भी दी जानी चाहिए, जिसमें व्यक्ति के मोबाइल नंबर का उल्लेख किया गया हो।

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