गलती करना मानवीय है: कर्नाटक हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति के उम्मीदवार को राहत दी, उसने केपीएससी आवेदन में गलती से अनुसूचित जनजाति श्रेणी भर दिया था
Avanish Pathak
7 Feb 2023 7:14 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कर्नाटक लोक सेवा आयोग को निर्देश दिया है कि वह जॉब एप्लिकेंट से फॉर्म में हुई एक गलती को सुधारने का मौका दे और उसी के मुताबिक, उसकी योग्यता को ध्यान में रखते हुए अनंतिम/अंतिम चयन सूची को विनियमित करे। जॉब एप्लिकेंट ने आवेदन पत्र में अनुसूचित जाति के बजाय अनुसूचित जनजाति श्रेणी भर दिया था।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने हेमंतकुमार एन की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए उत्तरदाताओं के इस तर्क को खारिज कर दिया कि यह आदेश भानुमती का पिटारा खोल देगा और एक मिसाल बन जाएगा।
उन्होंने कहा,
“यदि यह आदेश भानुमती का पिटारा खोलता है; ऐसा ही हो, अगर यह मिसाल बन जाए; ऐसा हो। यह न्यायालय अनुसूचित जाति के एक उम्मीदवार की पीड़ा को अनदेखा नहीं करेगा।"
कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ता ने दस्तावेज सत्यापन के समय जब तुच्छ मानवीय त्रुटि की ओर संकेत किया था तो आयोग को उसे ठीक करना चाहिए था। ऐसा नहीं करने के बाद, आयोग अब यह तर्क नहीं दे सकता है कि यह आदेश भानुमती का पिटारा खोल देगा या एक मिसाल बन जाएगा। यह नहीं भुलाया जा सकता कि, "गलती करना मानवीय है", अचूकता मानवता के लिए अज्ञात है।"
मामला
आयोग ने रेजिडेंट पैरेंट कैडर में में कनिष्ठ सहायक/द्वितीय श्रेणी सहायक पद के लिए 29-02-2020 को आवेदन आमंत्रित किया था।
याचिकाकर्ता का दावा है कि उसने एक साइबर सेंटर पर आवेदन टाइप करवाया है और कैटेगरी कॉलम में उसने गलती से अनुसूचित जाति के बजाय अनुसूचित जनजाति भर दिया। इस प्रकार, ऑनलाइन अपलोड किए गए आवेदन में याचिकाकर्ता को अनुसूचित जाति के बजाय अनुसूचित जनजाति से संबंधित दिखाया गया था।
गलती को ध्यान में रखते हुए, आवेदनकर्ता ने 15-07-2021 को कैटेगरी को ऑनलाइन बदलने का प्रयास किया और दावा किया कि वेबसाइट पर परिवर्तन को मंजूरी दे दी गई है। याचिकाकर्ता ने यह सोचकर कि वह अनुसूचित जाति वर्ग के अंतर्गत प्रतिभागी था, लिखित परीक्षा में भाग लिया जो 19-09-2021 को हुई थी।
योग्यता सूची की अधिसूचना के बाद, याचिकाकर्ता को 8.09.1922 को दस्तावेज़ सत्यापन के लिए बुलाया गया था। तब याचिकाकर्ता को पता चला कि उसकी श्रेणी नहीं बदली गई है और 20.03.2020 को जो त्रुटि ऑनलाइन हुई थी, वह रिकॉर्ड का हिस्सा बन गई थी।
उसने आयोग के सामने एक हलफनामा दायर किया, जिसमें यह बताया गया कि गलती साइबर केंद्र ने की थी, वह अनुसूचित जाति से संबंधित हैं। उसे वर्ष 2013 में जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया था। आयोग ने बदलाव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। जिसके बाद उसने कर्नाटक अनुसूचित जाति और अनुसूचित आयोग से संपर्क किया, जिसने दूसरे प्रतिवादी/आयोग से याचिकाकर्ता के मामले पर विचार करने का अनुरोध किया।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने त्रुटि सुधार के संबंध में 17-09-2022 और 23-09-2022 को प्रतिनिधित्व पेश किया। इन सबका कोई परिणाम नहीं निकला। 25-11-2022 को एक अनंतिम चयन सूची अधिसूचित की गई थी और याचिकाकर्ता का नाम उक्त सूची में स्पष्ट रूप से इस कारण से नहीं था कि याचिकाकर्ता को अनुसूचित जनजाति से संबंधित माना गया था और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पद न्यूनतम थे। ऐसे में उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
निष्कर्ष
रिकॉर्ड देखने पर पीठ ने कहा, "इस पर विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ता अनुसूचित जाति का है। आवेदन भरने में हुई गलती से से उसकी जाति की स्थिति नहीं बदलेगी। दस्तावेज सत्यापन के समय, याचिकाकर्ता ने खुद को अनुसूचित जाति का बताते हुए अपना जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था। आयोग उस समय त्रुटि को सुधार सकता था।
यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता ने ज्यादा नंबर प्राप्त किए हैं और यदि उसे अनुसूचित जाति का उम्मीदवार माना जाता है तो वह निश्चित रूप से विचार के दायरे में आएगा।
इसके बाद कोर्ट ने कहा, "एक मामूली गलती अनुसूचित जाति के उम्मीदवार से अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के रूप में उसके मामले पर विचार करने के अधिकार को छीन नहीं सकती है।"
तदनुसार इसने याचिका को अनुमति दी।
केस टाइटल: हेमंतकुमार एन और कर्नाटक राज्य और अन्य।
केस नंबर: रिट पिटिशन नंबर 24847 ऑफ 2022।
साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (कर) 45