यह खाकी अहंकार है: नाबालिग को परेशान करने वाले पिंक पुलिस ‌ऑफिसर पर केरल हाईकोर्ट ने कहा

LiveLaw News Network

30 Nov 2021 8:56 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने 8 वर्षीय लड़की और उसके पिता पर पिंक पुलिस एक ऑफिसर द्वारा चोरी का आरोप लगाने और उसे सार्वजनिक रूप से अपमानित करने के मामले में प्रतिवादियों की निष्क्रियता पर आश्चर्य व्यक्त किया। कोर्ट रूम में घटना का वीडियो चलाए जाने के बाद जस्टिस देवन रामचंद्रन स्पष्ट रूप से व्यथित दिखे।

    उन्होंने कहा, "दृश्य बहुत परेशान करने वाले हैं। मैं हिल गया हूं और पीड़ा में हूं। यह बिल्कुल अनावश्यक था। जब एक युवा लड़की उसके सामने रो रही थी तो उसे (अधिकारी) आगे बढ़ने का दिल कैसे हुआ? उसका दिल क्यों नहीं पिघला, जब उसने अपनी वजह से एक बच्चे को रोते देखा?"

    मामले में अधिकारी पर आरोप यह था कि उसने लड़की और उसके पिता पर अपना मोबाइल फोन वापस करने के लिए चिल्लाई थी, जिसे उसका मानना था कि उन्होंने चुपके से हटा ‌लिया था। जब उन्होंने घटना में किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया तो उन्हें अपमान‌ित किया गया।

    कोर्ट में प्रदर्शित वीडियो को एक राहगीर ने अपनी कार से मोबाइल फोन में रिकॉर्ड किया था। दृश्य में एक सिविल पुलिस अधिकारी याचिकाकर्ता बच्चे और उसके पिता को रोकता हुआ दिखाई दे रहा है। अधिकारी जैसे ही उसके पिता से पूछताछ शुरू करता है जाहिर तौर पर डरी हुई लड़की रोने लगती है। उसके पिता को भी संभवतः यह दिखाने के लिए अपनी शर्ट ऊपर उठाते हुए देखा जाता है कि उसने फोन नहीं लिया या छिपाया नहीं था।

    जल्द ही उनके आसपास भीड़ जमा हो जाती है और बच्चे को और अधिक भयभीत देखा जा सकता है। एक अन्य पुलिस अधिकारी कथित रूप से चोरी हुए फोन पर कॉल करने की कोशिश करता है और फोन को अपने पेट्रोलिंग वैन में पाता है। यह पता चलने पर कि पिता और बच्चे को बिना किसी कारण के परेशान किया गया है, भीड़ अधिकारी के कार्यों पर सवाल उठाने लगती है। हालांकि उन्हें अपने स्टैंड को सही ठहराते हुए देखा जा सकता है।

    कोर्ट ने जोड़ा, "इसे और बेहतर तरीके से संभाला जा सकता था। उसे झुक जाना चाहिए था और अपनी गलती का एहसास होने पर बच्चे से माफी मांगनी चाहिए थी। यह वहीं खत्म हो जाता। फोन इस लड़की के जीवन जितना मूल्यवान नहीं है। अगर एक सामान्य आदमी ने ऐसा किया होता तो शायद लड़की रोती नहीं। लेकिन यहां वर्दी में पुलिस अधिकारी थी। एक सामान्य व्यक्ति सॉरी कहता, लेकिन उसने नहीं किया। यह खाकी अहंकार और अहंकार के अलावा और कुछ नहीं है।"

    सिंगल जज ने कहा कि पिता-पुत्री की जोड़ी का संभवतः उनकी पृष्ठभूमि के के कारण उत्पीड़न किया गया-

    "मुझे यह कहते हुए खेद है लेकिन ऐसा लगता है कि आपने उस व्यक्ति को उसकी पोशाक और उसके रूप से आंका। अधिकारी इस तरह का व्यवहार नहीं करता अगर वह अलग कपड़ों में होते। कल्पना कीजिए कि अगर फोन साइलेंट पर होता तो क्या होता। उस व्यक्ति को जेल में डाल दिया जाता अगर उसे अन्य पुलिस अधिकारी बरामद नहीं कर लेता।"

    कोर्ट इस बात से हैरान था कि एक महिला अधिकारी इतने अहंकार के साथ कैसे व्यवहार कर सकती है, जब एक 8 साल की बच्ची उसके सामने डरकर रो रही थी। कोर्ट ने कहा कि किसी भी चीज से पहले मनुष्य को पहले होना चाहिए । "पूरे वीडियो में लड़की रो रही थी। यह किस तरह की प‌िंक पुलिस है? इस घटना को देखने वाले बहुत सारे पिंक पुलिस अधिकारी थे, और फिर भी उनमें से कोई भी रोते हुए बच्चे को सांत्वना नहीं दे पाया। क्या यह लड़की कभी हमारे सिस्टम में फिर से विश्वास कर पाएगी?

    जब वरिष्ठ सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक ओ नारायणन अधिकारी की ओर से बहस की तो पीठ ने मौखिक रूप से कहा, "आप अक्षम्य का बचाव कर रहे हैं। एक पश्चिमी देश में, इसे बहुत अलग तरीके से देखा जाता और उसे गंभीर दंड का सामना करना पड़ता।"

    यह देखते हुए कि घटना के खिलाफ लगभग सात कार्यवाही लंबित थी जज ने कहा, "आप आम आदमी की इच्छाशक्ति को कम करके आंक रहे हैं।" आरोपी अधिकारी की रिपोर्ट अदालत के समक्ष पेश की गई और यह बताया गया कि घटना के बाद उसे एक अलग स्टेशन में स्थानांतरित कर दिया गया था।

    कोर्ट ने प्रतिवादियों को अपनी-अपनी दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया। इससे पहले, उन्हें एक सिविल पुलिस अधिकारी के खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई को रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया गया था। अपने आदेश में कोर्ट ने वीडियो के दृश्यों पर उनके विचारों का उल्लेख नहीं किया, "हालांकि मैं दृश्यों पर कुछ भी कहने का प्रस्ताव नहीं करता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि दूसरे प्रतिवादी डीजीपी को इस मुद्दे पर ध्यान देना होगा और अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट दाखिल करनी होगी।"

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट एके प्रीता ने कहा कि पुलिस ने अभी तक याचिकाकर्ता या उसके पिता का बयान नहीं लिया है। कथित घटना के बाद याचिकाकर्ता गंभीर मानसिक तनाव से गुजरी थी। अदालत ने वकील को निर्देश दिया कि वह उस समय जो इलाज करा रही है, यदि कोई हो, उसका विवरण दर्ज करें।

    अतिरिक्त लोक अभियोजक को उन आदेशों और कारणों को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया, जिनके कारण उक्त अधिकारी को स्थानांतरित किया गया। 7 दिसंबर को मामले की ‌फिर सुनवाई की जाएगी।

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