एक वयस्क महिला का अपनी मर्जी से विवाह करने और धर्मपरिवर्तन करने के फैसले में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है: कलकत्ता हाईकोर्ट
SPARSH UPADHYAY
23 Dec 2020 3:00 PM IST
सोमवार (21 दिसंबर) को कलकत्ता हाई ने यह स्पष्ट कर दिया कि अगर कोई वयस्क अपनी पसंद के अनुसार शादी करता है और धर्मपरिवर्तन करने का फैसला करता है और अपने पैतृक घर नहीं लौटता है, तो अदालत द्वारा मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता है।
न्यायमूर्ति संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ एक पिता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि उसकी 19 साल की बेटी (पल्लबी सरकार) 15 सितंबर, 2020 को लापता हो गई थी।
पृष्ठभूमि
7 दिसंबर, 2020 को मुरतिया पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी द्वारा दायर एक रिपोर्ट के अनुसार, एक असामुल शेख ने याचिकाकर्ता की बेटी पल्लबी सरकार से शादी कर ली।
रिपोर्ट में 16 सितंबर, 2020 को न्यायिक मजिस्ट्रेट, तेहता के समक्ष लड़की द्वारा धारा 164 सीआरपीसी के तहत दिए गए एक बयान की एक प्रति भी शामिल थी, जिसमें संकेत दिया गया था कि वह असामुल शेख के साथ संबंध रखती है और स्वेच्छा से असामुल के साथ रह रही है।
इस पर याचिकाकर्ता ने यह दावा किया कि उसकी बेटी ने अपनी मर्जी के खिलाफ बयान दिया था।
पिता के आरोपों के जवाब में, कोर्ट ने आदेश दिया कि पल्लबी को तेहट्टा में तैनात सबसे वरिष्ठ जिला न्यायाधीश के सामने लाया जाएगा और याचिकाकर्ता भी न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित होंगे।
न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि याचिकाकर्ता और उसकी बेटी को संबंधित जिला न्यायाधीश की उपस्थिति में बातचीत करने की अनुमति दी जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि इस तरह की बातचीत के समय पल्लबी के उपर कोई दबाव नहीं हो।
इसके बाद, एक "स्पष्ट रिपोर्ट" अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा अदालत को सौंपी गयी जो बेटी के साथ याचिकाकर्ता की बातचीत से संबंधित थी; फिर भी, पिता (याचिकाकर्ता) ने कुछ संदेह दर्ज कराया।
नतीजतन, पिता के संदेह को दूर करने के लिए, अदालत ने सोमवार को आदेश दिया है कि पल्लबी सरकार (अब आयशा खातून), 23 दिसंबर, 2020 को कलकत्ता के श्री बापुली के चैंबर में श्री साईबल बापुली, अतिरिक्त सार्वजनिक अभियोजक से मुलाकात करेगी।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि जिस समय पल्लबी श्री बापुली से मिले, उस समय पल्लबी के पति सहित कमरे में कोई और न हो।
इसके अलावा, श्री बापुली को 24 दिसंबर, 2020 को मामला सामने आने पर एक रिपोर्ट दर्ज करने का निर्देश दिया गया है।
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कलकत्ता उच्च न्यायालय का यह बयान, हाल के मामलों की पृष्ठभूमि में प्रासंगिक लगता है जिसमें किसी के द्वारा धर्म परिवर्तन करना या किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी करना, विवादों में घिर जाता है और इस आशय के कई उदाहरण हैं।
एक विवादास्पद फैसले में, जिसे बाद में "कानून में अच्छा फैसला नहीं" कहा गया, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 23 सितंबर 2020 को एक विवाहित युगल द्वारा दायर पुलिस सुरक्षा के लिए एक रिट याचिका को खारिज कर दिया था।
अदालत ने उल्लेख किया था कि लड़की जन्म से मुस्लिम थी और उसने शादी से एक महीने पहले ही अपना धर्म बदलकर हिंदू धर्म कर लिया था।
जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी ने नूरजहाँ बेगम के एक फैसले का उल्लेख किया था, जिसमें यह देखा गया कि विवाह के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन अस्वीकार्य है।
इस निर्णय को कानून में बुरा घोषित करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 नवंबर को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि,
"अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, इसके बाद भी कि आपने किस धर्म को स्वीकार किया है, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में अंतर्निहित है।"
जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा,
"हम यह समझने में विफल हैं कि यदि कानून दो व्यक्तियों को एक साथ शांति से रहने की अनुमति देता है, भले ही वो एक ही लिंग के हों तो भी, तो न तो किसी व्यक्ति को और न ही परिवार या यहां तक कि राज्य को भी दो वयस्क व्यक्तियों के संबंधों पर आपत्ति हो सकती है, जो अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं।"
अदालत ने कहा,
"हम मानते हैं कि नूरजहां और प्रियांशी, अच्छे काननू का निर्धारण नहीं करते हैं।"
इस फैसले के 17 दिन बाद, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 को लागू किया।
उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल ने मंगलवार (24 नवंबर) को मसौदा अध्यादेश को मंजूरी दी थी, जिसके तहत विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन को को गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध बना दिया गया है। [धारा 7]
अधिनियम की प्रस्तावना,
"दुर्व्यपदेशन, बल, असम्यक असर, प्रपीड़न, प्रलोभन द्वारा या किसी कपटपूर्ण साधन द्वारा या विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन का प्रतिषेध करने और उससे संबंधित या आनुषंगिक विषयों का उपबन्ध करने के लिए।"
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