[थट्टेक्कुडु नाव दुर्घटना] दोषपूर्ण हत्या के लिए आवश्यक ज्ञान की डिग्री यह कि कृत्य के कारण मौत होगी, इसका लगभग निश्चितता तक ज्ञान हो, केवल यह ज्ञान कि नाव ओवरलोडेड है, पर्याप्त नहींः केरल हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
2 March 2021 12:57 PM IST
केरल में 2008 में हुई नाव दुर्घटना में डूबी नाव 'शिवरंजिनी' के मालिक और ड्राइवर पीएम राजू की अपील पर पिछले हफ्ते, केरल उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया। थट्टेक्कुडु स्थिति सेंट एंटनीज़ यूपी स्कूल इलावूर के पास हुई दुर्घटना में 15 बच्चे समेत 18 लोगों की मौत हो हुई थी।
जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की एकल पीठ ने अपील पर फैसला किया, जिसमें पाया गया कि राजू सदोष हत्या, जिसमें हत्या नहीं हुई है, के अपराध का दोषी नहीं है।
इसके बजाय, अदालत ने उसे अंधाधुंध और लापरवाही से कार्य करने के कारण हुई मौत का जिम्मेदार ठहराया। ड्राइवर के रूप में उसने 61 लोगों को नाव पर चढ़ने की अनुमति दी, जबकि नाव की क्षमता छह व्यक्तियों की थी।
तथ्य
दुर्घटना एक स्कूल पिकनिक के दरमियान हुई, जिसके बाद ड्राइवर के खिलाफ सार्वजनिक रूप से आक्रोश फूटा और नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने उसके खिलाफ सदोष हत्या, जिसमें हत्या नहीं हुई है, (भारतीय दंड संहिता की धारा 304) के तहत आरोप लगाया।
धारा 304 के तहत दस साल की कैद की सजा, या जुर्माना, या ऐसे मामलों, जिसमें किसी व्यक्ति को ज्ञान हो कि उसका कृत्य मौत का कारण बन सकता है, लेकिन बिना किसी इरादे के मौत का कारण बना हो, में कैद और जुर्माना दोनों का प्रावधान है।
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि राजू धारा 304 के तहत दोषी था, क्योंकि उसने छह व्यक्तियों की क्षमता होने के बावजूद नाव पर 61 लोगों को चढ़ने की अनुमति दी थी। धारा 304 के तहत आरोप के साथ, ट्रायल कोर्ट ने राजू पर धारा 304ए के तहत अंधाधुंध और लापरवाही भरे कृत्य के कारण मौत होने का आरोप लगाया।
सबूतों पर विचार करने और गवाह की जांच करने पर, ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को धारा 304 के तहत दोषी ठहराया और उसे 5 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।
इसके अलावा, राजू को डेढ़ लाख का जुर्माना अदा करने का निर्देश दिया गया, जिसे आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 357 (1) (बी) के तहत मुआवजे के रूप में मृतक बच्चों के माता-पिता को समान रूप से वितरित किया जाना था।
फैसले के खिलाफ राजू ने उच्च न्यायालय में अपील की।
दलीलें
राजू के वकील, एडवोकेट सीपी उदयभानु ने तर्क दिया कि मौजूद सामग्री ने यह प्रदर्शित नहीं किया कि राजू के पास पर्याप्त ज्ञान था कि उस पर धारा 304 के तहत आरोप लगाया जाए। नाव पर मौजूद छात्रों और शिक्षकों की गवाहियों के बीच विरोधाभास का दावा करते हुए, उन्होंने कहा कि दुर्घटना के लिए यात्रियों के कृत्य जिम्मेदार थे।
चूंकि अभियुक्त का कृत्य से नाव नहीं डूबी, इसलिए उसे अंधाधुंध और लापरवाही भरे कृत्य के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। दूसरी ओर लोक अभियोजक ने जोर देकर कहा कि राजू का कृत्य धारा 304 के तहत आता है।
नाव पर बैठे छात्रों में से एक के माता-पिता की ओर से पेश अधिवक्ता धीरेंद्र कृष्णन केके ने कहा कि राजू ने नाव की क्षमता को प्रदर्शित किए बिना या अपेक्षित परमिट और एक फिटनेस प्रमाण पत्र प्राप्त किए बिना नाव को अवैज्ञानिक तरीके से संशोधित करवाया, जो धारा 304 के लिए आवश्यक 'ज्ञान' की ओर इशारा करता है।
कोर्ट ने क्या तर्क दिया
अदालत ने मुकदमे के दौरान जोड़े गए विशेषज्ञ साक्ष्यों पर विस्तृत चर्चा के बाद बताया कि केवल यह जानना कि नाव पर ओवरलोडिंग है और नाव डूबने की आशंका है, धारा 304 के तहत अपेक्षित ज्ञान नहीं है।
यह कहते हुए कि यह समझ में आता है कि राजू ने नाव की क्षमता से ज्यादा यात्री बैठाए। नाव बिना उचित लाइसेंस के थी और उस पर जीवन रक्षक उपकरण भी मौजूदा नहीं थे। उसे अवैज्ञानिक तरीके से संशोधित करवाया गया था। फिर भी, अदालत ने जोर दिया कि उसकी कार्रवाई धारा 304 के दायरे में नहीं लाई जा सकती।
जस्टिस कुरियन ने समझाया, "एक मात्र आशंका का ज्ञान, की कृत्य मृत्यु का कारण बना सकता है, परिकल्पित ज्ञान नहीं है। दोषपूर्ण हत्या के दायरे में एक कृत्य को लाने के लिए आवश्यक ज्ञान की डिग्री यह है कि कृत्य के कारण मौत होगी, इसका लगभग निश्चितता के कगार तक ज्ञान होना चाहिए और केवल आशंका नहीं होनी चाहिए। "
मोटर दुर्घटनाओं के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर ध्यान आकर्षित करते हुए, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन उचित संदेह से परे साबित नहीं कर पाया है कि राजू के पास धारा 304 के तहत दोष सिद्ध होने के लिए आवश्यक ज्ञान था।
यह देखते हुए कि राजू ने नाव पर 61 व्यक्तियों को अनुमति दी थी, जिसकी क्षमता 6 व्यक्तियों की थी, और नाव पर सुरक्षा उपकरण भी नहीं थे, कोर्ट ने उसके कृत्य को अंधाधुंध और लापरवाही भरा माना और उसे धारा 304ए के तहत दोषी ठहराया।
न्यायालय ने यह भी कहा कि नाव पर सवार को सुरक्षा उपकरण प्रदान करने की जिम्मेदारी नाव के मालिक और चालक की है। इस रोशनी में, राजू प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट, 1958 के तहत लाभ का हकदार नहीं था और अधिकतम सजा के लिए उत्तरदायी है।
इसलिए, अभियुक्त को 2 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई और डेढ़ लाख रुपए का जुर्माना देने का निर्देश दिया गया। पीड़ितों को राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से संपर्क करने और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 357 ए के तहत मुआवजे के रूप में ज्यादा राशि की मांग करने अनुमति दी गई।
शर्तों के साथ अपील को आंशिक रूप से अनुमति दी गई।
जजमेंट डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें