टेंपरामेंट जजों को बुनियादी गुण, वादियों, कानून की प्रवर्तनकारी एजेंसियों के खिलाफ दुर्भावना नहीं दिखा सकते: कलकत्ता हाईकोर्ट

Avanish Pathak

21 March 2023 6:28 PM IST

  • टेंपरामेंट जजों को बुनियादी गुण, वादियों, कानून की प्रवर्तनकारी एजेंसियों के खिलाफ दुर्भावना नहीं दिखा सकते: कलकत्ता हाईकोर्ट

    Calcutta High Court

    जलपाईगुड़ी स्थिति कलकत्ता हाईकोर्ट की बेंच ने हाल ही में न्यायिक मजिस्ट्रेट के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक पुलिस अधिकारी को निर्देश दिया गया था कि वह एक चिकित्सा अधिकारी के खिलाफ कारण बताओ और गिरफ्तारी के वारंट की निष्पादन रिपोर्ट दायर करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उसकी अदालत में उपस्थित हों। और अगर वह उपस्थ‌ित नहीं होते हैं तो उन्हें दंडात्मक परिणामों का सामना करना होगा।

    आदेश को रद्द करते हुए जस्टिस बिबेक चौधरी की सिंगल जज बेंच ने कहा कि टेंपरामेंट एक जज की बुनियादी विशेषता है। अगर कोर्ट आए किसी व्यक्ति या कानून के प्रवर्तनकारी एजेंसी के खिलाफ किसी न्यायिक कार्य और आचरण से दुर्भावना व्यक्त होती है तो यह न्याय की विफलता होगी।

    बर्दवान पुलिस स्टेशन के प्रभारी निरीक्षक (याचिकाकर्ता) ने चार्जशीट किए गए गवाह डॉ मिथिलेश हलदर के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था। याचिकाकर्ता ने संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत की कि उक्त चिकित्सा अधिकारी अर्जित अवकाश पर थे और बर्दवान शहर में मौजूद नहीं थे।

    हालांकि, मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता की रिपोर्ट पर विचार नहीं किया और 15 मार्च, 2023 का विवादित आदेश जारी किया, जिसमें याचिकाकर्ता को निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता को 17 मार्च, 2023 को हलफनामे के साथ-साथ चिकित्सा अधिकारी के खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट की निष्पादन रिपोर्ट पर कारण बताने के लिए व्यक्तिगत रूप से उनके सामने उपस्थित होना होगा।

    मजिस्ट्रेट ने आगे निर्देश दिया कि विवादित आदेश की अवहेलना याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 166ए (लोक सेवक की ओर से कानून के तहत दिए निर्देशों की अवहेलना) और धारा 174 (लोकसेवक की ओर से दिए आदेश के अनुपालन में उपस्थित ना होना) के तहत परिणाम भुगतना होगा और उसके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 374 के तहत वारंट जारी किया जाएगा।

    याचिकाकर्ता ने आक्षेपित आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    अदालत ने पाया कि संबंधित मजिस्ट्रेट ने पुलिस अधीक्षक, अलीपुरद्वार के कार्यालय से कोई रिपोर्ट नहीं ली कि क्या उनके कार्यालय में आउटस्टेशन वारंट के ट्रांसमिशन और अन्य प्रक्रियाओं के लिए तकनीकी और विद्युत व्यवस्था की गई है।

    अदालत ने आगे कहा कि संबंधित मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि गवाह (चिकित्सा अधिकारी) के खिलाफ जारी गिरफ्तारी का जमानती वारंट वर्तमान याचिकाकर्ता को इलेक्ट्रॉनिक रूप से दिया गया था और उन्होंने इस पर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया।

    अदालत ने नोट किया,

    "विद्वान मजिस्ट्रेट ने इस बात पर भी विचार नहीं किया कि क्या वारंटी को उनके न्यायालय के समक्ष पेश किया जा सकता है जब वह शहर से बाहर थे।"

    इस प्रकार अदालत ने विवादित आदेश को रद्द कर दिया और संबंधित मजिस्ट्रेट को याचिकाकर्ता के माध्यम से चिकित्सा अधिकारी के खिलाफ प्रक्रिया को निष्पादित करने और साक्ष्य दर्ज करने के लिए कोर्ट के समक्ष गवाह पेश करने के लिए कम से कम पखवाड़े भर का समय देते हुए नई प्रक्रिया जारी करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: सुखमय चक्रवर्ती बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

    कोरम: जस्टिस बिबेक चौधरी

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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