प्रौद्योगिकी से प्रभावित किशोर, यौन अपराधों में लिप्त: मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य को युवा कैदियों के लिए काउंसलिंग मैकेनिज्म तैयार करने का सुझाव दिया

Brij Nandan

8 Sep 2022 4:13 AM GMT

  • मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी आज उन किशोरों की परवरिश में एक बड़ी चुनौती पेश कर रही है, जिनका दिमाग अक्सर आसानी से उपलब्ध पोर्नोग्राफी से प्रभावित होता है, उन्हें गुमराह करता है और इसके परिणामों को समझे बिना उन्हें यौन अपराधों में लिप्त करता है।

    जस्टिस जे निशा बानो और जस्टिस एन आनंद वेंकटेश की मदुरै पीठ ने जोर देकर कहा कि जब भी इन किशोरों को गिरफ्तार किया जाता है, तो उनकी मानसिक विकृति को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

    अदालत ने इस प्रकार निम्नानुसार देखा,

    "टीनएजर्स, जो आसानी से अपने मोबाइल फोन से भी पोर्नोग्राफी के संपर्क में आ जाते हैं, भ्रमित हो जाते हैं और उस उम्र में गुमराह हो जाते हैं जहां वे हार्मोनल परिवर्तनों की चपेट में होते हैं और इसके परिणामों को समझे बिना गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं। एक बार जब इन किशोरों को गिरफ्तार कर जेल के अंदर रखा जाता है, तो उनकी मानसिक विकृति को दूर करने के प्रयास किए जाने चाहिए। एक किशोर को जेल में बंद करने का उद्देश्य उसे त्याग कर उसे समाज की मुख्य धारा से बाहर कर देना नहीं है और ऐसे व्यक्ति को सुधारने के लिए सभी कदम उठाने चाहिए।"

    अदालत 18 साल के लड़के के पिता द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे जिला कलेक्टर ने कस्टडी में लिया था, जिसमें उसे तमिलनाडु के बूटलेगर्स, साइबर कानून अपराधी, ड्रग अपराधी, वन अपराधी, गुंडे, अनैतिक यातायात अपराधी, रेत अपराधी, यौन अपराधी की खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम 1982 की धारा 2 (ggg) के तहत "यौन अपराधी" बताया गया था।

    जिला कलेक्टर के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का घोर उल्लंघन किया गया क्योंकि याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए अभ्यावेदन पर समय पर विचार नहीं किया गया और इसमें अत्यधिक और अस्पष्टीकृत देरी हुई।

    यह प्रस्तुत किया गया कि डिटेक्शन अथॉरिटी द्वारा टिप्पणी प्रस्तुत करने में 5 दिनों की देरी और प्रतिनिधित्व पर विचार करने में 21 दिनों की देरी की गई थी।

    राज्य ने प्रस्तुत किया कि यद्यपि प्रतिनिधित्व पर विचार करने में देरी हुई, लेकिन बंदी के लिए कोई पूर्वाग्रह नहीं हुआ है और इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ है।

    अदालत ने देखा कि असाधारण और अस्पष्टीकृत देरी हुई है। प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों पर बल देने वाले सुप्रीम कोर्ट और मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के मद्देनजर और जब भी अत्यधिक देरी हुई तो कस्टडी को अवैध माना गया, अदालत ने कस्टडी के आदेश को रद्द करने के लिए इच्छुक था।

    कोर्ट ने राज्य सरकार को कुछ मैकेनिज्म विकसित करने का भी सुझाव दिया जिससे इस प्रकार के अपराधियों को जेल में होने पर उचित परामर्श दिया जाता है और जब वे जेल से बाहर आते हैं, तो उन्हें सुधार किया जाता है और वे सामान्य जीवन जीने में सक्षम होते हैं।

    केस टाइटल: कंथन बनाम राज्य एंड अन्य

    मामला संख्या: एचसीपी (एमडी) संख्या 1655 ऑफ 2021

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ 390

    फैसला पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें:





    Next Story