तरुण तेजपाल को बरी करने का फैसला पूर्वाग्रह और पितृसत्ता के रंग में रंगा; पीड़ित के दोषारोपण पर फोकस: गोवा सरकार ने अपील में कहा

LiveLaw News Network

1 Jun 2021 10:24 AM GMT

  • तरुण तेजपाल को बरी करने का फैसला पूर्वाग्रह और पितृसत्ता के रंग में रंगा; पीड़ित के दोषारोपण पर फोकस: गोवा सरकार ने अपील में कहा

    गोवा सरकार ने बलात्कार मामले में रिहा पत्रकार तरुण तेजपाल के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर की है।

    अपील में बलात्कार पीड़िता के सदमे के बाद के व्यवहार को लेकर निचली अदालत की समझ की कमी का हवाला दिया गया है। अपील में कहा गया है कि पीड़िता के पिछले यौन इतिहास और शिक्षा को उसके खिलाफ कानूनी पूर्वाग्रह के रूप में इस्तेमाल किया गया है, जबकि उन्हीं मानकों का उपयोग आरोपी के खिलाफ नहीं किया गया है। अपील में "पितृसत्ता" संचालित टिप्पणियों का भी हवाला दिया।

    बॉम्बे हाई कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 378 के तहत दायर अपील में, राज्य सरकार की ओर से तर्क ‌दिया गया है कि कई कारकों के कारण रि-ट्रायल का मामला बनाया गया है, क्योंकि जज ने जिरह के दौरान पीड़िता से "निंदनीय," "अप्रासंगिक," "अपमानजनक" प्रश्नों को पूछने की अनुमति दी।

    अपील में पीड़िता के साक्ष्य के ऐसे सभी हिस्सों को हटाने की मांग की गई है, जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 53ए और 146 के अनुरूप नहीं हैं। ये धाराएं पीड़िता के पिछले यौन इतिहास के बारे में सवाल पूछना अस्वीकार्य बनाती हैं, जब सहमति से संबंधित मुद्दे शामिल होते हैं।

    "ट्रायल कोर्ट 527 पृष्ठ के निर्णय में असंगत अस्वीकार्य सामग्री और साक्ष्य से प्रभाव‌ित रही है, पीड़ित के पिछले यौन इतिहास के ग्राफिक विवरण, जो कानून द्वारा निषिद्ध है,, जिसे उसके चरित्र की निंदा करने और उसके सबूतों को बदनाम करने के उद्देश्यों के लिए उपयोग किया है। पूरा निर्णय प्रतिवादी अभियुक्त की दोषी भूमिका का पता लगाने की कोशिश करने के बजाय शिकायतकर्ता गवाह को अभियोग लगाने पर केंद्रित है।"

    27 मई को, जस्टिस एससी गुप्ते की अवकाश पीठ ने निचली अदालत को आदेश को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करते समय पीड़ित की पहचान का खुलासा करने वाले सभी संदर्भों को संशोधित करने का निर्देश दिया और गोवा सरकार को अपनी 'अपील की अनुमति' को संशोधन करने की अनुमति दी थी।

    बरी

    तहलका पत्रिका के सह-संस्थापक और प्रमोटर और इसके प्रधान संपादक तेजपाल को 21 मई को गोवा के मापुसा में एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सभी आरोपों से बरी कर दिया था। उन पर 7 और 8 नवंबर, 2013 को, पत्रिका के आधिकारिक कार्यक्रम - THiNK 13 उत्सव के दौरान, ग्रैंड हयात, बम्बोलिम, गोवा के एक लिफ्ट में, इच्छा के विरुद्ध अपने कनिष्ठ सहयोगी का यौन शोषण करने का आरोप लगाया गया था।

    अपने 527 पन्नों के फैसले में, विशेष न्यायाधीश क्षमा जोशी ने तेजपाल को संदेह का लाभ देने के लिए महिला के गैर-बलात्कार पीड़िता जैसे व्यवहार और दोषपूर्ण जांच पर विस्तार से टिप्पणी की।

    तेजपाल के माफीनामे पर

    राज्य ने तर्क दिया है कि जबकि पीड़िता की योग्यता और जेंडर के क्षेत्र में उसके काम का इस्तेमाल उसकी गवाही को बदनाम करने के लिए किया गया था, ट्रायल कोर्ट ने तरुण तेजपाल के "विलंबित" बचाव को स्वीकार करते हुए समान मानकों को नहीं अपनाया था कि व्यक्तिगत और औपचारिक ई मे पीड़िता को माफी मांगने के लिए भेजे गए, यह या तो उसके द्वारा नहीं भेजे गए या फिर उसकी बहन और फिर तहलका मैनिगिंग एडिटर के कहने पर भेजे गए थे।

    राज्य का कहना है, "ट्रायल कोर्ट ने मामले में सबसे महत्वपूर्ण सबूतों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है, जिसने प्रतिवादी अभियुक्त के अपराध को संदेह की छाया से परे स्थापित किया है।" राज्य का कहना है कि तेजपाल ने छह महीने के लिए संपादकीय से हटने के दौरान "प्रायश्चित" शब्द का इस्तेमाल किया था।

    सदमे में दिखना जरूरी है

    अपील में कहा गया है, "यदि निचली अदालत द्वारा निर्धारित कानून सही है, तो इस तरह की घटना के बाद "आहत" दिखना अनिवार्य है और एक शिक्षित लड़की जो एक सीन नहीं बनाने का विकल्प चुनती है, वह विश्वसनीय गवाह नहीं है।"

    अपील में आगे कहा गया है कि पीड़िता का व्यवहार स्वाभाविक था क्योंकि दो घटनाओं के समय सैकड़ों प्रतिनिधियों, मशहूर हस्तियों और पत्रकारों को शामिल करते हुए एक अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक उत्सव चल रहा था, जब कथित घटना हुई और उसे अपनी नौकरी खोने का डर था।

    राज्य ने अपर्णा भट और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले का हवाला दिया जिसमें यह माना गया था कि अदालतों को धूम्रपान, शराब पीने, पिछले यौन इतिहास आदि जैसी आदतों के आधार पर बलात्कार के मुकदमे में अभियोजन पक्ष के आचरण पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए।

    पीड़ित के कानूनी सलाह लेने पर

    निचली अदालत ने बचाव पक्ष की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि पीड़िता वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन, वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, अधिवक्ता पर्सिस सिधवा और तत्कालीन राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष शमीना शफीक के संपर्क में थी और उसकी गवाही को उसी कोण से देखा जाना चाहिए क्योंकि उसे निर्देशित किया गया और घटनाओं के गढ़ने की संभावना थी।

    राज्य ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार पीड़िता के कानूनी प्रतिनिधित्व के लिए जो कहा है, उसके बारे में अदालत अनजान है और "केवल तथ्य यह है कि पीडब्ल्यू -1 ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं से परामर्श किया, किसी भी तरह से उसके आरोपों की विश्वसनीयता कम नहीं होती है।"

    अभियोजन पक्ष के खिलाफ कानूनी पूर्वाग्रह स्पष्ट

    राज्य का तर्क है कि यह निर्णय अभियोक्ता के खिलाफ अपने स्पष्ट कानूनी पूर्वाग्रह में "चौंकाने वाला" है, जब यह सुझाव देता है कि पीड़िता की गवाही पर भरोसा करना असुरक्षित है क्योंकि वह शिक्षित, एक अच्छी लेखिका, अंग्रेजी में कुशल और बलात्कार कानून पर

    बातचीत करने में सक्षम, और "एक सक्षम, बुद्धिमान, स्वतंत्र व्यक्ति" है।

    पहली मंजिल का सीसीटीवी फुटेज गायब

    राज्य ने पांच सितारा होटल की पहली मंजिल के सीसीटीवी फुटेज से संबंधित विभिन्न टिप्पणियों के लिए ट्रायल कोर्ट की आलोचना की है और इसे "प्रतिवादी अभियुक्त के मनगढ़ंत संस्करण पर विश्वास करने में ट्रायल कोर्ट के पूर्वाग्रह को दर्शाता है।"

    ट्रायल कोर्ट ने पाया था कि जांच अधिकारी ने होटल के ब्लॉक 7 की पहली मंजिल के फुटेज को हटा दिया था क्योंकि इसमें आरोपी के पक्ष में सबूत थे कि घटना के दौरान पीड़िता गलती से पहली मंजिल पर गिर गई थी।

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