ट्रिपल तलाक के मामलों में अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन मजिस्ट्रेट के समक्ष न जाने के कारण बताने चाहिए : केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

9 Aug 2020 10:59 AM GMT

  • ट्रिपल तलाक के मामलों में अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन मजिस्ट्रेट के समक्ष न जाने के कारण बताने चाहिए : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना है कि उस मामले में सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत आवेदन दायर करना वर्जित नहीं है,जो मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के तहत किए गए अपराध के संबंध में दर्ज किया गया हो।

    न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि परंतु ऐसे मामलों में यदि कोई अभियुक्त सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अधिकार का लाभ उठाना चाहता है, तो उसे विशेष रूप से सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर किए गए आवेदन में यह बताना होगा कि वह अधिनियम, 2019 की धारा 7 (सी) के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष क्यों नहीं गया। इसी के साथ पीठ ने अभियुक्त को निर्देश दिया है कि वह (जिसने हाईकोर्ट के समक्ष अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी) पहले संबंधित मजिस्ट्रेट कोर्ट के समक्ष जाएं और अधिनियम, 2019 की धारा 7 (सी) के तहत जमानत आवेदन दायर करें।

    इस मामले में, अभियुक्त ने तर्क दिया था कि यदि वह धारा 7 (सी) के तहत मजिस्ट्रेट कोर्ट के समक्ष जमानत आवेदन दायर करता है, तो इस बात की पूरी संभावना है कि मजिस्ट्रेट उसे रिमांड पर भेज दें क्योंकि मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता को नोटिस जारी करने के बाद ही जमानत आवेदन पर विचार कर सकता है। उसने सीआरपीसी की धारा 438 के तहत इसलिए आवेदन दायर किया है, क्योंकि उसके पास यही एक उपाय उपलब्ध है।

    इस प्रकार न्यायालय ने इस मुद्दे पर विचार किया कि क्या अधिनियम, 2019 के तहत किए गए अपराध में शामिल एक आरोपी मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष अधिनियम, 2019 की धारा 7 (सी) के तहत जमानत आवेदन दायर किए बिना ही सीआरपीसी की धारा 438 के तहत याचिका दायर कर सकता है?

    अधिनियम के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि अधिनियम, 2019 (एससी-एसटी अधिनियम में इसके विपरीत है) में इस तरह की कोई प्रतिबंधात्मक धारा नहीं है जो कोर्ट को सीआरीपीसी की धारा 438 के तहत दायर एक आवेदन पर विचार करने से रोकती हो। कोर्ट ने कहा कि एक मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 437 (1) के तहत एक आवेदन पर तभी विचार कर सकता है जब आरोपी को पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी द्वारा बिना वारंट के गिरफ्तार या हिरासत में ले लिया गया हो या अभियुक्त अदालत में पेश होता है या अभियुक्त को अदालत में पेश किया जाता है।

    न्यायाधीश ने कहा,

    ''लेकिन, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सीआरपीसी की धारा 437 (1) के तहत जमानत आवेदन पर विचार करने के लिए लगाई गई तीन पूर्व शर्तें अधिनियम 2019 की धारा 7 (सी) में नहीं हैं।''

    पीठ ने यह भी कहा कि-

    ''धारा 7 (सी) में, केवल यह कहा गया है कि 'अभियुक्त द्वारा दायर एक आवेदन पर अधिनियम, 2019 की धारा 7 (सी) के तहत कोर्ट के समक्ष आरोपी की उपस्थिति पर जोर नहीं दिया गया है। इसी तरह जमानत के आवेदन पर विचार करने के लिए पुलिस अधिकारी द्वारा बिना वारंट के अभियुक्त को गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने के बारे में अधिनियम, 2019 की धारा 7 (सी) के तहत कुछ अपेक्षित नहीं है।

    इसी प्रकार अधिनियम, 2019 की धारा 7 (सी) के तहत अभियुक्त की गिरफ्तारी और उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना भी अपेक्षित या जरूरी नहीं है। जहां तक​ अधिनियम, 2019 के तहत जमानत आवेदन पर विचार करने की बात है तो धारा 7 (सी) एक पूर्ण कोड है।''

    कोर्ट ने धारा 7 (सी) के तहत जमानत आवेदन पर विचार करने के मामले में निम्नलिखित दिशानिर्देश जारी किए हैं-

    1-यदि अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के तहत दर्ज मामले में अगर एक अभियुक्त धारा 7 (सी) के तहत मजिस्ट्रेट के सामने जमानत आवेदन दायर करता है तो मजिस्ट्रेट के समक्ष उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक नहीं है जब तक कि जमानत आवेदन पर अंतिम आदेश पारित नहीं कर दिया जाता है। पीड़ित की व्यक्तिगत उपस्थिति की भी आवश्यकता नहीं है। यदि वह ऐसा करने का इरादा रखता है तो अभियुक्त एक वकील के माध्यम से जमानत आवेदन दायर कर सकता है। वहीं पीड़ित भी चाहे तो अपने वकील के माध्यम से जमानत आवेदन का विरोध कर सकती है।

    2-यदि अधिनियम, 2019 की धारा 7 (सी) के तहत एक जमानत आवेदन दायर किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट को उस विवाहित मुस्लिम महिला का पक्ष सुनना चाहिए,जिसे तीन तलाक दिया गया है या जिसके समक्ष तलाक का उच्चारण किया गया है।

    3-धारा 7 (सी) के तहत दायर जमानत आवेदन में पारित आदेश पूर्ण तथ्यों पर आधारित होना चाहिए।

    4-यदि किसी अभियुक्त द्वारा अधिनियम, 2019 की धारा 7 (सी) के तहत दायर जमानत आवेदन को स्वीकार कर लिया जाता है तो मजिस्ट्रेट अभियुक्त को निर्देश देगा कि वह जल्द ही अदालत के समक्ष पेश हो ताकि बांड भरने सहित जमानत की अन्य शर्तों का पालन किया जा सकें।

    5-यदि अधिनियम, 2019 की धारा 7 (सी) के तहत दायर जमानत आवेदन को मजिस्ट्रेट द्वारा खारिज कर दिया जाता है, तो जांच अधिकारी कार्रवाई का पालन कर सकता है और यदि आवश्यक हो, तो अभियुक्त को गिरफ्तार कर सकता है।

    6-यदि अधिनियम, 2019 की धारा 7 (सी) के तहत दायर जमानत आवेदन को मजिस्ट्रेट द्वारा खारिज कर दिया जाता है, तो आरोपी उस आदेश को चुनौती दे सकता है, यदि वह कानून के अनुसार ऐसा करने का इरादा रखता है। ऐसे समय में आरोपी गिरफ्तारी की आशंका होने पर सीआरपीसी की धारा 438 के तहत एक आवेदन भी दायर कर सकता है।

    7-यदि धारा 7 (सी) के तहत दायर एक आवेदन को स्वीकार कर लिया जाता है तो विवाहित मुस्लिम महिला (जिसे तीन तलाक दिया जाता है )कानून के अनुसार उस आदेश को चुनौती दे सकती है।

    केस का विवरण

    केस का नाम- नाहस बनाम केरल राज्य

    केस नंबर- जमानत आवेदन नंबर 9163/2019

    कोरम-जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन

    प्रतिनिधित्व-अधिवक्ता पी.एस नंदन, पी.एन अनूप और पीपी अजीथ मुरली

    आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



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