परोक्ष रूप से भी बलात्कार पीड़िता की पहचान का खुलासा करने से बचने के लिए सावधानी बरतेंः बाॅम्बे हाईकोर्ट ने मीडिया, जनता और न्यायालयों के लिए निर्देश जारी किए

LiveLaw News Network

1 Feb 2021 4:45 AM GMT

  • परोक्ष रूप से भी बलात्कार पीड़िता की पहचान का खुलासा करने से बचने के लिए सावधानी बरतेंः बाॅम्बे हाईकोर्ट ने मीडिया, जनता और न्यायालयों के लिए निर्देश जारी किए

    बाॅम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद पीठ) ने हाल ही में प्रिंट/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व आम जनता के लिए कुछ अतिरिक्त दिशा-निर्देश जारी किए ताकि सोशल मीडिया का उपयोग करके बलात्कार पीड़िता से संबंधित ऐसी जानकारियों को प्रकाशित करने से रोका जा सके,जो ''प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से'' उसकी पहचान का खुलासा कर देती हैं।

    न्यायमूर्ति टी वी नलवाडे और न्यायमूर्ति एम जी सेवलीकर की खंडपीठ एक संगीता (एक बलात्कार पीड़िता की माँ) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने मांग की थी कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को निर्देश दिया जाए कि बलात्कार की पीड़िता के नाम या पहचान का खुलासा न किया जाए।

    याचिकाकर्ता की दलीलें

    याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 228-ए के तहत प्रावधान होने और निपुण सक्सेना व अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य (2019) 2 एससीसी 703 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देश जारी किए जाने के बावजूद प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपराध के विवरण (उसकी बेटी को शामिल करते हुए) इस तरह से प्रकाशित कर रहे हैं कि पीड़िता की पहचान का खुलासा हो रहा है।

    याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि बलात्कार के अपराध के कारण पीड़िता पहले ही शारीरिक और मानसिक आघात झेलती है। ऐसे में पीड़िता की पहचान उजागर करने वाले समाचार के प्रकाशन से उसे गंभीर मानसिक पीड़ा होती है।

    न्यायालय का अवलोकन

    शुरुआत में ही अदालत ने रेखांकित किया कि यौन अपराध का शिकार हुई पीड़िता न केवल शारीरिक आघात, बल्कि मानसिक आघात भी झेलती है। बिना किसी दोष के उसे इन पीड़ाओं से गुजरना पड़ता है।

    न्यायालय ने आगे उल्लेख किया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 228-ए में यह आदेश दिया गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 376-ए, 376-बी, 376-सी, 376-डी या 376-ई के तहत किए गए अपराधों में पीड़िता की पहचान खुलासा नहीं होना चाहिए।

    निपुण सक्सेना व अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य (2019) 2 एससीसी 703 मामले में शीर्ष अदालत द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने कहा कि,

    ''इन दिशानिर्देशों को जारी करने के बावजूद, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इन अपराधों को इस तरह से रिपोर्ट कर रहे हैं कि पीड़िता की पहचान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्थापित हो जाती है।''

    (नोटः निपुण सक्सेना केस (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार अपराधों के पीड़ितों की गोपनीयता और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए थे। न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने 9 महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए थे।)

    महत्वपूर्ण रूप से, बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़िता के नाम का उल्लेख किए बिना ही पीड़िता के माता-पिता का नाम या पीड़िता के अन्य संबंधियों का विवरण देकर, पीड़िता का आरोपी के साथ संबंध बताकर,आरोपी और पीड़िता का आवासीय पता व अन्य विवरण देकर पीड़िता की पहचान स्थापित की जा सकती है।

    यह रेखांकित करते हुए कि, ऐसे मामलों में मीडिया को एहतियात के साथ काम करना चाहिए और उनसे संयम का पालन करने की उम्मीद की जाती है, अदालत ने कहा कि,

    ''समाचारों को इतने विस्तार से प्रकाशित करना कि उनसे पीड़िता की पहचान का पता चल जाता है,स्वयं में यह दर्शाता है कि मीडिया आत्म-संयम का पालन नहीं कर रहा है। हमारा यह कहने का मतलब नहीं है कि मीडिया जानबूझकर ऐसा करता है। लेकिन समाचार आइटम को तेजी से प्रकाशित करते समय कुछ मामलों में उचित सावधानी नहीं बरती जाती है और खबर इस तरीके से प्रकाशित कर दी जाती है कि उससे पीड़िता की पहचान पाठकों/ दर्शकों को पता चल जाती है।''

    न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देश

    पीड़िता की पहचान के प्रकटीकरण से बचने के लिए, निपुण सक्सेना (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए निर्देशों के अलावा कोर्ट ने प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व व्हाट्सएप, फेसबुक,इंटरनेट, ट्विटर आदि जैसे सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले लोगों के लिए कुछ निर्देश जारी किए हैं।

    न्यायालय ने निर्देश दिया है कि प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले लोग (जैसे कि व्हाट्सएप, फेसबुक, इंटरनेट, ट्विटर आदि) भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 376-ए, 376-बी, 376-सी,376-डी व 376-ई व पाॅक्सो एक्ट के तहत किए गए अपराधों से संबंधित सूचना देते समय निम्नलिखित जानकारी का इस तरह से प्रकाशन/खुलासा नहीं करेेंगे, जिससे पीड़िता की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पहचान उजागर हो जाएः-

    1.पीड़िता के माता-पिता या रिश्तेदारों के नाम।

    2.पीड़िता के साथ आरोपी का संबंध।

    3.आरोपी और पीड़िता का आवासीय/ व्यावसायिक/कार्य का पता और जिस गाँव में पीड़िता और /या आरोपी रहते हैं।

    4.पीड़िता के माता-पिता या अन्य संबंधियों का पेशा और पीड़िता व अभियुक्त/उनके माता-पिता या अन्य रिश्तेदारों के कामकाज का स्थान,इस तरह से न बताया कि उससे पीड़िता की पहचान हो सके।

    5.यदि पीड़िता एक छात्रा है तो उसके स्कूल या कॉलेज या किसी अन्य शैक्षणिक संस्थान या निजी कोचिंग कक्षाओं का नाम, जो पीड़िता ने अपने शौक जैसे संगीत, ड्राइंग, नृत्य, सिलाई, खाना पकाना आदि के लिए ज्वाइन कर रखी हो।

    6. पीड़िता की पारिवारिक पृष्ठभूमि का विवरण।

    ट्रायल कार्यवाही के लिए दिशा निर्देश

    इसके अलावा, अदालत ने कहा कि आरोप तय करते समय, पीड़िता के नाम का उल्लेख करने से बचना चाहिए। इसके बजाय, उसे 'एक्स' या किसी अन्य वर्णमाला के रूप में संदर्भित किया जाना चाहिए, जिसे न्यायालय उचित मानता हो।

    न्यायालय ने आगे निर्देश दिया,

    ''साक्ष्य दर्ज करते हुए, अगर गवाह पीड़िता के नाम का उल्लेख करता है, तो अदालत रिकॉर्ड करेगी कि 'गवाह ने पीड़िता का नाम बताया है लेकिन उसकी पहचान छिपाने के लिए, उसका नाम दर्ज नहीं किया जा रहा है' और पीड़िता को उसी तरह से संदर्भित किया जाना चाहिए जिस तरह से आरोप तय करते समय किया गया था।''

    महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने निर्देश दिया कि यदि गवाह पीड़िता है, तो सबूत दर्ज करते समय उसके नाम का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए। उसका नाम, रहने की जगह, उम्र, व्यवसाय की जानकारी एक सीलबंद कवर में रखी जाए और नाम के कॉलम में, उसे उसी तरह से संदर्भित किया जा सकता है,जैसा आरोप तय करते समय किया गया था और उसके पते व व्यवसाय के काॅलम को खाली रखा गया था।

    न्यायालय ने आगे निर्देश दिया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के तहत बयान दर्ज करते समय भी इसी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा, ''दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के तहत बयान दर्ज करते समय, अदालत पीड़िता को उस तरीके से संदर्भित करेगी, जिस तरीके से उसे आरोप तय करतेे समय संदर्भित किया गया था।''

    साथ ही, मजिस्ट्रेट या रिमांड से संबंधित अदालत को रिमांड रिपोर्ट भेजने के मामले में न्यायालय ने निर्देश दिया कि पीड़िता के नाम का उल्लेख करने से बचा जाना चाहिए और इसके बजाय, उसे 'एक्स' या किसी अन्य वर्णमाला के रूप में संदर्भित किया जाना चाहिए, जो भी जांच अधिकारी को उचित लगे।

    अंत में, अदालत ने उम्मीद जताई कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पीड़ितों और/ या उसके रिश्तेदारों के साक्षात्कार आयोजित करने में संयम दिखाएगा और पीड़िता की पहचान को उजागर करने से बचने के लिए सभी सावधानी बरतेंगे।

    उपरोक्त निर्देशों के मद्देनजर, इस जनहित याचिका का निस्तारण कर दिया गया।

    रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश दिया गया कि वह इन निर्देशों के बारे में निम्नलिखित को अवगत कराएंः

    -सभी अधीनस्थ न्यायालयों को प्रसारित करने के लिए इस न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को

    -प्रमुख सचिव, गृह विभाग, महाराष्ट्र सरकार

    -प्रमुख सचिव और आर.एल.ए, कानून और न्यायपालिका विभाग

    -इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन, नई दिल्ली के सचिव

    -भारतीय प्रेस परिषद, नई दिल्ली के सचिव

    केस का शीर्षक - संगीता बनाम महाराष्ट्र राज्य,आपराधिक जनहित याचिका नंबर 1/2016

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