तब्लीगी जमातः 'यह दिखाने के लिए कोई सामग्री नहीं कि वे प्रतिबंधित गतिविधियों में लिप्त थे', पटना हाईकोर्ट ने 18 विदेशी नागरिकों के खिलाफ मामला रद्द किया
LiveLaw News Network
24 Dec 2020 7:01 PM IST
यह देखते हुए कि पुलिस ने प्रथम दृष्टया विचार बनाने के लिए किसी भी रूप में किसी भी सामग्री को इकट्ठा नहीं किया था कि विदेशी नागरिक धार्मिक/तब्लीगी कार्य में लिप्त थे, पटना हाईकोर्ट ने मंगलवार (22 दिसंबर) को तब्लीगी जमात से जुड़े 18 विदेशी नागरिकों के खिलाफ पूरे आपराधिक मुकदमे को खारिज कर दिया।
जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद की खंडपीठ ने विशेष रूप से कहा, "मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अररिया ने निषेध अपराधों का संज्ञान लिया और इन विदेशी नागरिकों को नियमित और यांत्रिक तरीके से समन जारी करने का फैसला लिया।"
न्यायालय के समक्ष मामला
कोर्ट के सामने दो दलीलें रखी गईं। पहली दलील में [Cr.W.J.C. NO. 367/2020], 11 याचिकाकर्ता (याचिकाकर्ता संख्या एक से नौ) शामिल थे, जो विदेशी नागरिक हैं और वे पश्चिम बंगाल के रास्ते सड़क मार्ग से पर्यटक वीजा पर भारत आए थे।
तब्लीगी जमात से पहले वे 'निजामुद्दीन मरकज', दिल्ली गए, उसके बाद वे 11.03.2020 को बिहार राज्य के अररिया पहुंचे और वे 15.20.2020 से 'रीवाही मरकज' में रह रहे थे।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ता संख्या 10 और 11 अररिया जिले के स्थायी निवासी हैं।
22 मार्च 2020 को, जनता कर्फ्यू घोषित किया गया और 24 मार्च से 21 दिनों के लिए देशव्यापी बंद का ऐलान किया गया।
आगे कहा गया कि याचिकाकर्ता 'रीवाही मरकज' में फंसे हुए थे। प्रशासन ने उनकी जांच की और फिर स्थानीय प्रशासन ने उन्हें क्वारंटीन कर दिया और वे सरकार के मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) के अनुसार अनिवार्य रूप से रीवाही मरकज में ही रहे।
इसके अलावा, बिहार पुलिस ने 12.04.2020 को रीवाही मरकज का दौरा किया और एक एफआईआर दर्ज की। एफआईआर के अनुसार, मौलाना तोहिद और मौलाना मुनीफ (याचिकाकर्ता संख्या 10 और 11) ने मुखबिर से कहा था कि नौ बांग्लादेशी नागरिक 15.03.2020 से मरकज में रह रहे थे, उन्हें मौलाना ने मरकज में बुलाया था और वे धार्मिक विचारधाराओं के प्रसार में शामिल थे।
यह आरोप लगाया गया कि जब मुखबिर ने मौलानाओं से पूछा कि 'रिवाही मरकज' में बंगलादेशी नागरिकों के रहने की कोई जानकारी नरपतगंज पुलिस स्टेशन को उपलब्ध नहीं कराई गई है, तो मौलाना मुखबिर के सवाल का संतोषजनक उत्तर देने में असमर्थ थे।
मुखबिर के आरोप
(i) पुलिस थाने में उनकी यात्रा के बारे में कोई भी जानकारी प्रस्तुत नहीं की गई और
(ii) पर्यटक वीजा पर भारत आने वाले विदेशी नागरिक द्वारा धार्मिक विचारधाराओं के प्रसार में शामिल होना, फॉरेनर्स एक्ट, 1946 की धारा 14 और 14 (सी) के तहत अपराध हैं (यहां से इसे 'फॉरेनर्स एक्ट' या '1946 का अधिनियम' के रूप में जाना जाएगा)।
रिट आवेदन के लंबित होने के दौरान, इस मामले में फॉरेनर्स एक्ट की धारा 14 और 14 (सी) के तहत एक आरोप पत्र दायर किया गया था।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अररिया ने, 01.10.2020 के आदेश के जरिए उपरोक्त प्रावधानों के तहत अपराधों का संज्ञान लेते हुए याचिकाकर्ताओं को समन जारी किया।
इसी तरह के तथ्य और आरोप दूसरी रिट याचिका में शामिल थे [Cr.W.J.C.No 369 of 2020]
कोर्ट के सामने सवाल
पूरा मामला एक सवाल से संबंधित था कि क्या एफआईआर. 1946 के अधिनियम की धारा 14 (बी) के संदर्भ में वीजा शर्तों के उल्लंघन का खुलासा कर रही हैं या याचिकाकर्ताओं ने 1946 के अधिनियम की धारा 14, 14-ए या 14-बी 14-सी के तहत दंडनीय अपराध किए हैं।
न्यायालय के अवलोकन
सबसे पहले, न्यायालय ने देखा कि 20 नवंबर, 1996 को [गृह मंत्रालय द्वारा जारी] परिपत्र में कहा गया है कि पर्यटक वीजा पर भारत में प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिक, यदि धार्मिक/ तब्लीगी काम में लिप्त पाए जाते हैं, तो उन पर फॉरेनर्स एक्ट के तहत निर्वासन सहित कार्रवाई की जानी चाहिए।
इसी समय, परिपत्र ने स्पष्ट किया है कि तब्लीग जमात इज्तेमा में भाग लेने के वर्जित तब्लीग कार्य नहीं माना गया है।
[नोट: तब्लीग कार्य में जगह जगह उपदेश देना शामिल हैं; तब्लीग मंच से बोलना/ प्रचार करना आदि शामिल है। इन गतिविधियों में लिप्त विदेशी नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।]
दूसरे, 15 अप्रैल, 2015 के परिपत्रों पर, अदालत ने कहा है कि सरकार इस तथ्य से अच्छी तरह परिचित है कि कुछ देशों से पर्यटक वीजा पर भारत आने वाले विदेशी नागरिक आमतौर पर विभिन्न 'मस्जिद/मदरसा' में रुकते हैं।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 'मस्जिद' / 'मदरसा' में टूरिस्ट वीजा पर विदेशी नागरिकों के ठहरने पर प्रतिबंध नहीं लगाया है।
"विदेशी ने धार्मिक/तब्लीग कार्य में लिप्त नहीं थे"
न्यायालय ने कहा कि जिन कार्यों को प्रतिबंध/ निषेध किया गया है, वह उपदेश देना, तब्लीग मंच से बोलना, प्रचार करना आदि हैं।
इस संदर्भ में, कोर्ट ने कहा, "इन दो मामलों (तात्कालिक मामलों) में विदेशी नागरिक 'मर्काज' और 'मस्जिद' में लॉक-डाउन 1.0 के लागू होने से पहले से रह रहे थे। लॉक-डाउन के लगाए जाने से पहले 'बीओआई'/ स्थानीय पुलिस स्टेशन ने इन विदेशी नागरिकों की पहचान धार्मिक/ तब्लीग कार्य में शामिल लोगों के रूप में नहीं की थी।"
कोर्ट ने आगे कहा, "उन्हें किसी भी सभा को संबोधित करते हुए या धार्मिक विचारधाराओं का प्रचार करते हुए नहीं देखा गया है। जांच के दौरान भी पुलिस ने किसी भी रूप में कोई भी सामग्री किसी भी प्रकार से एकत्र नहीं की है ताकि वे इस बात पर विचार कर सकें कि ये विदेशी नागरिक धार्मिक/ तब्लीग काम में शामिल थे।"
BOI (आव्रजन ब्यूरो) द्वारा जारी परिपत्र
इसके अलावा, अदालत ने 02.04.2020 को (आव्रजन ब्यूरो जारी किए गए ) परिपत्र को ध्यान में रखा, जो उन सभी विदेशी नागरिकों का पता लगाने और उन पर नजर रखने की बात करता है जो टूरिस्ट वीजा पर भारत आए थे, और अलग-अलग राज्यों और जिलों में चले गए थे और तब्लीगी जमात मरकज निजामुद्दीन, नई दिल्ली की गतिविधियों में शामिल थे, और उसके बाद अलग-अलग जगहों पर गए।
अब, चूंकि वे गृह मंत्रालय, भारत सरकार से अनुमति प्राप्त किए बिना इस तरह की गतिविधियों में लिप्त नहीं हो सकते थे, परिपत्र के अनुसार, उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की आवश्यकता थी।
वास्तव में, बीओआई उन विदेशी नागरिकों की पहचान करनी थी, जिन्होंने टूरिस्ट वीजा पर तब्लीगी गतिविधियों में भाग लिया था और बीओआई को वीजा उल्लंघन के लिए दंडात्मक कार्रवाई करनी थी।
हालांकि, बीओआई इन याचिकाकर्ताओं के संबंध में किसी भी पहचान के साथ सामने नहीं आया था। इस न्यायालय के समक्ष ऐसे कोई तथ्य नहीं रखे गए।न्यायालय ने कहा कि विदेशी नागरिकों की पहचान के लिए, उनकी तब्लीग गतिविधियों में भागीदारी दिखाने के लिए सामग्री जरूरी थी, लेकिन अदालत के समक्ष ऐसी कोई सामग्री नहीं पेश की गई।
कोर्ट ने टिप्पणी की, "केस डायरी में भी कोई ऐसी सामग्री नहीं है, जो यह बताती हो कि इन विदेशी नागरिकों ने धार्मिक विचारधाराओं के प्रचार किया या उन्होंने 'मर्कज' और 'मस्जिद' के मंच पर किसी भी सभा को संबोधित किया। धार्मिक विचारधाराओं का प्रचार करना किसी भी सामग्री द्वारा समर्थित नहीं है। यह एक निराधार आरोप है। "
किसी भी सामग्री के अभाव में, अदालत ने कहा, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अररिया ने अपराधों का संज्ञान लिया और इन विदेशी नागरिकों को एक नियमित और यांत्रिक तरीके से सम्मन जारी करने का निर्णय लिया।
'मर्कज' और 'मस्जिद' में टूरिस्ट वीजा पर विदेशी नागरिकों के ठहरने के संबंध में रिपोर्टिंग
दोनों रिट याचिकाओं में, यह तर्क दिया गया कि 'मर्कज' और 'मस्जिद' में टूरिस्ट वीजा पर विदेशी नागरिकों के रहने के संबंध में रिपोर्टिंग की आवश्यकता नहीं थी।
कोर्ट ने कहा, "इन अवसंरचनाओं का उपयोग बोर्डिंग हाउस/ रेस्ट हाउस के रूप में किया जा रहा है। विदेशी नागरिकों को 'मस्जिद/मर्कज' प्रबंधन द्वारा ऐसी अवसंरचना/ इमारतों/ अपार्टमेंट में समायोजित किया जा रहा है, इसलिए उन स्थानों को विस्तारित अर्थ देते हुए 'बोर्डिंग हाउस' और 'रेस्ट हाउस' शब्द के अर्थ में कवर किया जाता है।"
कोर्ट का आदेश
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अब तक विदेशी नागरिकों के खिलाफ दायर मुकदमों में आगे बढ़ने का कोई आधार नहीं था।
हालांकि, अदालत ने रिकॉर्ड पर दर्ज तथ्यों में पाया कि विदेशी नागरिक 'मर्कज' और 'मस्जिद' में लॉक-डाउन 1.0 लगाए जाने से रह रहे थे, लेकिन इसकी जानकारी 'मर्कज' और 'मस्जिद' प्रबंधन ने सक्षम प्राधिकारी को नहीं दी थी। इसलिए याचिकाकर्ता 10 और 11 के खिलाफ Cr.W.J.C.No 367 of 2020 और याचिकाकर्ता एक के खिलाफ Cr.W.J.C.No 369 of 2020 में समन जारी किए जाने का प्रथम दृष्टया केस पाया जाता है। कोर्ट ने अब तक उनसे संबंधित आदेशों में हस्तक्षेप नहीं किया है।
अंत में, उत्तरदाताओं को निर्देशित किया गया कि वे विदेशी नागरिकों निर्वासित करने के लिए कदम उठाएं।
केस टाइटिल- मोहम्मद इनामुल हसन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य [Criminal Writ Jurisdiction Case No.367 of 2020] और मोहम्मद इनामुल हसन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य [Criminal Writ Jurisdiction Case No. 369 of 2020]