[तब्लीगी जमात] सभी मामलों को उत्तर प्रदेश के तीन जिलों में स्‍थानातं‌रित किया जाए, और आठ सप्ताह के भीतर ‌निस्तारण किया जाएः इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

4 Oct 2020 4:00 AM GMT

  • [तब्लीगी जमात] सभी मामलों को उत्तर प्रदेश के तीन जिलों में स्‍थानातं‌रित किया जाए, और आठ सप्ताह के भीतर ‌निस्तारण किया जाएः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार (30 सितंबर) को निर्देश दिया कि कानपुर, गोरखपुर, प्रयागराज, वाराणसी और लखनऊ जोन में तब्लीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ लंबित मामलों को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ को हस्तांतरित कर दिया जाए।

    इसी प्रकार, आगरा और मेरठ जोन में लंबित मामलों को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, मेरठ को स्थानांतरित किया जाना चाहिए। बरेली जोन में लंबित मामलों को मुख्य न्यायिक (10) मजिस्ट्रेट, बरेली को स्थानांतरित किया जाना चाहिए। उपरोक्त जोन के अंतर्गत आने वाले जिलों के नाम जजमेंट में दिए गए हैं।

    जस्टिस शशि कांत गुप्ता और जस्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ, राज्य सरकार की ओर से दायर याचिका/आवेदन पर सुनवाई कर रही थी। उक्त याचिका/आवेदन सुप्रीम कोर्ट द्वारा 6.8.2020 को पारित आदेश के बाद दायर किया गया।

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था-

    विभिन्न जिलों में तब्लीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ दर्ज मामलों को संबंधित जोनों में स्थानांतरित किया जाए या ऐसे अन्य या अगले आदेशों को परित किया जाए, जिन्हें यह न्यायालय उचित समझे।

    तब्लीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ मामले

    उल्लेखनीय है कि COVID-19 प्रकोप के बाद उन विदेशी लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाया गया था, जिन्होंने नई दिल्ली में आयोजित तब्लीगी जमात के सम्मेलन में भाग लिया था।

    मौलाना आला हद्रमी और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर तब्लीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ दायर आपराधिक मुकदमों को चुनौती दी थी। हस्तक्षेपकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 2020 की अंतरिम आवेदन संख्या 84676 दायर की थी।

    याचिका में उठाई गई शिकायतों में से एक यह थी कि तब्लीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ उत्तर प्रदेश में कई आपराधिक मामले लंबित हैं और संबंधित न्यायालय विभिन्न शर्तों के साथ जमानत दे रहे हैं, और इस संबंध में एकरूपता नहीं है।

    दूसरी शिकायत यह थी कि विभिन्न न्यायालयों में कार्यवाही लंबित होने के कारण, संबंधित मामलों के अभियुक्तों को लॉजिस्टिक संबंधी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, यही कारण है एक ही मुद्दे से जुड़े मामले को; उत्तर प्रदेश राज्य की एक अदालत के समक्ष जांच/ सुनवाई के लिए आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (04 सितंबर) को तब्लीगी जमात की गतिविधियों में कथित संलिप्तता के लिए विदेशी नागरिकों के खिलाफ उत्तर प्रदेश में दायर कई एफआईआर को इकाट्ठा करने की अनुमति दी थी और निर्दिष्ट अदालतों के समक्ष लंबित ट्रायल को स्थानांतरित करने पर सहमति व्यक्त की थी।

    जस्टिस एएम खानविल्कर, दिनेश माहेश्वरी, और संजीव खन्ना की खंडपीठ ने राज्य सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रिंसिपल बेंच को यह फैसला करने के लिए एक आवेदन देने का आदेश दिया था कि कौन सी और कितनी अदालतें, उत्तर प्रदेश के विभिन्न जोनों में लंबित मुकदमों की सुनवाई करेंगी।

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा था,

    "वर्तमान मामलों में अभियोजन (उत्तर प्रदेश राज्य) उचित राहत (ओं) के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के प्रधान सीट के समक्ष एक औपचारिक आवेदन दायर करेगा, जिस पर निश्चित रूप से 06.08.2020 को, एनसीटी ऑफ दिल्ली के ऐसे ही मामलों में पर‌ित आदेश के आलोक और संदर्भ में विचार किया जाएगा। उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा स्थानांतरित आवेदन को अधिमानतः इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा, आपराधिक कार्यभार संभालते हुए, शीघ्रता से, निस्तारित किया जा सकता है।

    आवेदन को उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा स्थानांतरित करने और उच्च न्यायालय द्वारा निस्तार‌ित किए जाने के बाद, अदालतें संबंधित आपराधिक मामलों को, जिस तारीख को उन्हें हस्तांतरित किया जाता है, से आठ सप्ताह के भीतर निस्तारित करने का प्रयास करेंगी..."

    सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को एक सप्ताह के भीतर विशिष्ट न्यायालय (ओं) की पहचान करने का भी निर्देश दिया, जहां सभी मामलों को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा सकता हो। विशेष रूप से, आवेदन/ याचिका के पैरा 5 में, यह कहा गया था कि उत्तर प्रदेश राज्य के विभिन्न जिलों में तब्लीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ बड़ी संख्या में मामले दर्ज किए गए हैं।

    आगे कहा गया था कि कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए, उत्तर प्रदेश राज्य को आठ क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक क्षेत्र में कई जिले शामिल हैं।

    याचिकाकर्ताओं के वकील के तर्क

    याचिकाकर्ताओं के वकील मनीष गोयल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी अभियोजन एजेंसी की कठिनाइयों से पूरी तरह अवगत है, जैसे, सुप्रीम कोर्ट ने 4.9.2020 को दिए अपने आदेश में विशेष रूप से निर्देशित नहीं किया है कि ट्रायल एक ही अदालत में आयोजित किया जाए, न्यायालय ने इसके बजाय विशेष रूप से "ट्रायल अदालत (अदालतों)" ​​शब्द का इस्तेमाल किया है, जो इस न्यायालय को एक या एक से अधिक न्यायालयों में मामलों को स्थानांतरित करने का विवेक प्रदान करता है, जैसे, यह प्रार्थना की गई है कि विभिन्न जिलों में लंबित मामलों को स्थानांतरित किया जाए। कम से कम 2 या 3 जिले ताकि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों के अनुसार तय किया जा सके।

    हाईकोर्ट का आदेश

    तदनुसार, न्यायालय ने मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश राज्य को निर्देश दिया कि वे वर्तमान निर्णय में दिए गए तरीके से तब्लीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों को स्थानांतरित करें (कृपया इस रिपोर्ट के प्रारंभिक पैराग्राफ को देखें)।

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिनांक 4.9.2020 को ‌‌दिए गए आदेश में जारी किए गए निर्देशों के मद्देनजर, न्यायालय ने राज्य के साथ-साथ उपरोक्त सभी मामलों के निस्तारण के लिए संबंधित न्यायालयों को निर्देश जारी किए हैं:

    1. विभिन्न जिला न्यायालयों में तब्लीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ लंबित सभी आपराधिक मामलों का रिकॉर्ड संबंधित न्यायालयों को हस्तांतरित किया जाना चाहिए, जैसा कि इंगित किया गया है, आज से 2 सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाना चाहिए।

    2. तब्लीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ लंबित सभी आपराधिक मामलों को संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटों द्वारा सुना और तय किया जाएगा, जैसा कि इंगित किया गया है, संबंधित न्यायालयों द्वारा रिकॉर्ड प्राप्त होने की तारीख से 8 सप्ताह के भीतर किया जाना चाहिए।

    3. सभी मामलों को संबंधित न्यायालयों द्वारा वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के जर‌िए सुना जाएगा, जबकि पार्टियां ट्रायल में न्यायालयों का पूरा सहयोग करेंगी।

    इन्हीं अवलोकनों के साथ रिट याचिका का निस्तारण किया गया।

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