सुशांत सिंह राजपूत के घरेलू सहायक ने एनसीबी पर अवैध हिरासत का आरोप लगाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में 10 लाख रुपये मुआवजे की मांग की

LiveLaw News Network

21 Oct 2020 3:45 AM GMT

  • सुशांत सिंह राजपूत के घरेलू सहायक ने एनसीबी  पर अवैध हिरासत का आरोप लगाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में 10 लाख रुपये मुआवजे की मांग की

    सुशांत सिंह राजपूत के घरेलू काम के सहायक दीपेश सावंत, जिस पर सुशांत के लिए ड्रग्स खरीदने का आरोप है, उसने ने बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर कर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा अवैध रूप से हिरासत मेंं रखने के लिए और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के घोर उल्लंघन का आरोप लगाते हुए भारतीय संघ से मुआवजे में 10 लाख रुपये की मांग की है ।

    जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एमएस कार्णिक की डिविजन बेंच 6 नवंबर को याचिका पर सुनवाई करेगी।

    याचिकाकर्ता के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट, 1985 के धारा 8 (सी) और धारा 20 (बी) (II) (ए), 23, 29 और 30 के तहत मामला दर्ज किया गया था। दीपेश सावंत को हाईकोर्ट ने दो सप्ताह पहले ही जमानत दे दी है।

    याचिकाकर्ता के अनुसार एनसीबी ने रिकॉर्ड में दिखाया है कि उसे 5 सितंबर को रात आठ बजे गिरफ्तार किया गया था लेकिन वास्तव में उसका दावा है कि उसे 4 सितंबर को रात 10 बजे गिरफ्तार किया गया था और एनसीबी के साथ उस समय तक रखा गया जब तक उसे 6 सितंबर, 2020 को एस्प्लेनेड में हॉली डे रिमांड कोर्ट में पेश किया गया और उसे 9 सितंबर तक एनसीबी हिरासत में भेज दिया गया। याचिका में कहा गया है कि उसे उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने और उसकी गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर याचिकाकर्ता को पेश नहीं करके संविधान के अनुच्छेद 22 का उल्लंघन किया गया है तथा गिरफ़्तारी के 36 बाद घंटे से अधिक समय के बाद मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया।

    अधिवक्ता राजेन्द्र राठौड़ और आमिर कोराडिया के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है,

    "यह नोट करना उचित है कि याचिकाकर्ता की निशानदेही पर किसी भी वर्जित सामग्री की कोई रिकवरी नहीं दिखाई गई है। यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता और वर्जित सामग्री की वाणिज्यिक मात्रा के बीच बिल्कुल कोई संंबंंध नहीं है। इन परिस्थितियों में याचिकाकर्ता भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और 22 के तहत इस माननीय न्यायालय का रुख करता है, जिसमें डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य [(1997) 1 एससीसी 416] के मामले में शीर्ष न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों का पालन न करने के लिए प्रथम प्रतिवादी के खिलाफ कार्रवाई करने और अवैध रूप से हिरासत में लिए गए याचिकाकर्ता को तत्काल रिहा करने और जमानती अपराध के लिए हिरासत में रखे गए याचिकाकर्ता को तत्काल रिहा करने के लिए प्रार्थना की गई है।"

    याचिकाकर्ता को बॉम्बे हाईकोर्ट ने अभिनेता रिया चक्रवर्ती और सुशांत सिंह के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा जैसे मामले में आरोपी अन्य लोगों के साथ 7 अक्टूबर, 2020 के एक आदेश में जमानत दे दी थी।

    एनसीबी के मामले के अनुसार, याचिकाकर्ता को 4 सितंबर को उक्त मामले के एक अन्य आरोपी कैजान इब्राहीम द्वारा दिए गए बयान पर भरोसा करते हुए गिरफ्तार किया गया था, जिसे उसके कब्जे में निषिद्ध के साथ गिरफ्तार किया गया था । हालांकि इब्राहीम को 5 सितंबर को अदालत में पेश किया गया था और उसी दिन उसे जमानत दे दी गई थी जबकि याचिकाकर्ता अभी एनसीबी के कार्यालय में था। इब्राहीम ने एनसीबी के समक्ष कहा था कि वह आरोपी शोनिक चक्रवर्ती के निर्देश पर याचिकाकर्ता को निषिद्ध ड्रग्स पहुंचा रहा है, जो अभी भी जेल में है ।

    याचिकाकर्ता का तर्क है कि उसने सीआरपीसी 57 और धारा 167 के उल्लंघन और अवैध हिरासत के खिलाफ एक आवेदन दायर किया और हॉलिडे रिमांड कोर्ट ने देखा कि गिरफ्तारी ज्ञापन के अनुसार अलग-अलग तथ्य परिलक्षित हैं। इसके अलावा एनसीबी के अधिकारियों ने स्वीकार किया कि दीपेश 4 सितंबर, 2020 से हिरासत में था, लेकिन 5 सितंबर, 2020 को सह-अभियुक्त कैजान अब्राहिम के साथ पेश नहीं किया गया था, क्योंकि वे अभी भी जांच कर रहे थे और लगभग 8 बजे उसे गिरफ्तार कर लिया गया था।

    एनसीबी ने दावा किया कि उन्होंने 5 सितंबर, 2020 को रात आठ बजे आवेदक को गिरफ्तार किया लेकिन उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार उसकी गिरफ्तारी के बारे में तत्काल सूचित नहीं किया लेकिन केवल आवेदक को 6 सितंबर को सुबह 11:40 बजे अपने सेल पर अपने भाई को बुलाने की अनुमति दी, याचिका में डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का जिक्र किया गया है।

    याचिकाकर्ता ने कहा,

    एनडीपीएस अधिनियम, 1985 के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप तय करने के लिए सबूतों का कोई कोटा नहीं है। याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए सभी अपराध जमानती हैं और अधिकारी याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने के लिए बाध्य हैंंऔर इसलिए याचिकाकर्ता अवैध हिरासत में है और जमानत पर रिहा होने का हकदार है।

    इस तरह याचिकाकर्ता ने डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा जारी निर्देशों का पालन न करने पर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है।

    यही नहीं, याचिका में अवैध हिरासत के मामले की जांच कराने और दोषी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने के निर्देश देने की प्रार्थना की गई है।

    अंत में याचिका में भारत संघ को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह याचिकाकर्ता को अवैध हिरासत में रखने और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के घोर उल्लंघन के लिए डीके बसु (सुप्रा) के मामले में निर्देश के अनुसार 10,00,000 रुपये का मुआवजा दिया जाए।

    याचिका डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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