सामूहिक धर्मांतरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुआट्स के कुलपति और निदेशक की गिरफ्तारी पर रोक लगाई

Avanish Pathak

3 March 2023 11:13 AM GMT

  • सामूहिक धर्मांतरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुआट्स के कुलपति और निदेशक की गिरफ्तारी पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक धर्मांतरण मामले में इलाहाबाद स्थित संस्‍थान शुआट्स के कुलपति (डॉ.) राजेंद्र बिहारी लाल और निदेशक विनोद बिहारी लालं की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।

    सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष सीन‌ियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने मामले का उल्लेख किया और उसी दिन इसे स्वीकार कर लिया गया।

    पीठ ने आगे के आदेशों को लंबित रखते हुए याचिकाकर्ताओं की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए उत्तर प्रदेश राज्य को भी नोटिस जारी किया। सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने आज सुबह सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की।

    उन्होंने कहा, "यह इलाहाबाद के एक प्रमुख विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। उन्हें धर्म परिवर्तन कानूनों के तहत प्रताड़ित किया जा रहा है।"

    सीजेआई बोर्ड के अंत में मामले की सुनवाई के लिए राजी हुए। एक बार मामला उठाए जाने के बाद दवे ने प्रस्तुत किया-

    "मेरा पहला मुवक्किल कुलपति है और दूसरा निदेशक है। फतेहपुर में कुछ एफआईआर दर्ज की गई है कि कुछ धर्म परिवर्तन हो रहा है। मैं इलाहाबाद में हूं। एफआईआर में मेरा नाम भी नहीं है। आठ महीने बाद मुझसे शामिल होने के लिए कहा गया है। वे आते हैं और मेरे विश्वविद्यालय पर छापा मारते हैं, वे गैर-जमानती वारंट जारी करते हैं। मैंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और हाईकोर्ट ने मेरी अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी।

    जब सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या उनके खिलाफ कोई आरोप है, तो दवे ने दोहराया कि याचिकाकर्ताओं का नाम एफआईआर में भी नहीं था।

    उन्होंने कहा-

    "यह धारा 164 के तहत दो बयानों पर आधारित है- पहला बयान एक असंतुष्ट कर्मचारी ने दिया है और दूसरा एक छात्र ने दिया है, जिसे दूसरे छात्र का यौन उत्पीड़न करने के लिए निष्कासित कर दिया गया था। ये आरोप हैं।"

    पीठ ने मामले में यूपी राज्य को नोटिस जारी किया और कहा-

    "अगले आदेश लंबित होने तक, याचिकाकर्ताओं की गिरफ्तारी पर रोक रहेगी।"

    इससे पहले, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले में दो याचिकाकर्ताओं को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। यह देखते हुए कि वे प्रभावशाली व्यक्ति थे और धर्मार्थ कार्यों के पीछे उनकी मंशा संदिग्ध प्रतीत होती है, जिससे समाज के हाशिए के लोगों के हित प्रभावित होते हैं।

    जस्टिस मंजू रानी चौहान की पीठ ने कहा था कि वे अग्र‌िम जमानत पर रिहाई के मामले में अन्य व्यक्तियों के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते हैं।

    इस मामले में एफआईआर पिछले साल अप्रैल में हिमांशु दीक्षित नामक एक कार्यकर्ता की शिकायत पर दर्ज की थी। शिकायत में उसने आरोप लगाया था कि हिंदू धर्म के लगभग 90 व्यक्तियों को इवेंजेलिकल चर्च ऑफ इंडिया, हरिहरगंज, फतेहपुर में धर्मांतरण के उद्देश्य से इकट्ठा किया गया है।

    इसकी सूचना मिलने पर सरकारी अधिकारी मौके पर पहुंचे और पादरी विजय मसीहा से पूछताछ की, जिन्होंने कथित तौर पर खुलासा किया कि धर्मांतरण की प्रक्रिया पिछले 34 दिनों से चल रही थी और यह प्रक्रिया 40 दिनों के भीतर पूरी की जाएगी. वर्तमान आवेदक का नाम एफ‌आईआर में नहीं था, हालांकि, उसे बाद के चरण में दो इच्छुक गवाहों और मामले के जांच अधिकारी द्वारा दिए गए बयानों के आधार पर शामिल किया गया।

    उन्होंने कथित तौर पर यह भी बताया कि वे मिशन अस्पताल में भर्ती मरीजों का भी धर्मांतरण करने की कोशिश कर रहे हैं और कर्मचारी इसमें सक्रिय भूमिका निभाते हैं। जिसके बाद सरकारी अधिकारियों ने 35 व्यक्तियों और 20 अज्ञात व्यक्तियों को हिंदू समुदाय के 90 व्यक्तियों के ईसाई धर्म में धर्मांतरण में शामिल पाया।

    Next Story