सुप्रीम कोर्ट ने पुरी जगन्नाथ मंदिर परिसर में ओडिशा सरकार द्वारा निर्माण गतिविधियों के खिलाफ याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रखा
Avanish Pathak
2 Jun 2022 2:18 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पुरी स्थित प्रतिष्ठित श्री जगन्नाथ मंदिर परिसर में ओडिशा सरकार द्वारा किए जा रहे कथित अवैध उत्खनन और निर्माण कार्य के खिलाफ दायर याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रख लिया।
कोर्ट कल आदेश सुनाएगा।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस हिमा कोहली की अवकाश पीठ ने उड़ीसा हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर दो विशेष अनुमति याचिकाओं पर विचार कर रही थी, जिसमें राज्य को पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर और उसके आसपास किसी भी तरह की खुदाई करने से रोक दिया गया था।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
एक याचिका में पेश हुईं सीनियर एडवोकेट महालक्ष्मी पावानी ने कहा कि राज्य सरकार को संरक्षित स्थल में किसी भी कार्य को करने के लिए प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 के अनुसार सक्षम प्राधिकरण से अनिवार्य रूप से एक एनओसी प्राप्त करना चाहिए।
राज्य ने निर्माण कार्यों के लिए राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण से एनओसी ली थी। हालांकि, अधिनियम के तहत एनओसी प्रदान करने के लिए सक्षम प्राधिकारी पुरातत्व निदेशक या आयुक्त हैं।
सीनियर एडवोकेट ने निरीक्षण रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि विरासत स्थल को "अपूरणीय क्षति" हुई है।
दूसरे याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट विनय नवारे ने कहा, "जो हो रहा है वह उत्खनन है। ये सदियों पुराने स्मारक हैं। साथ ही, आप इसे बाहर के किसी को नहीं दे सकते। पुरातत्व विभाग के एक अधिकारी की रिपोर्ट में कहा गया है कि निर्माण निषिद्ध क्षेत्र के भीतर है।"
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, राज्य सरकार मंदिर के अभिन्न अंग मेघनाद पचेरी के पश्चिमी हिस्से से लगी जमीन पर 30 फीट से अधिक गहराई तक भारी एक्सकेवेटर्स से खुदाई करके कुछ निर्माण करने की कोशिश कर रही है। आरोप लगाया गया है कि मंदिर और इसकी दीवार में दरारें पाई गई हैं।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि ओडिशा सरकार अनधिकृत निर्माण कार्य कर रही है जो महाप्रभु श्री जगन्नाथ के प्राचीन मंदिर की संरचना के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
उन्होंने प्रस्तुत किया कि श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी, को राजपत्र अधिसूचना 3 फरवरी 1975 के माध्यम से AMASR एक्ट, 1958 का स्मारक घोषित किया गया है और AMASR एक्ट की धारा 19 (1) के तहत, मालिक-कब्जाधरी सहित कोई भी व्यक्ति संरक्षित क्षेत्र में किसी भी भवन का निर्माण नहीं कर सकता है। यह तर्क दिया गया है कि AMASR एक्ट की धारा 20A इस तथ्य के बारे में स्पष्ट है कि निषिद्ध क्षेत्र के 100 मीटर की दूरी के भीतर कोई निर्माण नहीं हो सकता है।
राज्य सरकार की दलीलें
ओडिशा सरकार की ओर से पेश एडवोकेट जनरल अशोक कुमार पारिजा ने प्रस्तुत किया कि AMASR एक्ट के तहत प्राधिकरण राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण है, और ओडिशा के निदेशक संस्कृति को सक्षम प्राधिकारी के रूप में अधिसूचित किया गया है। एडवोकेट जनरल ने कहा कि राज्य द्वारा की गई गतिविधियां अधिनियम के अनुसार "निर्माण" के दायरे में नहीं आती हैं।
अधिनियम की धारा 2 (डीसी) का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि मौजूदा संरचना या भवन का कोई भी पुनर्निर्माण, मरम्मत और नवीनीकरण, या, नालियों और जल निकासी कार्यों और सार्वजनिक शौचालयों, मूत्रालयों और इसी तरह के निर्माण, रखरखाव और सफाई, जल आपूर्ति कार्यों का निर्माण और रखरखाव "निर्माण" के दायरे में नहीं आता है।
उन्होंने कहा कि राज्य तीर्थयात्रियों को सुविधाएं प्रदान करने के लिए ऐसे कार्य कर रहा है और इसके लिए एनएमए से अनुमति है।
प्रतिवादी की ओर से सीनियर एडवोकेट पिनाकी मिश्रा ने प्रस्तुत किया कि वार्षिक रथ यात्रा के दरमियान, लगभग 15-20 लाख लोग वहां आते हैं, और अतीत में भगदड़ की घटनाएं हुई हैं। इसलिए, क्षेत्र को खाली करने और तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाओं को बढ़ाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, "पूरे सेवायक संघ ने राज्य सरकार के उपक्रम का समर्थन किया है ताकि पुरी एक विश्व धरोहर शहर बन सके।"
केस टाइटल: अर्धेंदु कुमार दास बनाम ओडिशा राज्य और अन्य, सुमंत कुमार घदेई बनाम उड़ीसा राज्य और अन्य