सुप्रीम कोर्ट के जज ने दिल्ली हाईकोर्ट से लाइव स्ट्रीमिंग शुरू करने का आग्रह किया, कहा- न्याय सर्वत्र सुलभ होना चाहिए
Shahadat
4 Sept 2025 9:36 PM IST

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस विक्रम नाथ ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट के जजों से अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू करने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा,
"दिल्ली हाईकोर्ट अभी तक ऑनलाइन नहीं हुआ। दिल्ली में लाइव स्ट्रीमिंग की सुविधा नहीं है... दिल्ली हाईकोर्ट को [लाइव] होना ही चाहिए। यह देश का प्रमुख संस्थान है। दिल्ली हाईकोर्ट को होना ही चाहिए, यही मेरा अनुरोध है।"
जस्टिस नाथ ने दिल्ली हाईकोर्ट मोबाइल ऐप, न्यायिक अधिकारियों के लिए ई-एचआरएमएस पोर्टल, ई-ऑफिस पायलट प्रोजेक्ट और एमसीडी अपीलीय न्यायाधिकरण/जेजेबी को ई-कोर्ट में शामिल करने और न्यायिक रिकॉर्ड के डिजिटल संरक्षण का उद्घाटन किया।
अपने उद्घाटन भाषण में जस्टिस नाथ ने कहा कि इस प्रकार शुरू की गई पहल न्यायपालिका के सार्वजनिक जाँच और जवाबदेही के प्रति खुलेपन की पुष्टि करती है।
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका द्वारा डिजिटलीकरण की दिशा में उठाया गया हर नया कदम, अधिक पारदर्शिता की दिशा में भी एक कदम है, जहाँ जानकारी केवल फाइलों और अदालतों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि नागरिकों के हाथों में पहुंचती है।
उन्होंने कहा,
"पारदर्शिता विश्वास का निर्माण करती है। विश्वास ही वह आधार है, जिस पर न्याय टिका है। इसके बिना कानून दूर रहता है। इसके साथ कानून लोगों के लिए एक जीवंत वास्तविकता बन जाता है।"
जज ने कहा कि दशकों से वादियों और वकीलों को देरी, बार-बार चक्कर लगाने और अपने मामलों की स्थिति न जानने की अनिश्चितता का सामना करना पड़ता रहा है। अब रीयल-टाइम अपडेट, डिजिटल डैशबोर्ड और सुव्यवस्थित कार्यप्रवाह के साथ, वादियों को अपनी उंगलियों पर जानकारी और उपकरण उपलब्ध हैं।
जस्टिस नाथ ने कहा,
"इससे प्रतीक्षा का बोझ कम होता है, प्रक्रियागत बाधाएं कम होती हैं। ध्यान विवादों के समाधान पर केंद्रित होता है। इन पहलों की समावेशी प्रकृति को स्वीकार करना ज़रूरी है, जिसे हमें न्यायाधिकरणों और किशोर न्याय बोर्डों तक डिजिटल सेवाएं प्रदान करके निरंतर विकसित करना होगा। हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि न्याय प्रणाली का कोई भी हिस्सा पीछे न छूटे।"
उन्होंने आगे कहा,
"न्याय किसी एक वर्ग की अदालतों या किसी एक वर्ग के वादियों का विशेषाधिकार नहीं है, यह सभी के लिए एक समान, सुलभ और सुसंगत होना चाहिए, चाहे वह हाईकोर्ट में वादी हो, बोर्ड के समक्ष किशोर हो या नगरपालिका न्यायाधिकरण के समक्ष नागरिक हो, सुलभता और दक्षता का यही वादा पूरा होना चाहिए।"
इसके अलावा, जज ने कहा कि समावेशिता यह सुनिश्चित करती है कि तकनीक एक सेतु बने, न कि एक बाधा।
जस्टिस नाथ ने टिप्पणी की कि विचाराधीन परियोजनाएं ठोस डिजिटल आधार प्रदान करती हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि न्यायपालिका का आधुनिकीकरण जारी रह सके और भविष्य की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके।
इस बात पर ज़ोर देते हुए कि तकनीक जजों का मार्गदर्शन करने वाले मानवीय विवेक का स्थान नहीं ले सकती, जस्टिस नाथ ने कहा कि तकनीक जजों की न्याय शीघ्रता और प्रभावी ढंग से करने की क्षमता को बढ़ा सकती है और बढ़ाएगी भी।
उन्होंने आगे कहा,
“अब दिल्ली हाईकोर्ट यह सुनिश्चित कर रहा है कि हमारे संस्थान भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं। इन सबसे बढ़कर ये पहल देश भर की अदालतों के लिए मिसाल कायम करती हैं। ये दर्शाती हैं कि तकनीक न्याय के मानवीय पहलू को कम नहीं करती, बल्कि उसे मज़बूत कर सकती है। यह न्याय को अधिक सुलभ, अधिक पारदर्शी और अधिक कुशल बनाती है। यह संस्था को नागरिकों के करीब लाती है। ऐसा करके यह हमें याद दिलाती है कि हर सुधार, हर डिजिटल पेज और हर नए ऐप का अंतिम उद्देश्य लोगों की सेवा करना है।”
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने अपने विशेष संबोधन में घोषणा की कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के लॉ रिसर्चर्स का पारिश्रमिक 65,000 रुपये से बढ़ाकर 80,000 रुपये प्रति माह करने को मंज़ूरी दी।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार राष्ट्रीय राजधानी की सभी अदालतों में मुफ़्त वाई-फ़ाई उपलब्ध कराएगी ताकि खराब नेटवर्क के कारण जजों, वकीलों और पक्षकारों को कोई असुविधा न हो।
मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली सरकार कूड़े के पहाड़ों की निरंतर और निगरानी वाली सफाई और यमुना नदी की सफाई सहित नागरिक मुद्दों पर पूरी ज़िम्मेदारी से काम कर रही है।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने दिल्ली के सभी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की मरम्मत और नवीनीकरण करके उन्हें चालू हालत में पहुंचाया है।
दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने भी मुख्य भाषण दिया। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने स्वागत भाषण दिया, जबकि जस्टिस संजीव नरूला ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

