केवल छात्र रियायती दरों का लाभ उठाने के लिए बस में चढ़ते समय स्टूडेंट के साथ अन्य यात्रियों से भेदभाव नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट
Shahadat
8 Aug 2023 1:20 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह राज्य पुलिस प्रमुख को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करने का निर्देश दिया कि छात्र रियायत दरों के संबंध में स्टूडेंट और बस मालिकों/कर्मचारियों के बीच कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा न हो।
न्यायालय ने माना कि केवल छात्र रियायती दरों का लाभ उठाने के लिए बस में चढ़ते समय स्टूडेंट के साथ अन्य यात्रियों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
जस्टिस पी.वी.कुन्हिकृष्णन ने इस प्रकार कहा,
“लेकिन जब तक छात्र रियायतें लागू हैं, बस के मालिक और कर्मचारी बसों में चढ़ते समय स्टूडेंट के खिलाफ भेदभावपूर्ण रुख नहीं अपना सकते, केवल इसलिए कि वे रियायत दर का भुगतान कर रहे हैं। स्टूडेंट और अन्य यात्री समान स्तर पर हैं। यह देखना पुलिस का कर्तव्य है कि इसके संबंध में कोई कानून-व्यवस्था की समस्या न हो। राज्य पुलिस प्रमुख स्टूडेंट और बसों के कर्मचारियों के बीच इस दरार के कारण कानून और व्यवस्था की ऐसी सभी समस्याओं को रोकने के लिए अपने सभी अधीनस्थों को आवश्यक निर्देश जारी करेंगे।
अदालत 30 नवंबर, 2012 की शाम को स्टूडेंट को बसों में चढ़ने से गलत तरीके से रोकने के आरोपी तीन बस कंडक्टरों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उन पर एमवी एक्ट की धारा 190 (2) सपठित धारा 196 के तहत आरोप लगाए गए।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि भले ही सभी आरोपों को स्वीकार कर लिया गया हो, एमवी एक्ट की धारा 196 के सपठित धारा 190 (2) के तहत अपराध नहीं बनता।
सहमति जताते हुए कोर्ट ने कहा कि कंडक्टरों के खिलाफ यह आरोप कि उन्होंने स्टूडेंट को बस में चढ़ने नहीं दिया, इसको सड़क सुरक्षा, शोर और वायु-प्रदूषण पर नियंत्रण के संबंध में निर्धारित मानकों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। इसमें यह भी कहा गया कि एमवी एक्ट की धारा 196 बिना बीमा के वाहन चलाने से संबंधित है और कंडक्टरों के खिलाफ ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया गया। इस प्रकार यह माना गया कि एक्ट की धारा 190(2) और 196 कंडक्टरों के विरुद्ध लागू नहीं होतीं।
कोर्ट ने तब कहा कि नियम 89 (पी) और (क्यू) कंडक्टरों को अतिरिक्त यात्रियों के प्रवेश से इनकार करने के लिए कुछ विवेकाधिकार प्रदान करता है, यदि वाहन यात्रियों को ले जाने की अनुमेय क्षमता तक पहुंच गया है या किसी अन्य अच्छे और पर्याप्त कारण से। हालांकि, अभियोजन पक्ष ने कंडक्टरों के खिलाफ ऐसा कोई मामला नहीं उठाया।
तदनुसार, आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी गई।
हालांकि, कोर्ट ने पाया कि निजी और सार्वजनिक बस सेवाओं के कर्मचारियों के बीच स्टूडेंट को बसों में चढ़ने से रोकने की परेशान करने वाली प्रवृत्ति है।
कोर्ट ने कहा,
"केरल के लगभग सभी बस अड्डों और बस स्टॉपों पर बसों के कर्मचारी स्टूडेंट को बस में चढ़ने की अनुमति नहीं देते और स्टूडेंट के बजाय अन्य यात्रियों को प्राथमिकता देते हैं।"
कोर्ट ने टिप्पणी की कि बस मालिकों को स्टूडेंट से कम राशि वसूलने को लेकर शिकायत है और वर्षों से ऐसी रियायती दरें नहीं बढ़ाई गई। इसमें कहा गया कि स्टूडेंट रियायत दरें बढ़ाना नीतिगत मामला है और बस मालिकों को इसे सरकार और परिवहन विभाग के साथ उठाना होगा।
न्यायालय ने इस प्रकार कहा,
“पिछले कुछ वर्षों में 50 पैसे और 1 रुपये का मूल्य बहुत बदल गया। लेकिन स्टूडेंट रियायत बढ़ाई जाएगी या नहीं यह सरकार का नीतिगत मामला है, जिसके संबंध में यह अदालत कोई निर्देश जारी नहीं कर सकती है। लेकिन स्टूडेंट संगठनों और सरकार को बदली हुई वास्तविकताओं पर गौर करना चाहिए। बस मालिकों को यह मांग सरकार और परिवहन विभाग के समक्ष उठानी होगी।
न्यायालय ने माना कि जब तक स्टूडेंट रियायत दरें लागू हैं, बस मालिक/कर्मचारी स्टूडेंट को रियायत दरें देने में भेदभाव नहीं कर सकते। इसके बाद कोर्ट ने पुलिस को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि स्टूडेंट रियायत दरों के कारण मालिकों/कर्मचारियों और छात्रों के बीच दरार के कारण ऐसी कोई कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा न हो।
केस टाइटल: जोसेफ जॉन बनाम केरल राज्य और संबंधित मामले
याचिकाकर्ताओं के वकील: अनिल शिवरामन और श्रीधर रवींद्रन, प्रतिवादियों के वकील: लोक अभियोजक माया एम एन
ऑर्डर पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें