फीस का भुगतान न करने पर ऑनलाइन क्लास से वंचित की गई छात्रा ने 85% अंक हासिल किए, डॉक्यूमेंट्स के लिए स्कूल के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया
LiveLaw News Network
13 Sept 2021 11:32 AM IST
सेल्फ-स्टडी के जरिए 85 फीसदी अंक हासिल करने वाली महाराष्ट्र की 10वीं कक्षा की एक छात्रा ने अपने स्कूल के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
छात्रा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि उसके सीबीएसई स्कूल ने फीस का भुगतान न करने पर उसकी मार्कशीट और स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र जारी करने से इनकार कर दिया।
स्कूल ने पिछले साल अगस्त में फीस न जमा करने पर छात्रा को ऑनलाइन क्लास में शामिल होने से रोक दिया था।
छात्रा के पिता शादियों में बांसुरी वादक का काम करते हैं। पिछले साल महामारी के चलते लगे लॉकडाउन के कारण उनकी आय के साधन पूरी तरह से बंद हो गए थे, इसलिए वह स्कूल की फीस का भुगतान करने का प्रबंधन नहीं कर सके।
डॉक्यूमेंट्स को जारी करने के लिए निर्देश दिए जाने की मांग करते हुए याचिकाकर्ता के वकील गौरी वेंकटरमन ने प्रस्तुत किया कि छात्रा मेरिट के आधार पर अपनी कक्षा 11 की अस्थायी प्रवेश सीट खो सकती है।
जस्टिस सुनील शुक्रे और जस्टिस अनिल किलोर ने सीबीएसई बोर्ड और सेंट जेवियर्स स्कूल, नागपुर सहित प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया।
पीठ ने यह नोटिस इस आश्वासन के बाद जारी किया कि अगर याचिकाकर्ता के पिता को समय दिया गया तो वह स्कूल के शेष शुल्क का भुगतान करने का प्रयास करेंगे।
एक सोसायटी और ट्रस्ट के नाम से पहचान रखने वाला रेयान इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट उक्त स्कूल चलाता है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि स्कूल के प्रबंधन की कार्रवाई मनमानी, तर्कहीन और मौलिक अधिकार का घोर उल्लंघन है।
याचिका में कहा गया,
"शिक्षा का अधिकार हर बच्चे का मौलिक अधिकार है। एक छात्रा होने के नाते उसे प्रतिवादी प्रबंधन और संबंधित अधिकारियों द्वारा उसे उसकी शिक्षा से वंचित किया जा रहा है।"
लॉकडाउन से पैदा हुई कठिनाइयां
छात्रा ने अपनी याचिका में कहा कि वह समाज के एक कमजोर और पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखती हैं। वह शुरू से उसी स्कूल में पढ़ती रही है। वह कक्षा 10 में थी और नियमित रूप से फीस भी जमा कर रही थी। हालांकि, लॉकडाउन के दौरान उसकी स्थिति विकट हो गई।
याचिका में कहा गया,
"याचिकाकर्ता के पिता का वित्तीय संकट वर्ष 2021 तक भी चल रही महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन से और गहरा गया। इसने उनकी कमाई को बुरी तरह प्रभावित किया, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान विवाह और सार्वजनिक समारोहों पर पूर्ण प्रतिबंध था। एक कलाकार के रूप में प्रदर्शन करने के उनके सभी अवसर खो गए। याचिकाकर्ता के पिता को लॉकडाउन के कारण लगे प्रतिबंधों और परिस्थितियों के कारण कहीं भी काम नहीं मिल पाया।"
उसने कहा कि उसके पिता को अस्थायी रूप से एक सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया गया ताकि वह अपने रिश्तेदारों से मिल सके और उधार ले सके।
उसकी फीस का भुगतान करने के लिए पैसे नहीं होने के कारण स्कूल ने 20 अगस्त से छात्रा को ऑनलाइन क्लास में शामिल होने से रोक दिया।
याचिका में आगे कहा गया कि फिर भी याचिकाकर्ता ने बोर्ड परीक्षा में 85% अंक प्राप्त किए और ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से प्रवेश प्राप्त किया।
परिणाम घोषित होने के बाद पिता ने छात्रा की मूल मार्कशीट, चरित्र प्रमाण पत्र और स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र जारी करने के लिए स्कूल का दरवाजा खटखटाया, लेकिन स्कूल ने ये प्रमाण पत्र यह कहते हुए देने से इनकार कर दिया कि याचिकाकर्ता 10 वीं कक्षा की फीस जमा करने में विफल रही है।
सात सितंबर को प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए पीठ ने कहा,
"इस याचिका में शामिल मुद्दा याचिकाकर्ता नंबर चार और पाँच द्वारा मूल अंक पत्र और स्थानांतरण प्रमाण पत्र जारी नहीं करने के बारे में है, जिसने 10वीं कक्षा की परीक्षा में 85% अंक प्राप्त किए हैं। उसे एक अच्छे स्कूल में सामान्य प्रवेश प्रक्रिया के माध्यम से अस्थायी रूप से भर्ती कराया गया है। याचिकाकर्ता के वकील द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि यदि याचिकाकर्ता के पिता को कुछ और समय दिया जाता है, तो वह स्कूल की फीस का भुगतान करेंगे।"
अब एक हफ्ते बाद मामले की सुनवाई होगी।
केस का शीर्षक: माइनरव बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।