विश्वविद्यालयों द्वारा कॉलेजों पर लगाई गई लेट फी की वसूली छात्रों से करने की फ्रॉड प्रैक्टिस को रोकें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया

LiveLaw News Network

20 Oct 2021 3:27 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि कालेजों द्वारा उन विश्वविद्यालयों द्वारा लगाई गई पेनल्टी, लेट फी आदि की छात्रों से वसूली के लिए अपनाए जाने वाले कपटपूर्ण तरीकों को रोकने के लिए कदम उठाए।

    जस्टिस विवेक चौधरी की खंडपीठ ने कॉलेजों द्वारा अपने छात्रों से लेट फी और पेनल्टी की वसूली के लिए किए जा रहे फ्रॉड की ओर इशारा किया, भले यह विश्वविद्यालय द्वारा कॉलेजों पर लगाया गया हो, न कि छात्रों पर।

    कोर्ट के समक्ष मामला

    न्यायालय लखनऊ विश्वविद्यालय से संबद्ध तीन कॉलेजों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें विश्वविद्यालय के निर्णय/आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसमें उन्हें परीक्षा शुल्क जमा करने के लिए प्रति छात्र 500 रुपये का विलंब शुल्क जमा करने का निर्देश दिया गया था।

    याचिकाकर्ता कॉलेज को अंतरिम राहत देते हुए कोर्ट ने पहले 250 रुपये लेट फीस के भुगतान का आदेश दिया था, हालांकि बाद में यूनिवर्सिटी ने खुद अपने पहले के आदेश में संशोधन कर लेट फीस को घटाकर 250 रुपए कर दिया।

    इसलिए, यह देखते हुए कि कॉलेजों ने पहले ही अनुपालन किया है और आवश्यक विलंब शुल्क जमा कर दिया है, विश्वविद्यालय के संशोधित आदेश के अनुसार, न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को बिना किसी आदेश के याचिकाओं का निपटारा कर दिया।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    हालांकि, कोर्ट ने यह नोट किया कि ज्यादातर मामलों में जब विश्वविद्यालय गलती करने वाले कॉलेजों से लेट फी लेते हैं, तब किसी विशिष्ट प्रावधान के अभाव में कॉलेज उक्त लेट फी को छात्रों से वसूलते हैं, जबकि यह शुल्क छात्रों की गलती के ‌लिए नहीं है।

    कोर्ट ने आगे इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि विश्वविद्यालयों ने अभी तक कोई विशेष प्रावधान नहीं बनाया है, जिसमें कि यह शर्त को हो कि ऐसे मामलों में केवल कॉलेजों पर लेट फीस और जुर्माना लगाया जाएगा, जिसे उन्हें अपने छात्रों से वसूलने से रोक दिया जाएगा। न्यायालय ने कहा कि विश्वविद्यालयों को किसी भी शैक्षणिक सत्र की शुरुआत से पहले इस तरह के प्रावधान बनाने चाहिए।

    कोर्ट ने कहा, "जब तक विश्वविद्यालय इसे स्पष्ट नहीं करते हैं, तब तक कॉलेजों द्वारा अपनाई जा रही इस धोखाधड़ी की प्रथा को रोकना बहुत मुश्किल है। उम्मीद है कि विश्वविद्यालय और राज्य सरकार इस मामले को तेजी से देखेंगे।"

    अंत में, कोर्ट ने निर्देश दिया कि आदेश की एक प्रति प्रमुख सचिव, उच्च शिक्षा विभाग, यूपी सिविल सचिवालय, लखनऊ सरकार को भेजी जाए।

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