शहरी स्‍थानीय निकाय चुनावः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ओबीसी कोटा के बिना अधिसूचना जारी करने निर्देश दिया, महिला कोटा भी शामिल करने का निर्देश

Avanish Pathak

27 Dec 2022 10:12 AM GMT

  • शहरी स्‍थानीय निकाय चुनावः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ओबीसी कोटा के बिना अधिसूचना जारी करने निर्देश दिया, महिला कोटा भी शामिल करने का निर्देश

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया है कि वह बिना ओबीसी आरक्षण के शहरी स्थानीय निकाय चुनावों की अधिसूचना तत्काल जारी करे।

    अदालत ने कहा है कि राज्य सरकार सु्प्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित ट्रिपल टेस्ट औपचारिकता को पूरा नहीं करती।

    जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस सौरभ लवानिया की पीठ ने यह भी आदेश दिया कि चुनाव अधिसूचना में संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार महिलाओं के लिए आरक्षण शामिल होगा।

    कोर्ट ने निर्देश दिया,

    "अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर, अध्यक्षों की सीटों को सामान्य/ खुली श्रेणी के रूप में अधिसूचित किया जाएगा। अधिसूचना में महिलाओं के लिए आरक्षण शामिल होगा।"

    महत्वपूर्ण रूप से कोर्ट ने राज्य को यह भी निर्देश दिया कि पिछड़े वर्ग में ट्रांसजेंडरों को शामिल करने के दावे पर भी विचार किया जाए।

    पीठ ने उक्त फैसले के साथ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 5 दिसंबर को जारी मसौदा अधिसूचना को रद्द कर दिया, जिसमें 'ट्रिपल टेस्ट' पूरा नहीं करने के बावजूद अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए राज्य में 4 मेयर सीटें आरक्षित करने के बाद शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने का इरादा जाहिर किया गया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने विकास किशनराव गवली बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य एलएल 2021 एससी 13, के मामले में 'ट्रिपल टेस्ट' की औपचारिकताओं को निर्धारित किया है।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यूपी सरकार ने स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और प्रभावों की समकालीन कठोर अनुभवजन्य जांच करने के लिए किसी समर्पित आयोग का गठन नहीं किया, जैसा कि ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकताओं के तहत निर्धारित किया गया है, और इस प्रकार के डेटा की उपलब्धता के बिना, ओबीसी के लिए कोटा प्रदान करना मान्य नहीं था।

    कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि राज्य को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जिसमें सरकारों को स्थानीय स्व-सरकारी निकायों में आरक्षण के संबंध में विधायी नीतियों सहित अपनी नीतियों पर फिर से विचार करने के लिए बाध्य किया गया है।

    अदालत ने अपने आदेश में निम्नलिखित निर्देश जारी किए

    (क) धारा 9-ए(5)(3) के तहत उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शहरी विकास विभाग में जारी पांच दिसंबर 2022 की अधिसूचना को निरस्त किया जाता है।

    (ख) राज्य सरकार द्वारा 12.12.2022 को जारी शासनादेश, जिसमें उत्तर प्रदेश पालिका केन्द्रीकृत सेवा (लेखा संवर्ग) के कार्यपालक अधिकारियों एवं वरिष्ठतम अधिकारी के संयुक्त हस्ताक्षर से नगर पालिकाओं के बैंक खातों के संचालन का प्रावधान है, रद्द किया जाता है।

    (ग) यह भी निर्देश दिया जाता है कि जब तक राज्य सरकार द्वारा के कृष्ण मूर्ति (सुप्रा) और विकास किशनराव गवली (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य ट्रिपल टेस्ट/शर्तें हर तरह से पूरी नहीं हो जाती, तब तक पिछड़े वर्ग के लिए कोई आरक्षण प्रदान नहीं किया जाएगा।

    (घ) यदि नगरपालिका निकाय का कार्यकाल समाप्त हो जाता है, निर्वाचित निकाय के गठन तक ऐसे नगरपालिका निकाय के मामलों का संचालन संबंधित जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति द्वारा किया जाएगा, जिसके कार्यकारी अधिकारी /मुख्य कार्यकारी अधिकारी/नगर आयुक्त सदस्य होंगे। तीसरा सदस्य जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामित जिला स्तरीय अधिकारी होगा। हालांकि, उक्त समिति केवल संबंधित नगर निकाय के दिन-प्रतिदिन के कार्यों का निर्वहन करेगी और कोई बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं लेगी।

    केस टाइटलः वैभव पांडेय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, प्रधान सचिव, शहरी विभाग के माध्यम से, साथ में जुड़े मामलों

    केस साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (एबी) 541

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