'राज्य ने विशेषज्ञों के COVID-19 की दूसरी लहर को लेकर दी गई चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया': उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की खिंचाई की

LiveLaw News Network

11 May 2021 8:51 AM GMT

  • राज्य ने विशेषज्ञों के COVID-19 की दूसरी लहर को लेकर दी गई चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की खिंचाई की

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को COVID-19 महामारी की दूसरी लहर से निपटने के लिए की गई तैयारियों में कमी को लेकर राज्य सरकार की खिंचाई की।

    मुख्य न्यायाधीश राघवेन्द्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की पीठ ने कहा कि,

    "जनवरी 2021 में वैज्ञानिकों ने COVID-19 महामारी की दूसरी लहर को लेकर चेतावनी दिया था, फिर भी राज्य सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।"

    पीठ ने आगे कहा कि,

    "हालांकि पिछले डेढ़ साल से राज्य महामारी की चपेट में है, लेकिन राज्य में महामारी से निपटने के लिए योजना की कमी है।"

    पीठ ने कहा कि, "दुर्भाग्य से देश और राज्य की कुछ गलतियों और कुछ लापरवाही के कारण COVID-19 महामारी तेजी से फैला है।"

    पीठ ने चेतावनी दी कि विशेषज्ञों के अनुसार दूसरी लहर अभी भी चरम पर है और महामारी की तीसरी लहर भी आने की संभावना है जो बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित कर सकता है।

    पीठ ने जोर देकर कहा कि राज्य सरकार को भविष्य के खतरों को ध्यान में रखते हुए और वर्तमान में लोगों के सामने आ रही कठिनाइयों का समाधान करने की आवश्यकता है।

    कोर्ट ने राज्य के स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी द्वारा दायर हलफनामे पर असंतोष जताया क्योंकि उन्होंने टेस्टिंग प्रयोगशालाओं, अस्पताल के बेड, ऑक्सीजन की उपलब्धता, आवश्यक दवाओं के वितरण आदि के संबंध में पूर्व के निर्देशों के अनुपालन में पर्याप्त उपाय नहीं बताए।

    कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के हलफनामे को बहुत चतुराई से तैयार किया गया ताकि न्यायालय के पिछले आदेशों के कारण सिर्फ दिखाने के इरादे से किया गया है। कोर्ट ने कहा कि उत्तराखंड में हरिद्वार COVID-19 महामारी का केंद्र होने के बावजूद वहां एक भी सरकारी लैब नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सरकार के हलफनामे में कोई स्पष्टता नहीं है कि सरकार कब प्रमुख शहरों में मान्यता प्राप्त लैब स्थापित करेगी। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि प्रयोगशालाओं की अपर्याप्त संख्या के कारण देहरादून में 4,000 से अधिक सैंपल और हरिद्वार और नैनीताल में 2,000 से अधिक सैंपल का एनालिसिस किया जाना बाकी है।

    कोर्ट ने कहा कि राज्य के कई बड़े अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड की उपलब्धता नहीं है।

    वित्तीय सीमाएओं का कोई बहाना नहीं चलेगा

    कोर्ट ने महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर द्वारा प्रस्तुत याचिका की सराहना नहीं की कि स्वास्थ्य के अधिकार की रक्षा के लिए राज्य के उपाय इसकी वित्तीय सीमाओं के अधीन हैं।

    चीफ जस्टिस ने एडवोकेट जनरल से कहा कि,

    " आपदा में राज्य वित्तीय सीमाओं की बहना नहीं दे सकता है। राज्य यह नहीं कह सकता है कि उसके पास धन नहीं है। सरकारी खजाने का पैसा लोगों के जीवन की रक्षा के लिए समर्पित होना चाहिए। सरकार को पिता के रूप में हम सभी के लिए आगे आना चाहिए और नागरिकों को आश्वस्त करना चाहिए कि उनकी रक्षा की जाएगी। यही रवैया सरकार का होना चाहिए।"

    पीठ ने आदेश में कहा कि,

    "लोगों के जीवन की रक्षा करना राज्य का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है। इसके लिए राज्य को अपनी पूरी ताकत और धन का उपयोग लोगों की रक्षा के लिए करना होगा।"

    कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश दिए

    1. विशेषकर हरिद्वार में टेस्टिंग लैब की संख्या बढ़ाया जाए। यदि प्रयोगशालाओं की संख्या में वृद्धि नहीं की जा सकती है तो राज्य को तत्काल मोबाइल टेस्टिंग वैन को हटाने के लिए कदम उठाने चाहिए।

    2. प्रेस रिपोर्ट बताती है कि कोविड के 27% मामले पहाड़ी क्षेत्रों में आए हैं। इसलिए राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का व्यापक रूप से टेस्टिंग किया जाना चाहिए।

    3. चूंकि मामले बहुत तेजी से बढ़ हैं, इसलिए राज्य को यह भी विचार करना चाहिए कि क्या कॉलेजों / होटलों को क्वारंटाइन सेंटर में बदलना चाहिए।

    4. अस्पतालों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। हालांकि डीआरडीओ दो अस्थायी अस्पतालों की स्थापना के लिए समर्पित है। संभावित तीसरी लहर को देखते हुए राज्य को अधिक अस्थायी अस्पतालों पर विचार करना चाहिए, खासकर हरिद्वार, हल्द्वानी, देहरादून जैसे बड़े शहरों में।

    5. राज्य को झारखंड या पश्चिम बंगाल से ऑक्सीजन टैंकों के परिवहन की जगह राज्य के भीतर उत्पादित ऑक्सीजन का उपयोग करने के लिए केंद्र के अनुरूप अनुमति लेना चाहिए।

    6. राज्य को केंद्र के सहयोग से ऑक्सीजन कॉन्सनट्रेशन के आयात की संभावना पर भी विचार करना चाहिए।

    7. अस्पतालों में रिक्त पदों को भरने के लिए राज्य को कदम उठाने चाहिए।

    8. राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पर्याप्त संख्या में सुरक्षात्मक गियर डॉक्टरों और नर्सों के लिए उपलब्ध हों।

    9. राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नकली दवाओं के तहत निर्माण करने वालों को ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स अधिनियम के तहत लाया जाए।

    10. ड्रग कंट्रोलर को निर्देशित किया जाता है कि ड्रग स्टोर का निरीक्षण करने के लिए ड्रग इंस्पेक्टरों से पूछें ताकि पता लगाया जा सके कि रेमडेसिविर जैसी महत्वपूर्ण ड्रग्स उपलब्ध हैं या नहीं। इस संबंध में कार्रवाई की रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए।

    11. सरकार द्वारा उन अस्पतालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया जाता है जो सरकार के आदेशों का उल्लंघन करते हुए अत्यधिक कीमत लेते हैं। ऐसे अस्पतालों के खिलाफ उठाए गए कदमों की जानकारी अदालत को दी जानी चाहिए।

    कोर्ट ने राज्य को एक ताजा हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है जो वर्तमान हलफनामे को संशोधित करके 18 मई को प्रस्तुत करना है। मामले की सुनवाई को 20 मई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

    हालांकि महाधिवक्ता ने 25 मई तक का समय मांगा, लेकिन पीठ ने मना कर दिया।

    मुख्य न्यायाधीश चौहान ने मौखिक रूप से महाधिवक्ता से कहा कि,

    "हम मामले को रस्सी की तरह लंबा नहीं खिंचना चाहते हैं। स्पष्ट रूप से जिस तरह से सरकार COVID19 से निपट रही है, उससे हम खुश नहीं हैं।"

    डॉक्टरों और मेडिकल कर्मचारियों के प्रयासों की सराहना की जाती है।

    कोर्ट ने अपने आदेश में महामारी को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टरों और मेडिकल कर्मचारियों द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "डॉक्टरों और मेडिकल कर्मचारियों द्वारा COVID19 के प्रभाव को नियंत्रित करने की कोशिश के लइ लोगों ने उनकी बहादुरी और समर्पण, कड़ी मेहनत और दक्षता की सराहना की है।"

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