'कॉन्ट्रैक्ट सिक्योरिटी पर स्टांप ड्यूटी नहीं लगाई जा सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले निर्णयों की अनदेखी करने पर राज्य सरकार को फटकार लगाई

LiveLaw News Network

11 Sept 2020 6:43 PM IST

  • कॉन्ट्रैक्ट सिक्योरिटी पर स्टांप ड्यूटी नहीं लगाई जा सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले निर्णयों की अनदेखी करने पर राज्य सरकार को फटकार लगाई

    हाल ही के एक फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक पुराने कानून (ट्राइट लॉ) ( कॉन्ट्रैक्ट सिक्योरिटी पर स्टांप ड्यूटी नहीं लगाई जा सकती ) की अनदेखी करने के लिए राज्य के अधिकारियों को फटकार लगाई है।

    न्यायमूर्ति जयेंद्र ठाकर की खंडपीठ ने कहा किः

    ''यह मुद्दा डेढ़ दशक से भी पहले इस न्यायालय के समक्ष आया था, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित अधिकारियों ने यह नहीं माना कि उक्त निर्णय उन पर लागू होता है, क्योंकि इसी तरह का मुद्दा तीन साल पहले भी इस अदालत में आया था और निर्णय में कहा गया था कि स्टांप अधिनियम की अनुसूची 1 बी के अनुच्छेद 57 (बी) के तहत स्टाम्प ड्यूटी की मांग करना अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र से परे है।''

    वर्तमान मामला एक ठेकेदार द्वारा जमा की जाने वाली अनुबंध सुरक्षा पर स्टांप ड्यूटी की मांग करने से संबंधित है, जिसे मथुरा में सड़कों की मरम्मत करने के लिए टेंडर दिया गया था।

    अधिकारियों ने याचिकाकर्ता से कहा था कि वह दस दिनों के भीतर स्टांप ड्यूटी के साथ पूरी सिक्योरटी का भुगतान कर दें। हालाँकि, जब याचिकाकर्ता ने कहा कि स्टांप ड्यूटी केवल स्टांप अधिनियम 1899 (यूपी राज्य में संशोधित)की अनुसूची 1बी के अनुच्छेद 57 (बी) (Article 57 (b) Schedule 1B of the Stamp Act, 1899 (as amended in the State of UP)) के अनुसार लगाई जानी चाहिए तो अधिकारियों ने आठ महीने तक उसके कार्य का आदेश पास नहीं किया।

    न्यायालय ने याचिकाकर्ता का समय बर्बाद करने के लिए अधिकारियों को फटकार लगाई और उन्हें न्यायालय के पिछले निर्णयों की याद दिलाई, जिनमें यह तय किया गया था कि कॉन्ट्रैक्ट सिक्योरिटी पर स्टांप ड्यूटी नहीं लगाई जा सकती है।

    जस्टिस ठाकर ने कहा कि, ''इस कोर्ट की डिवीजन बेंच ने 22 मार्च 2005 को मैसर्स स्ट्रॉन्ग कंस्ट्रक्शन बनाम स्टेट ऑफ यूपी एंड अदर्स (Civil Misc. Writ Petition No.35096 of 2004) के मामले में इस संबंध में फैसला दे दिया था। वहीं इस न्यायालय ने रिट सी नंबर 52385/ 2015 (मैसर्स किशन ट्रेडर्स बनाम यूपी राज्य और दो अन्य) के मामले में भी दिनांक 18 जुलाई 2017 को एक मौखिक आदेश दिया था। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इन फैसलों के बावजूद भी अधिकारियों ने याचिकाकर्ता से मांग की है,जिसे स्टैंप ड्यूटी के रूप में जाना जाता है।''

    स्टैंप एक्ट की अनुसूची 1 बी के अनुच्छेद 57 (बी) के तहत यह निर्धारित किया गया है कि स्टांप ड्यूटी 'सिक्योरिटी बॉन्ड और मॉर्गेज डीड' पर लगायी जा सकती है, जो अन्य बातों के साथ, एक अनुबंध के कार्य-निष्पादन या एक दायित्व के निर्वहन को सुरक्षित करने के लिए जमानती या प्रतिभू द्वारा निष्पादित की जाती है।

    मैसर्स स्ट्रॉन्ग कंस्ट्रक्शन (सुप्रा) मामले में हाईकोर्ट ने कहा था कि सिक्योरटी के तौर पर प्रस्तुत किए गए डॉक्यूमेंट/डीड को सेक्शन 2 (17) के तहत 'गिरवी या मॉर्गेज डीड' नहीं माना जा सकता है या इंडियन स्टैम्प एक्ट, 1899 (एज अमेंडिड इन स्टेट आॅफ यूपी) शेड्यूल 1-बी के आर्टिकल 57 (बी) के तहत 'सिक्योरिटी डीड' नहीं माना जा सकता है।

    न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि अनुच्छेद 57 (बी) के अनुसार स्टैप ड्यूटी न लगाने का मामला ''शक्ति के दुरुपयोग'' करने और ''कानून के नियम से परे निकलने'' के समान है।

    इन तथ्यों और परिस्थितियों के तहत, कोर्ट ने कॉन्ट्रैक्ट सिक्योरिटी पर स्टैंप ड्यूटी की मांग करने वाले आदेश को रद्द कर दिया है। वहीं याचिकाकर्ता को निर्देश दिया है कि अनुसूची 1 बी के अनुच्छेद 57 (बी) के अनुसार स्टैंप ड्यूटी का भुगतान करें।

    मामले का विवरण-

    केस शीर्षक-मैसर्स योगेंद्र कुमार बनाम उत्तर प्रदेश व अन्य

    केस नंबर-रिट सी नंबर 13395/2020

    कोरम- न्यायमूर्ति जयेंद्र ठाकर

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