डीएनए नमूना जांच के लिए अतिरिक्त फोरेंसिक लैब स्थापित करने के लिए उठाए गए कदमों को निर्दिष्ट करें, एमपी हाईकोर्ट का राज्य सरकार को निर्देश
LiveLaw News Network
4 Feb 2022 8:00 AM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि डीएनए नमूनों की जांच के लिए अतिरिक्त फोरेंसिक लैब के गठन के लिए जारी न्यायालय के निर्देशों के संबंध में उसने क्या कदम उठाए हैं।
यह आदेश जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने दिया। पीठ कहा कि बड़ी संख्या में मामलों में, एफएसएल रिपोर्ट और डीएनए रिपोर्ट एचसी या ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश नहीं की जा रही है, इस तथ्य के बावजूद कि चार्जशीट पहले ही दायर की जा चुकी है और मुकदमे में, महत्वपूर्ण गवाहों के बयान पहले ही दर्ज किए जा चुके हैं।
अदालत ने कहा, "यह राज्य के अधिकारियों की उदासीनता को दर्शाता है कि नमूने की जल्द जांच नहीं हो रही है। इस अदालत द्वारा नमूनों की जांच के लिए अतिरिक्त फोरेंसिक लैब के गठन के संबंध में पहले ही कई निर्देश जारी किए जा चुके हैं।"
कोर्ट ने आगे अधिकारियों से 15 दिनों के भीतर न्यायालय द्वारा पहले जारी निर्देशों के अनुसार उठाए गए कदमों को भी निर्दिष्ट करने के लिए कहा।
मामला
अदालत मान सिंह नामक आरोपी की दूसरी जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर आईपीसी की धारा 363, 376 (2) (जे) (आई)/366 के तहत मामला दर्ज किया था। उस पर एक मेंटली रिटार्डेड महिला के साथ बलात्कार करने का आरोप था।
अदालत ने कहा कि पीड़िता का मेडिकल परीक्षण अगले दिन किया गया था। आरोपी को 07 मई, 2019 को हिरासत में ले लिया गया था और नमूने 6 मई, 2019 को एकत्र किए गए थे। उन्हें एफएसएल/डीएनए जांच के लिए 10 मई, 2019 को भेजा गया था, लेकिन आज तक कोई रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई थी।
इस पृष्ठभूमि में अदालत ने सुनवाई की पिछली तारीख पर, संबंधित एसएचओ से कहा था कि अगर वह 18 जनवरी, 2022 को डीएनए रिपोर्ट जमा करने में विफल रहते हैं तो वह अदालत के समक्ष उपस्थित रहें।
आदेश
18 जनवरी को राज्य के वकील ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि डीएनए आज तक प्राप्त नहीं हुआ है। एसएचओ द्वारा उन्हें दी गई जानकारी के अनुसार डीएनए रिपोर्ट लेने के लिए विशेष संदेशवाहक भेजा गया था, लेकिन रिपोर्ट नहीं मिली।
कोर्ट के समक्ष एसएचओ की उपस्थिति के संबंध में, राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि उन्होंने एसएसओ को सूचित किया था और कार्यवाही में शामिल होने के लिए कनेक्टिंग लिंक भी भेजा था, लेकिन बार-बार प्रयास करने के बावजूद, एसएचओ वीसी लिंक से कनेक्ट नहीं हुआ।
गौरतलब है कि राज्य के वकील यह भी नहीं बता सके कि नमूना जांच के लिए कितना समय तक बचा रहता है और एक बार जांच के लिए सैंपल लिए जाने के बाद रिपोर्ट करने में कितना समय लगता है।
इसलिए, इस तथ्य के मद्देनजर कि एसएचओ ने कोर्ट के विशिष्ट निर्देश के बावजूद, सहयोग नहीं किया और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कनेक्ट भी नहीं किया और राज्य के वकील द्वारा किए गए टेलीफोन कॉल को नहीं उठाया, कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किया-
"...ऐसा प्रतीत होता है कि वह जानबूझकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से नहीं जुड़ रहा है और वर्चुअल मोड का लाभ उठा रहा है, इस न्यायालय द्वारा पारित आदेशों का पालन नहीं कर रहा है। ऐसी परिस्थितियों में, यह न्यायालय मामले को देखने के लिए पुलिस अधीक्षक, सिवनी को निर्देश देना उचित समझता है। पुलिस अधीक्षक को इस आशय का एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया जाता है कि यह स्पष्ट करने के लिए कि नमूने की जांच करने और डीएनए की रिपोर्ट प्राप्त करने में इतना समय क्यों लिया जा रहा है, क्योंकि नमूने 06.05.2019 को एकत्र किए गए थे और उन्हें जांच के 10.05.2019 लिए भेजा गया था। उन्हें यह भी निर्देश दिया जाता है कि वे हलफनामे पर पूरी प्रक्रिया की व्याख्या करें जो अधिकारियों द्वारा जांच के लिए नमूने प्राप्त होने पर तुरंत बाद अपनाई गई है।"
अंत में, यह देखते हुए कि अभियुक्त के खिलाफ मामला गवाहों के बयानों द्वारा समर्थित था, अदालत ने जमानत याचिका को खारिज कर दिया।
केस का शीर्षक - मान सिंह बनाम मध्य प्रदेश का राज्य