जम्मू-कश्मीर कोर्ट ने कथित अवैध दवाओं की बिक्री की SIR जांच के आदेश दिए, FIR दर्ज करने में 6 महीने की देरी के लिए पुलिस को फटकार लगाई

Amir Ahmad

14 Aug 2025 12:51 PM IST

  • जम्मू-कश्मीर कोर्ट ने कथित अवैध दवाओं की बिक्री की SIR जांच के आदेश दिए, FIR दर्ज करने में 6 महीने की देरी के लिए पुलिस को फटकार लगाई

    उधमपुर के प्रधान सेशन कोर्ट (NDPS Act के तहत स्पेशल जज) वीरेंद्र सिंह भाऊ ने उधमपुर के सीनियर पुलिस अधीक्षक और उधमपुर पुलिस स्टेशन के प्रभारी को मादक पदार्थों की अवैध बिक्री और मरीज़ों के रिकॉर्ड से छेड़छाड़ के गंभीर आरोपों की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का निर्देश दिया।

    यह निर्देश उधमपुर के प्राइवेट न्यूरो-साइकियाट्रिक क्लिनिक से जुड़े कथित बड़े पैमाने पर उल्लंघनों की जांच की मांग वाली शिकायत के बाद जारी किया गया, जहां मालिक बिना किसी अधिकृत डॉक्टर के NDPS Act के तहत आने वाली अनुसूची III की मादक दवाएं वितरित कर रहे थे।

    यह मामला तब शुरू हुआ, जब भारतीय सेना के रिटायरमेंट लेफ्टिनेंट कर्नल, MBBS और एमडी (मनोचिकित्सा) जिन्होंने सैन्य अस्पतालों में व्यापक रूप से सेवा की थी ने उधमपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिताा (BNSS), 2023 की धारा 175(3) के तहत शिकायत दर्ज कराई।

    शिकायतकर्ता ने कुछ समय के लिए प्रभारी डॉक्टर के रूप में कार्य किया था। जनवरी 2025 में क्लिनिक से इस्तीफा देने के बाद शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि मालिक बिना किसी अधिकृत डॉक्टर के NDPS Act के तहत आने वाली अनुसूची III की मनोविकृतिरोधी दवाएं वितरित करते रहे नुस्खों पर उनके नाम का दुरुपयोग करते रहे, रिकॉर्ड में हेराफेरी करते रहे और मरीजों की फाइलों से छेड़छाड़ करते रहे।

    अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, जिला क्षय रोग अधिकारी और औषधि नियंत्रण अधिकारी की एक बहु-विभागीय निरीक्षण टीम ने कथित तौर पर पाया कि 2,300 से अधिक गोलियां अवैध रूप से बेची गई थीं। औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के तहत दवाओं को फ्रीज किया गया था लेकिन शिकायतकर्ता ने दावा किया कि बाद में उन्हें निकालकर नष्ट कर दिया गया।

    मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 22 मई 2025 को आवेदन वापस कर दिया यह देखते हुए कि NDPS Act के तहत स्पेशल कोर्ट यानी प्रधान सेशन कोर्ट के पास अधिकार क्षेत्र है। इसके बाद शिकायत जज भाऊ के समक्ष प्रस्तुत की गई।

    अपने आदेश में जज ने कहा कि आरोप संज्ञेय प्रकृति के थे और सात साल से अधिक कारावास की सजा के साथ दंडनीय थे जिससे ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के तहत प्रारंभिक जाँच की कोई गुंजाइश नहीं बची।

    इसके बावजूद एसएसपी उधमपुर ने फरवरी 2025 में ऐसी जांच का आदेश दिया, जो न केवल BNSS 2023 के तहत अधिकार क्षेत्र के बिना था बल्कि इसे छह महीने तक खींचने की अनुमति भी दी, जो कि BNSS की धारा 173(3) के तहत वैधानिक 14-दिन की सीमा से कहीं अधिक था।

    न्यायालय ने कहा,

    "FIR दर्ज करने में देरी केवल मामले में बाहरी विचारों और ढिलाई को दर्शाती है। कानूनी कार्रवाई करने में पुलिस की विफलता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।"

    न्यायालय ने आगे कहा कि प्रारंभिक जांच के निष्कर्षों, जिनमें ज़ब्त की गई दवाओं को हटाना और अन्य गंभीर अनियमितताएं शामिल हैं, उसको सीनियर पुलिस अधीक्षक और अन्य सीनियर अधिकारियों द्वारा सुविधाजनक रूप से नज़रअंदाज़ किया गया।

    न्यायालय ने निर्देश दिया कि BNS 2023 की धारा 61, 212, 228, 229(2), 318, 335, 336(3), 340, NDPS Act, 1985 की धारा 8, 9ए, 21, 22, 25, 25ए और अन्य लागू कानूनों के तहत अपराधों के लिए तत्काल FIR दर्ज की जाए।

    न्यायालय ने निर्देश दिया कि ईमानदार और पेशेवर अधिकारियों वाली विशेष जांच दल (SIR) का गठन किया जाए, जिसे जिला क्षय रोग अधिकारी, सीएमओ उधमपुर और औषधि नियंत्रण अधिकारी सहायता प्रदान करें और एक सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।

    न्यायालय ने ललिता कुमारी के अधीन FIR दर्ज न करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करने के अपने अधिकार को स्वीकार किया लेकिन इसके बजाय उसने भविष्य में गंभीर अपराधों से जुड़ी शिकायतों से निपटने में सतर्कता सुनिश्चित करने के लिए एक चेतावनी नोट जारी किया।

    केस टाइटल: लेफ्टिनेंट कर्नल डॉ. चरणप्रीत सिंह बनाम शिव शर्मा एवं अन्य, 2025

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