''जरूरतमंद लोगों को फौरन मदद पहुंचाने में सोशल मीडिया सराहनीय कार्य कर रहा है'': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा मीडिया का एक सेक्शन सनसनीखेज खबरें भी प्रसारित कर रहा

LiveLaw News Network

30 April 2021 12:15 PM GMT

  • जरूरतमंद लोगों को फौरन मदद पहुंचाने में सोशल मीडिया सराहनीय कार्य कर रहा है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा मीडिया का एक सेक्शन सनसनीखेज खबरें भी प्रसारित कर रहा

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार (28 अप्रैल) को सोशल मीडिया की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि इसके जरिए उन नागरिकों तक पहुंचा जा रहा है,जिन्हें तत्काल मदद की आवश्यकता है।

    न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान की खंडपीठ ने हालांकि कहा कि मीडिया का एक सूक्ष्म प्रतिशत राष्ट्र निर्माण में सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता है और इसके बजाय वह नफरत फैलाने वाले भाषणों, कवरेज को बढ़ावा देने में संयम रखने के बजाय सनसनीखेज खबरें प्रसारित करता है।

    न्यायालय के समक्ष मामला

    अदालत आईपीसी की धारा 295ए, 298, 153-ए, 153-बी, 505, 149, 124-ए और 120 बी के तहत दर्ज प्राथमिकी में अग्रिम जमानत की मांग करने वाले एक अमित घई की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    एफआईआर में आरोपों के अनुसार,यह केस इंस्पेक्टर दलजीत सिंह के कहने पर दर्ज किया गया था। उन्होंने बताया था कि उन्होंने एक वीडियो क्लिप देखी थी, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी,जिसमें याचिकाकर्ता और कई अन्य व्यक्तियों ने एक सम्मेलन बुलाया था और उसमें निहंग सिखों के बारे में कुछ अपमानजनक टिप्पणी की गई थी। कहा गया था कि कुछ निहंग सिख 4 या 3 या 2 फीट लंबी तलवारों के साथ घूम रहे हैं और निहंग समुदाय की पोशाक को बुरा नाम दे रहे हैं।

    शिकायतकर्ता के अनुसार, यह वीडियो हेट स्पीच के समान थी, जिसे सांप्रदायिक विद्वेष पैदा करने के लिए तैयार किया गया था और जिसमें समाज के एक विशेष वर्ग का अपमान करते हुए सांप्रदायिक दंगे करवाए जा सकते थे और इसलिए यह वीडियो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा कर रही थी।

    दूसरी ओर, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वीडियो को पंजाब केसरी टीवी के मुख्य संपादक द्वारा सोशल मीडिया, यानी फेसबुक और यूट्यूब पर अपलोड किया गया था और वास्तव में, वीडियो को इस तरह से संपादित किया गया था, जिससे उसमें एकतरफा बयान नजर आ रहा था।

    यह तर्क दिया गया था कि याचिकाकर्ता और उक्त प्रेस रिपोर्टर के बीच की यह बातचीत किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं की गई थी और याचिकाकर्ता के भाषण को संपादित करके पूर्वोक्त प्रेस रिपोर्टर द्वारा एक गलत संदेश दिया गया ताकि अपनी सामग्री को जोड़कर खबर को सनसनीखेज बनाया जा सकें।

    कोर्ट का अवलोकन

    मामले की शुरुआत में ही अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह एक सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत तथ्य है कि प्रेस (प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सहित) लोकतंत्र का चैथा स्तंभ बन गया है, जो समाज में घृणित अपराध के बारे में नागरिकों की मानसिकता को बदल सकता है।

    अदालत ने आगे कहा, ''वर्तमान कोरोना महामारी की स्थिति में भी, इस चैथे स्तंभ ने दोनों, सरकारी और साथ ही जरूरतमंद नागरिकों की मदद करने में असाधारण सराहनीय काम किया है।''

    महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने भी जोड़ा,

    ''यही नहीं, यहां तक कि सोशल मीडिया उन नागरिकों तक पहुंचने में भी बहुत अच्छा काम कर रहा है, जिन्हें मदद की तत्काल आवश्यकता है और सभी नागरिक, चाहे वे आपस में जानते हों या अनजान, एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं।''

    हालांकि, न्यायालय ने आगे कहा कि मीडिया का एक सूक्ष्म प्रतिशत राष्ट्र निर्माण में सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता है और वह नफरत फैलाने वाले भाषणों, कवरेज को बढ़ावा देने में संयम बरतने की बजाय सनसनीखेज खबर प्रसारित कर रहा है।

    अदालत ने यह भी कहा कि,''इस विचारधारा के अनुयायी मानते हैं कि वे कानून से ऊपर हैं और कानून की प्रक्रिया से ऐसे ही बच के निकल जाएंगे।''

    अंत में, मामले को 25 मई को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट करते हुए, अदालत ने याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दे दी और राज्य को मामले में अपनी जांच जारी रखने का निर्देश दिया।

    इस बीच, जांच ब्यूरो, पंजाब के निदेशक/अतिरिक्त निदेशक को निर्देश दिया गया है कि मामले की जांच के साथ-साथ उस व्यक्ति की भूमिका पर भी विचार करें जिसने सोशल मीडिया पर वीडियो क्लिप अपलोड की थी और निम्नलिखित बिंदुओं पर एक विशिष्ट हलफनामा दायर किया जाएः

    -क्या एक पत्रकार, एक नागरिक होने के नाते, यह जानने के बाद कि कोई अपराध हुआ है, ऐसी सूचना प्रसारित करने से पहले पुलिस को सूचित करने के लिए बाध्य है?

    -क्या पूर्वोक्त प्रेस रिपोर्टर स्वयं अपराध को जारी रखने में संलिप्त है क्योंकि उसने सोशल मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर ऐसी वीडियो क्लिप अपलोड की है,जो घृणा को बढ़ावा देने या घृणा की भावना आदि को बढ़ावा देने के समान हो सकती है?

    -क्या मूल वीडियो रिकॉर्डिंग को हेट स्पीच कहा जा सकता है?

    -क्या संपादित वीडियो क्लिप, उत्प्रेरक के रूप में उनकी टिप्पणियों के साथ, हेट स्पीच के समान है? सुनवाई की अगली तारीख को या उससे पहले हलफनामा दायर किया जाए।

    केस का शीर्षक - अमित घई बनाम पंजाब राज्य,सीआरएम-एम-17622/2021,

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