"सुरक्षित घर में स्थानांतरित": परिजनों से धमकी का सामना कर रहे LGBTQ युगल की संरक्षण याचिका दिल्ली हाईकोर्ट ने निस्तारित की
LiveLaw News Network
2 Aug 2021 5:28 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक LGBTQ दंपति की सुरक्षा याचिका का निस्तारण किया। कोर्ट ने यह नोट किया कि दंपति को अपने परिवारों से धमकी का सामना करना पड़ रहा था, इसलिए उन्हें सुरक्षित घर में स्थानांतरित कर दिया गया है।
जस्टिस मुक्ता गुप्ता की सिंगल जज बेंच ने कहा, "एक बार जब खतरे की कोई धारणा नहीं रह जाती है तो याचिकाकर्ताओं को अपने खुद के आवास में स्थानांतरित कर दिया जाए।"
इससे पहले अदालत ने पुलिस को दंपति को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने और उन्हें दिल्ली सरकार द्वारा स्थापित सुरक्षित घर में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था।
आज सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता दंपत्ति की ओर से पेश अधिवक्ता उत्कर्ष सिंह ने कहा, "दिशानिर्देशों का पालन किया गया है। उन्हें सुरक्षित घर में स्थानांतरित कर दिया गया है।"
कोर्ट ने एनजीओ धनक ऑफ ह्यूमैनिटी की याचिका पर नोटिस जारी किया था। दंपति एनजीओ के कार्यालय में रह रहे थे।
दंपति की दलील थी कि वयस्क होने के बावजूद, उनके रिश्ते को उनके परिवारों द्वारा LGBTQ समुदाय से संबंधित होने के कारण स्वीकार नहीं किया जा रहा है।
पिछली सुनवाई के दौरान, दंपति की ओर से पेश वकील सिंह ने अदालत के समक्ष कहा था कि अपने परिवार के सदस्यों से धमकी का सामना करने के बाद, युगल शादी करने के लिए पंजाब से दिल्ली आया था।
याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने संबंधित थाने के एसएचओ को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि दंपति को एनजीओ के कार्यालय से किंग्सवे कैंप क्षेत्र के सेवा कुटीर परिसर में सुरक्षित घर में ले जाया जाए।
शक्ति वाहिनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार अपने परिवारों से खतरे का सामना कर रहे जोड़ों की सुरक्षा के लिए दिल्ली सरकार द्वारा उक्त सुरक्षित घर का रखरखाव किया जाता है।
जस्टिस गुप्ता ने इस साल की शुरुआत में एक आदेश पारित किया , जिसमें एक समलैंगिक महिला को सुरक्षा प्रदान की गई थी, जिसकी शादी उसकी इच्छा के खिलाफ एक पुरुष से हुई थी और उसे सेक्सुअल ओरिएंटेशन से "ठीक" होने की धमकी दी गई थी।
उन्होंने कहा था, "एक वयस्क महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध अपने वैवाहिक या माता-पिता के परिवार के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है,"।
केस टाइटिल: धनक ऑफ ह्यूमैनिटी और अन्य बनाम जीएनसीटीडी और अन्य।