"शारजील इमाम ने भारत की संप्रभुता को चुनौती दी, मुसलमानों में निराशा की भावना भरने की कोशिश की": दंगों के मामले में अभियोजन पक्ष ने दिल्ली की अदालत को बताया

LiveLaw News Network

2 Sep 2021 11:08 AM GMT

  • शारजील इमाम ने भारत की संप्रभुता को चुनौती दी, मुसलमानों में निराशा की भावना भरने की कोशिश की: दंगों के मामले में अभियोजन पक्ष ने दिल्ली की अदालत को बताया

    दिल्ली की एक अदालत को अभियोजन पक्ष ने गुरुवार को बताया कि शारजील इमाम ने पिछले साल जनवरी में नागरिकता संशोधन अधिनियम और एनआरसी के खिलाफ दिए कथित राष्ट्रद्रोही भाषण में भारत की संप्रभुता को चुनौती दी थी और मुसलमानों में 'निराशा और असुरक्षा की भावना' भरने की भी कोशिश की थी।

    उल्लेखनीय है कि दिल्ली पुलिस ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और दिल्‍ली स्थिति जामिया इलाके में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिए भाषण के मामले में शारजील के खिलाफ IPC की धारा 124ए, 153ए और 505, यूएपीए की धारा 13, जिसे बाद में जोड़ा गया था, के तहत FIR 22/2020 दर्ज की थी। गुरवार को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने उसी मामले की सुनवाई की।

    22 जनवरी, 2020 को आसनसोल में दिए गए शारजील के एक भाषण को पढ़ते हुए विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने कहा कि शारजील ने अपने भाषण में विशेष रूप से कहा था कि लोग सीएए या एनआरसी के कारण नहीं बल्कि अन्य मुद्दों के कारण सड़कों पर हैं।

    प्रसाद ने कहा, "उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि सीएए या एनआरसी मुद्दा नहीं है। मुद्दे तीन तलाक है, कश्मीर है, जिसके लिए लामबंदी हो रही है। पिछले भाषणों में भी उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया कि सब कुछ खत्म हो गया है, मुसलमान के रूप में आपके पास कोई उम्मीद नहीं है।"

    प्रसाद ने यह भी प्रस्तुत किया कि शारजील ने अपने भाषण में कहा था कि बांग्लादेश, पाकिस्तान आदि सहित अन्य देशों का भी सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर विचार होगा और इसलिए वह भारत सरकार की बात नहीं सुनेंगे।

    प्रसाद ने दलील दी, "इसलिए वह कहते हैं कि यह 5-6 देशों का मुद्दा है और मैं भारत सरकार की नहीं सुनूंगा। क्या वह संप्रभुता को चुनौती नहीं दे रहे हैं? उनका कहना है कि भारत सरकार भारत में कानून नहीं बना सकती है। यही है, जिस पर वह सवाल उठा रहे हैं.......यही मैं कहना चाहता हूं कि उन्होंने निराशा की भावना डालने की कोशिश की।"

    प्रसाद ने भाषण के उस विशेष हिस्से को भी पढ़ा, जिसमें शारजील ने कथित तौर पर कहा था के "डिटेंशन कैंप को जला दो।"

    उन्होंने कहा, "इससे ज्यादा और क्या कहा जा सकता है कि वह हिंसा भड़का रहा है?" प्रसाद ने जोर देकर कहा कि शारजील सीएए और एनआरसी पर इसी तरह के भाषण देने के लिए जगह-जगह गए थे।

    उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पिछले साल 22 और 23 जनवरी को आसनसोल और झारखंड में उनके भाषणों के चार सप्ताह/ 28-29 दिन बाद दिल्ली दंगे हुए थे। प्रसाद ने बताया, 23 जनवरी, 2020 को झारखंड में शारजील ने अपने भाषण में कहा था, "आवाम में जो गुस्सा है, उसे इस्तेमाल किया जाए।"

    कल , अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शारजील द्वारा दिए गए एक भाषण पर भरोसा करते हुए, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया था कि इमाम ने अपना भाषण 'अस-सलामु अलैकुम' से शुरू किया, जो यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि यह एक विशेष समुदाय को संबोधित किया गया था, न कि बड़े पैमाने पर सभी को।

    उन्होंने कहा कि शारजील ने यह कहकर भीड़ को उकसाने का प्रयास किया कि "अगर आवाम गुस्से में है तो गुस्से का प्रोड‌‌क्टिव यूज़ करना है)।

    इससे पहले, मामले में जमानत की मांग करते हुए, शारजील ने अदालत से कहा था कि भाषणों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो किसी भी हिंसा का आह्वान करता हो या जिसके आधार पर उसके खिलाफ देशद्रोह का आरोप लग सके।

    उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि भाषण "बौद्धिक बहस" के हिस्से के रूप में विद्वानों के एक समूह के बीच दिया गया था और उन पर केवल एक ऐसा दृष्टिकोण रखने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, जो सरकार से अलग है।

    एडवोकेट मीर ने प्रस्तुत किया था, "हमारे समाज में आलोचना का तत्व भी आवश्यक हैं क्योंकि जिस समाज में आलोचना मरेगी, समाज मरेगा। इसलिए, अंततः, लोकतंत्र में संविधान को सुरक्षित रखने की जिम्‍मेदारी माननीय कोर्ट के हाथों में है ... इस देश में साहसी पुरुषों पर देशद्रोह नहीं थोपा जाएगा। यही हमारा पवित्र कर्तव्य है। शारजील इमाम का दृष्टिकोण शत्रुतापूर्ण नहीं है।"

    उन्होंने यह भी दावा किया कि जांच अधिकारी ने शारजील के भाषण से "चुनिंदा पंक्तियां" ली हैं और उसे अवैध संदर्भ में पेश किया है।

    मामले पर कोर्ट शनिवार को सुबह 11:30 बजे सुनवाई करेगा।

    केस शीर्षक: राज्य बनाम शारजील इमाम


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