झूठे वादे पर सेक्स-'पीड़ित के माथे पर सिंदूर लगाने से पता चलता है कि पुरुष शादी करने का इरादा रखता है': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 376 के तहत एफआईआर रद्द करने से इनकार किया
LiveLaw News Network
12 Sept 2021 11:30 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि हिंदू रीति-रिवाजों के तहत, एक पुरुष द्वारा एक महिला के माथे पर सिंदूर लगाना (मांगभराई समारोह) एक पुरुष के उस महिला से शादी करने के वादे और इरादे को बताता है, जो एक महिला के लिए यह मानने के लिए पर्याप्त है कि वह वास्तव में उससे शादी करेगा।
न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की पीठ ने यह भी कहा कि एक महिला के माथे पर सिंदूर लगाना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सिंदूर लगाने वाले के इरादे को दर्शाता है कि उसने दूसरे व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर लिया है।
मामले के तथ्य
अदालत विपिन कुमार की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, शाहजहांपुर के एक आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश के तहत आईपीसी की धारा 376 के तहत विपिन के खिलाफ दर्ज एक आपराधिक मामले में जारी समन के आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।
इसके अलावा, उसने चार्जशीट/फाइनल फॉर्म और मामले की पूरी कार्यवाही को भी इस आधार पर रद्द करने की प्रार्थना की थी कि एफआईआर की सामग्री को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता/पीड़िता ने उसके साथ सहमति से यौन संबंध बनाए थे।
सीमा सड़क संगठन के साथ जेई के रूप में काम कर रहे आवेदक के खिलाफ आरोप यह है कि उसने शादी की आड़ में और शादी के नाम पर एक महिला/ पीड़िता के साथ उसकी अनिच्छा और इनकार के बावजूद शारीरिक संबंध स्थापित किए और उसके बाद शादी करने से इनकार कर दिया।
आरोपी ने कथित तौर पर इस आधार पर पीड़िता/लड़की से शादी करने से इनकार कर दिया क्योंकि लड़के के परिवार की बेटियों की शादी लड़की के परिवार में हुई है और इसलिए उस परिवार से एक लड़की नहीं लाई जा सकती है, जहां उन्होंने पहले ही अपनी बेटियों की शादी कर रखी है।
दलीलें
अभियोजन पक्ष ने प्रस्तुत किया कि आरोपी/आवेदक ने महिला के साथ एक सेरेमनी की थी,जिसे प्रतीकात्मक ''मांगभराई'' कहा जाता है (एक महिला के सिर की मध्य रेखा पर सिंदूर (सिंदूर) लगाना, जहां से बालों को दो हिस्सों में बांटा जाता है), जो कि हिंदू परंपराओं और संस्कृति के तहत एक महत्वपूर्ण कदम है,जो विवाह की ओर अग्रसर होता है अर्थात ''सप्तपदी''।
इसलिए, यह तर्क दिया गया कि इस सेरेमनी के नाम पर, शादी करने का झूठा वादा किया गया। आगे यह भी कहा गया कि इस सेरेमनी का होना स्वयं इस बात का संकेत है कि आवेदक ने शादी का झूठा वादा किया क्योंकि उसका पीड़िता से शादी करने का कोई इरादा नहीं था।
अंत में, यह भी तर्क दिया गया कि आरोपी को अपनी पारिवारिक परंपरा के बारे में शुरुआत से ही पता था और इसलिए, इस पारिवारिक परंपरा (कि महिला के परिवार से बेटियों को नहीं लाया जा सकता) को जानने के बावजूद, आरोपी ने पीड़िता की सहमति प्राप्त करने के लिए शादी का आश्वासन दिया,इसलिए पीड़िता की सहमति को किसी भी तरह से स्वतंत्र सहमति नहीं कहा जा सकता है।
न्यायालय की टिप्पणियां
शुरुआत में, अदालत ने कहा कि यह स्थापित करने के लिए कि ''सहमति'' (यौन संबंध स्थापित करने के लिए) शादी करने के वादे के कारण ''तथ्य की गलत धारणा'' (आईपीसी की धारा 90 के अनुसार) से उत्पन्न हुई थी, दो कथन को स्थापित किया जाना जरूरी है,जो इस प्रकार हैंः
-शादी का वादा एक झूठा वादा रहा होगा, जो गलत विश्वास में दिया गया और जिस समय यह दिया गया, उस समय इसके पालन करने का कोई इरादा नहीं था।
-झूठा वादा स्वयं तत्काल प्रासंगिकता का होना चाहिए, या इसका यौन कृत्य में शामिल होने के लिए महिला के निर्णय से सीधा संबंध होना चाहिए।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि आरोपी को बलात्कार के लिए तभी दोषी ठहराया जा सकता है जब अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि आरोपी का इरादा दुर्भावनापूर्ण था और उसके गुप्त उद्देश्य थे।
इस पृष्ठभूमि में, न्यायालय ने मामले के तथ्यों की जांच की और पाया कि,
''... जिस दिन आवेदक ने (शादी करने का) वादा किया, वह इस तथ्य से अवगत था कि उसकी पारिवारिक परंपरा के अनुसार, वह उस लड़की से शादी नहीं कर पाएगा जिसके साथ वह शारीरिक संबंध बनाने की सहमति लेने के लिए शादी करने का वादा कर रहा है। दूसरा, ''मांगभराई'' की सेरेमनी करना आवेदक के इस तथ्य का एक और प्रमाण है कि उसने विवाह करने के गंभीर वादे पर शारीरिक संबंध बनाए, जबकि शुरुआत से ही आवेदक इस बात से अवगत है कि उनकी पारिवारिक परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार, वह उस लड़की से शादी नहीं कर पाएगा।''
अदालत ने आगे कहा कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है कि पीड़िता आवेदक से बहुत ज्यादा प्यार करती थी।
अंत में, यह रेखांकित करते हुए कि 'इरादे' और 'उद्देश्य' को ट्रायल के दौरान अंतिम तौर पर जांचा जाएगा, अदालत ने माना कि आरोप पत्र या समन आदेश को रद्द करने के लिए कोई मामला नहीं बनता है और इस प्रकार, आवेदन को खारिज कर दिया गया।
केस का शीर्षक - विपिन कुमार उर्फ विक्की बनाम यूपी राज्य व अन्य
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