[सर्विस रूल्स] सरकार एक मॉडल नियोक्ता होने के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी के जैसे काम नहीं कर सकती है: कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

5 Oct 2020 3:37 PM IST

  • [सर्विस रूल्स] सरकार एक मॉडल नियोक्ता होने के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी के जैसे काम नहीं कर सकती है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार (28 सितंबर) को कहा कि सरकार एक मॉडल नियोक्ता होने के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी के जैसे काम नहीं कर सकती है, पुराने दिनों जैसे जब सेवा नियमों के जर‌िए आम तौर पर सेवा की स्‍थ‌ितियों को विनियमित किया जाता था।

    जस्टिस कृष्ण पी दीक्षित और जस्टिस पीएन देसाई की खंडपीठ एक सिविल सेवक की ओर से दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण ('केएसएटी') की कालबुर्गी पीठ द्वारा आवेदन संख्या 1270/2020 पर 12.08.2020 को दिए गए आदेश को चुनौती दी गई थी। आदेश के तहत उन्हें उनकी प्रतिनियुक्ति की एकतपक्षीय समाप्ति के खिलाफ राहत से वंचित किया गया था।

    पृष्ठभूमि

    09.05.2017 की अधिसूचना के जर‌िए, कर्नाटक राज्य ने प्रतिवादी-आरडीपीआर विभाग के लिए प्रतिनियुक्ति पर याचिकाकर्ता की सेवाएं लीं। उन्हें 02.06.2017 को एक अधिसूचना जारी कर परियोजना उप प्रभाग, विजयुपर में सहायक कार्यकारी अभियंता के रूप में तैनात किया गया।

    बाद में, आरडीपीआर विभाग की अधिसूचना दिनांक 15.07.2017 के जर‌िए याचिकाकर्ता को तकनीकी सहायक, परियोजना प्रभाग, बगलकोट में स्थानांतरित कर दिया गया, जिस पर उन्होंने आवेदन संख्या 4444/2017 के जर‌िए सवाल किया था। केएसएटी ने उन्हें पुरानी पोस्ट पर बरकरार रखा और स्‍थानातंरण पर अंतरिम आदेश देकर रोक लगा दी।

    आरडीपीआर विभाग ने 27.02.2020 की अध‌िसूचना (अनुलग्नक-ए6) के जर‌िए एकपक्षीय स्तर पर याचिकाकर्ता की प्रतिनियुक्ति रद्द कर दी और उन्हें मूल विभाग यानी पीडब्ल्यूडी में वापस भेज दिया; याचिकाकर्ता ने इस अधिसूचना को आवेदन संख्या 1270/2020 के जरिए चुनौती दी, जिसे केएसएटी ने एक आदेश के जर‌िए नकार दिया। इसलिए, याचिकाकर्ता को कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक देनी पड़ी।

    कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

    केसीएस (सीसीए) नियम, 1957 में दिए गए विभिन्न नियमों के पाठ और संदर्भों के अध्ययन के बाद न्यायालय का विचार था कि सरकारी सेवा में प्रतिनियुक्ति के मामले में, एक कर्मचारी के पास अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं होता।

    हालांकि, न्यायालय ने कहा, "एक सामान्य नियम के रूप में, कोई भी विभाग अपने कर्मचारी को प्रतिनियुक्ति के रूप में दूसरे विभाग पर थोप नहीं सकता है। इसी प्रकार, एक उधार लेने वाला विभाग प्राधिकरण की अनुपस्थिति में प्रतिनियुक्ति के कार्यकाल को एकतरफ रूप से कम नहीं कर सकता है।"

    वर्तमान मामले में, अदालत ने उल्लेख किया कि उधार लेने वाले विभाग ने एकतरफा तरीके से याचिकाकर्ता को मूल विभाग में वापस भेज दिया, वह भी उधार देने वाले विभाग से बिना किसी पूर्व या पश्चात परामर्श के; न्यायालय के अनुसार, यह "नियमों के विपरीत होने के अलावा, उस सिविल सेवक का अपमान है, जिसके साथ सम्मानजनक व्यवहार किया जाना चा‌‌हिए था।"

    न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रतिनियुक्ति में तीन तत्व शामिल होते हैं, उधार देने वाला विभाग, उधार लेने वाला विभाग और उधार दिया गया हाथ; आमतौर पर, एक वैध प्रतिनियुक्ति में तीनों पक्षों की के बीच आम सहमति की कल्पना की जाती है, जब तक कि कानून अन्यथा न बताता हो।

    इसके अलावा, कोर्ट ने कहा, "यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि सरकार एक मॉडल नियोक्ता होने के नाते ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह कार्य नहीं कर सकती है, जब सेवा नियमों द्वारा मोटे तौर पर सेवा की शर्तों को विनियमित किया जाता है; इस प्रकार, उक्त कार्रवाई उचित मानक प्रक्रियाओं के अनुरूप नहीं रह जाती है।"

    कोर्ट ने माना कि उधार ‌लिए विभाग की कार्रवाई की याचिकाकर्ता द्वारा केएसएटी से संपर्क करने और अपने स्‍थानातंरण पर रोक लगवाने से प्रेरित लगती है।

    न्यायालय का विचार था कि प्रतिनियुक्ति पाने वाले को पद/ कार्यालय का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, जिस पर वह प्रतिनियुक्त है, लेकिन यहां ऐसा नहीं है और इसलिए यह निर्णय उत्तरदाताओं के बचाव में नहीं आता है, खासकर जब केसीएसआर का नियम 50 प्रतिनियुक्ति के लिए अधिकतम पांच वर्ष की अवधि प्रदान करता है।

    अदालत ने आगे इस तथ्य को ध्यान में रखा कि इस नियम के तहत कुछ सरकारी आदेश जारी किए गए हैं, जो मोटे तौर पर प्रतिनियुक्ति और उसके कार्यकाल की नीति तैयार करते हैं।

    न्यायालय ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि 19.11.1981 का सरकारी आदेश, उधार लेने और उधार देने वाले विभागों के बीच परामर्श को पूर्व निर्धारित अवधि को कम करने या बढ़ाने की पूर्व शर्त के रूप में निर्धारित करता है।

    इस संदर्भ में, न्यायालय ने कहा, "यह सच है कि इन सरकारी आदेशों/ परिपत्रों में कानून का बल नहीं हो सकता है ताकि कानूनी कार्यवाही के लिए ठोस कारण दिया जा सके; लेकिन वे मानक प्रदान करते हैं, जिनसे प्रशासनिक कार्रवाई की वैधता का आकलन किया जा सकता है; यहां तक ​​कि पहले प्रतिवादी द्वारा अधिसूचना को जारी करते हुए इन आदेशों को ध्यान में नहीं रखा गया है।"

    उपरोक्त परिस्थितियों में रिट याचिका सफल रही। केएसएटी के आदेश को रद्द करते हुए एक रिट ऑफ सर्टिओरी जारी की गई और प्रतिवादी एक और दो को याचिकाकर्ता की बहाली के ल‌िए निर्देश जारी किया गया।

    आदेश डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें


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